Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

भारत की संस्कृति में निहित है नारी शक्ति का सम्मान

भारत आदिकाल से ही एक ऐसा देश रहा है जिसकी पहचान उसकी सांस्कृतिक विरासत एवं विविधता ही नहीं बल्कि उसके लोकतांत्रिक मूल्य और समावेशी विचार भी रहे हैं। जहां महिला और पुरूष के बीच समानता की नहीं बल्कि अर्धनारीश्वर की संकल्पना के साथ स्त्री और पुरूष के एकदूसरे के पूरक होने की बात की जाती है। भारत वो भूमि है जहां प्रभु श्री राम ने भी सीता माता की अनुपस्थिति में अश्वमेध यज्ञ उनकी सोने की मूर्ति के साथ किया था। 

भारत की संस्कृति वो है जहाँ कृष्ण भगवान को नन्दलाल कहा जाता हैं, तो वो देवकीनंदन और यशोदानन्दन भी हैं। श्री राम दशरथ नन्दन हैं तो कौशल्या नन्दन और सियावर भी हैं। भारत वो राष्ट्र है जहाँ मैत्रैयी, गार्गी, इंद्राणी, लोपामुद्रा जैसी वेद मंत्र दृष्टा विदुषी महिलाएं थीं तो कैकई जैसी रानीयां भी थीं जो युद्ध में राजा दशरथ की सारथी ही नहीं थीं बल्कि युद्ध में राजा दशरथ के घायल होने की अवस्था में उनकी प्राण रक्षक भी बनीं। 

लेकिन इसे क्या कहा जाए कि स्त्री शक्ति के ऐसे गौरवशाली सांस्कृतिक अतीत के बावजूद आज भारत में महिलाओं को सामाजिक रूप से सशक्त करने की दिशा में सरकारों को विभिन्न प्रयास करने पड़ रहे हैं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हमें भारत की संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के लिए वर्षों का संघर्ष करना पड़ा। 1996 में जब पहली बार महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया था तबसे लेकर आज 2023 तक इस संघर्ष ने काफी फासला तय किया है। 

महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल से ही की जाती रही है। चूँकि तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिये विधेयक को मंज़ूरी नहीं मिल सकी। 1996 में पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया। 1998 से 2003 तक सरकार ने 4 अवसरों पर विधेयक पेश किया लेकिन पारित नहीं करा पाई। 2010 में राज्यसभा द्वारा विधेयक पारित हुआ लेकिन लोकसभा में लंबित ही रह गया। यह सुखद है कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पारित कराकर देश की महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित किया है। 

2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में इस समय महिलाओं की आबादी 48.5% है। लेकिन इसे क्या कहा जाए कि जिस संसद और विधानसभाओं में कानून बनते हैं, वहां उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। एक तथ्य यह भी है कि आजादी से अब तक 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। लेकिन 2014 के आम चुनाव में पहली बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 60% के ऊपर गया था। 2014 में 65.6% महिलाओं ने वोट दिया था. वहीं, 2019 के चुनाव में ये और बढ़कर 67.2% चला गया था। 

खास बात यह है कि 2019 के चुनाव में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने वोट डाला था। ये दिखाता है कि अब राजनीति में महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ रही है, लेकिन इस क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व काफी कम है। इन परिस्थितियों में मोदी सरकार द्वारा राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की दिशा में  एक महत्त्वपूर्ण इबारत लिख दी गई है।

वैसे तो वर्तमान भाजपा सरकार ने इससे पहले भी महिलाओं को सामाजिक रूप से और आर्थिक रूप से सशक्त करने के साथ साथ उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने एवं उन्हें शिक्षित करने के लिए भी अनेक कदम उठाए हैं। महिला ई-हाट, स्टार्टअप स्कीम, पोषण अभियान, महिला हेल्पलाइन, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना जैसे कदम महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। यह भी वर्तमान सरकार की नीतियों का ही परिणाम है कि आज महिलाएं भारतीय सेना की तीनों टुकड़ियों में लड़ाकू जहाज उड़ाने, युद्धपोत चलाने से लेकर तोप चलाने में भी अपना योगदान दे रही हैं। 

गौरतलब है कि वर्तमान परिदृश्य में महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति ही दर्ज नहीं करा रहीं बल्कि स्वयं को साबित भी कर रही हैं। लेकिन जब बात देश की राजनीति की आती है, देश की संसद की आती है, तो वहाँ पर महिलाओं की उपस्थिति न के बराबर ही होती है। कहने को कहा जा सकता है कि इस देश को इंदिरा गांधी के रूप में महिला प्रधानमंत्री मिली तो प्रतिभा पाटिल  एवं द्रौपदी मुर्मू के रूप में महिला राष्ट्रपति भी मिलीं हैं तथा मीरा कुमार एवं सुमित्रा महाजन के रूप में महिला लोकसभा अध्यक्ष भी मिलीं हैं। 

लेकिन यह भी सच है कि दोनो सदनों में महिला सांसदों की संख्या एवं जिला पंचायत से लेकर नगरपालिका तथा विधानसभा से लेकर लोकसभा तक राजीनीति के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा अत्यंत अल्प ही रहा है। इतना ही नहीं बल्कि जिला स्तर पर तो महिला आरक्षित सीटों पर सरपंच पति और पार्षद पति ही अक्सर कार्य करते देखे जाते रहे हैं। 

इन परिस्थितियों में जब हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं और विशेष रूप में राजनीति में, तो यह आवश्यक हो जाता है कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम अपने लक्ष्य को यथार्थ में भी चरितार्थ करे। वैसे वर्तमान सरकार का योजनाओं/कानूनों की रचना और क्रियान्वयन के मामले में जो पिछला रिकॉर्ड रहा है, उसे देखते हुए निश्चित रूप से यह उम्मीद की जा सकती है कि यह अधिनियम भी अपने निर्धारित लक्ष्यों को सही प्रकार से प्राप्त करेगा तथा राजनीति में महिलाओं की समुचित भागीदारी सुनिश्चित होगी।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)