Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

सरकार के सहयोग से मुख्य धारा में महिलाएं

मोदी सरकार के 9 साल के शासन की नीतियों और सहयोग से भारतीय महिलाओं ने सदियों से गढ़ी-बुनी वर्जनाओं की खोल को धूल-धुसरित कर राष्ट्र निर्माण में अपनी शानदार भूमिका को रेखांकित करना शुरु कर दिया है। इन 9 सालों में मोदी सरकार ने महिलाओं के हित में ढ़ेर सारे निर्णय लिए हैं और उसी का नतीजा है कि आज वे अपने लक्ष्य का प्रस्तावना खुद लिख रही है। इस प्रस्तावना ने उनमें असमानता और अन्याय के खिलाफ तनकर खड़ा होने की शक्ति, विकास पथ पर आगे बढ़ने का माद्दा और नवाचारों का बीज रोपने की हिम्मत दी है। इसी हिम्मत से बदलाव की सहज प्रतिध्वनि प्रस्फुटित हो रही है जिससे लैंगिक असमानता की लौह-बेड़ियां पिघल रही हैं। हाल ही में मोदी सरकार ने ऐतिहासिक निणर्य लेते हुए संसद का विशेष सत्र आहुत कर दशकों से बर्फखाने में पड़े महिला आरक्षण बिल को पारित करा आधी आबादी को उनके अधिकारों से लैस किया है। इस क्रांतिकारी फैसले से अब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें सुरक्षित-आरक्षित हो गई हैं। निःसंदेह इस पहल ने व्यवस्थापिका में महिला सशक्तिकरण को नया आयाम दिया है। इस उपलब्धि से देश भर की महिलाओं का इकबाल बुलंद हुआ हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सच कहा है कि भारत के इतिहास में यह एक निर्णायक क्षण है। गौर करें तो नए संसद में पारित होने वाला यह पहला विधेयक है जो भारतीय नारी की गौरव और आनुपातिक भागीदारी की गरिमा को सुनिश्चित किया है। विचार करें तो अभी तक देश के अधिकांश राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है। देश के किसी भी राज्य में 15 फीसदी से अधिक नहीं है। लेकिन मोदी सरकार ने 33 फीसदी आरक्षण की पहल कर बदलाव के चक्र की चाबी भर दी है। अब संसद और राज्य विधानसभाएं महिला प्रतिनिधित्व से गुलजार दिखेंगी। गौर करें तो पहली बार नहीं है जब मोदी सरकार ने महिलाओं के हित में क्रांतिकारी निर्णय लिया है। 2014 में सत्ता संभालते ही प्रधानमंत्री मोदी ने लैंगिक असमानता मिटाने का संकल्प लिया। इसके लिए उन्होंने महिला केंद्रित योजनाओं को आकार देने के की पहल शुरु कर दी जिसका उल्लेख आवश्यक है। मोदी सरकार ने 1 मई, 2016 को उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया जिले से उज्ज्वला योजना का शुभारंभ किया। आज इसका लाभ देश भर की उन सभी गृहणियों को मिल रहा है जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं। गृहणियों के गृहस्थी में रसोई गैस सिलेंडर की उपलब्धता न सिर्फ उनकी बुनियादी जरुरत को पूरा कर रहा है बल्कि उनके आत्सम्मान में भी वृद्धि का कारक है। किसी से छिपा नहीं है कि परंपरागत तौर पर मिट्टी के चूल्हे और कोयले की आग से निकलने वाला धुंआ किस तरह गृहणियों की आंख को नुकसान पहुंचाता था। जहरीले धुएं से न सिर्फ उनकी आंख खराब होती थी बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था। लेकिन उज्जवला योजना के अमल में आने से महिलाओं के स्वास्थ्य को नया जीवनदान मिला है। आज की तारीख में तकरीबन 9.6 करोड़ गृहणियां उज्जवला योजना का लाभ ले रही हैं। गौर करें तो 2014 से पहले भोजन पकाने के ईंधन से वंचित जिन गरीबों की तादाद 52.9 फीसदी हुआ करती थी वह आज घटकर 13.9 फीसदी रह गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने बालिका लिंग अनुपात में गिरावट को रोकने एवं महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए 22 जनवरी, 2015 को ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना का शुभारंभ हरियाणा के पानीपत से किया। यह योजना आज देश भर में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान और आंदोलन का रुप धारण कर लिया है। उसी का नतीजा है कि आज देश भर में बालिकाओं की शिक्षा और सुरक्षा को लेकर जागरुकता बढ़ी है। उसी जागरुकता का परिणाम है कि महिलाओं के प्रति घरेलू मारपीट व हिंसा की दर में कमी आ रही है। यह भारतीय समाज के लिए शुभ संकेत है। मोदी सरकार ने महिलाओं के प्रसव को भी सुरक्षित करना सुनिश्चित किया है। अब प्रसव 100 फीसदी तक अस्पतालों और प्रशिक्षित नर्सो की निगरानी में हो रहा है। इस प्रयास से शिशु मृत्यु दर में लगातार कमी आ रही है। यह दर 4.5 फीसदी से घटकर 1.5 पर आ गई है। मोदी सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए फ्री सिलाई मशीन योजना को जमीन पर उतारा है। 20 से 40 वर्ष की महिलाएं इस योजना का भरपूर लाभ उठा रही हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है और आत्मनिर्भर बन रही हैं। 22 जनवरी, 2015 को प्रारंभ हुई सुकन्या समृद्धि योजना मील का पत्थर साबित हुई है। उल्लेखनीय है कि यह योजना 10 साल से कम उम्र की लड़कियों-बच्चियों की उच्च शिक्षा और विवाह के लिए है। एक किस्म हम इसे लड़कियों-बच्चियों की सुरक्षित भविष्य की बचत योजना कह सकते हैं। इस योजना से आर्थिक रुप से कमजोर लड़कियों-बच्चियों की उच्च शिक्षा की राह आसान हुई है। दूसरी ओर 2017 में प्रारंभ हुई महिला शक्ति केंद्र योजना गांव-गांव की महिलाओं को सामाजिक भागीदारी के माध्यम से सशक्त कर रही है। मोदी सरकार ने 30 जुलाई, 2019 में तीन तलाक विधेयक पारित किया। उसके बाद अब मुस्लिम समाज में तीन तलाक देना अपराध की श्रेणी में आ गया है। मोदी सरकार के इस फैसले का मुस्लिम समाज में चतुर्दिक सराहना हुई है। मोदी सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं के सकारात्मक परिणाम का असर है कि इन 9 वर्षों के दरम्यान लैंगिक असमानता में तेजी से कमी आयी है। अभी गत वर्ष ही राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों से खुलासा हुआ कि महिला स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन सुधार हुआ है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की वारदातों में कमी आयी है। यह दर पिछले एक दशक में 37.2 फीसदी से घटकर 25 फीसदी के नीचे आ गया है। सरकार के सकारात्मक रुख से बेटियों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने की मंजूरी मिल गई है। अब यहां भी समानता के मीनार पर आधी-आबादी अपना झंडा लहरा रही हैं। राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में भी आधी-आबादी की मौजूदगी तेजी से बढ़ रही है। अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वे (एआईएसएचई) की रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में बेटियों का नामांकन बढ़ा है। 2014-15 से 2020-21 की अवधि के दरम्यान नामांकन में लगभग 61 फीदसी की वृद्धि हुई है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी सर्वे रिपोर्ट 2020-21 के मुताबिक छात्राओं का नामांकन दो करोड़ के पार पहुंच गया है। 2014-15 के मुकाबले 44 लाख अर्थात 28 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र में 2014-15 से 2020-21 के दरम्यान अन्य पिछड़ा वर्ग की छात्राओं के नामांकन में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है। कुल नामांकन में छात्राओं के नामांकन का प्रतिशत जो 2014-15 में 45 फीसदी था, से बढ़कर 2020-21 में 49 फीसदी हो गया है। फैकल्टी शिक्षकों में महिलाएं की भागीदारी 42.9 फीसदी हो गई है। आर्थिक उपक्रमों में भागीदारी की बात करें तो भारत की कंपनियों में महिला निदेशकों का अनुपात 18 फीसदी के पार पहुंच चुका है। 2014 से पहले यह 6 फीसदी से भी कम था। श्रम के क्षेत्र में नजर दौड़ाएं तो यहां भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। प्रशासनिक नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी अब 20 फीसदी के पार है। इसी तरह बैंकों में भी यह आंकड़ा 25 फीसदी से अधिक है। मोदी सरकार ने महिलाओं की नौकरियां और उनके आर्थिक उन्नति की राह में आने वाली कई कानूनी बाधाओं को खत्म किया है। इसी का असर है कि नौकरियों के अलावा राजनीति में भी महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। अभी चंद महीने पहले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव संपन्न हुआ। इस पंचायत चुनाव में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं पंच परमेश्वर चुनकर आयी हैं। 53.7 फीसदी पंचायतों की बागडोर अब महिलाओं के हाथ में है। राज्य में ग्राम प्रधान के 58,176 पदों पर चुनाव हुए जिसमें 31,212 पद पर महिलाएं चुनी गई। ऐसा ही आंकड़ा देश के अन्य राज्यों में भी देखने को मिल रहा है। यह महिला सशक्तिकरण को ही रेखांकित करता है और इसका श्रेय मोदी सरकार को जाता है। 

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)

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