अपनी स्पष्ट, दूरदर्शी और जनहित नीतियों की वजह से विगत लगभग 25 वर्षों से सक्रिय राजनीति में अपनी विलक्षण प्रतिभा को स्थापित करने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भारत की गरीबी को दूर करने में भागीरथ प्रयास कर रहे हैं, जिनमें उन्हें अपेक्षित सफलता प्राप्त हो रही है.
इंदिरा गांधी जिस बात के लिए नारे देती रही, अपनी सियासत चमकाती रही, प्रधानमंत्री मोदी ने 9 साल में वह कर दिखाया है. आजादी के बाद देश पर अधिकतर समय कांग्रेस ने शासन किया लेकिन गरीबी दूर करने का केवल नारा ही दिया. इंदिरा गांधी ने 1971 में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। उसके बाद कांग्रेस करीब 40 से अधिक समय तक सरकार में रही लेकिन उनकी नीति और नीयत ठीक नहीं थी और गरीबी दूर नहीं हुई. कांग्रेस सरकार में भ्रष्टाचार और घोटालों की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों को जो मिलना चाहिए था, वो कभी मिला नहीं.
लेकिन ज़ब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली है, देश के गरीबों के कल्याण के लिए काम करना शुरू कर दिया. सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ सीधे गरीबों तक पहुंचाया. उनकी कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं ने गरीबों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आया है. इसका प्रमाण नीति आयोग के जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक की रिपोर्ट से मिलता है. नीति आयोग की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 9 सालो यानी मोदी कार्यकाल में तकरीबन 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले है. लोगों की आर्थिक स्थिति में ये सुधार मोदी सरकार गरीबों के उत्थान के लिए कई योजनाओं की शुरुआत को माना जा रहा है, जिसकी वजह से गरीबों का जीवन आसान हुआ है और उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है.
क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट
एक सपना जो दशकों पहले देखा गया. एक वादा जो दसियों साल पहले किया गया- गरीबी मिटाने का. भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उस दिशा में आगे बढ़ रहा है. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले नौ वर्षों में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2013-14 से 2022-23 के बीच देश के 24.82 करोड़ लोगों को गरीबी की परिधि से बाहर निकाला.
नीति आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गरीबी साल 2013-14 में 29.17% से घटकर 2022-23 में 11.28% रह गई है, यानी 17.89 प्रतिशत की कमी आई है. उत्तर प्रदेश में पिछले 9 वर्षों के दौरान 5.94 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं, जो सबसे अधिक है. इसके बाद बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं.
रिपोर्ट यह भी दर्शाता है कि 2005-06 से 2015-16 की अवधि की तुलना में 2015-16 से 2019-21 में गरीबी में तेज गिरावट दर्ज की गई है. साल 2005-15 में गरीबी की वार्षिक गिरावट 7.69% थी, जो साल 2016-21 में बढ़कर 10.66% वार्षिक गिरावट हो गई. इस संपूर्ण अध्ययन अवधि के दौरान एमपीआई के सभी 12 संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किए गए हैं. एमपीआई रिपोर्ट प्रति व्यक्ति आय के अनुसार नहीं बल्कि एमपीआई के 12 मानकों के हिसाब से तैयार की जाती है.
एमपीआई के 12 मानकों में बच्चों की मृत्यु दर, पोषक तत्व, माताओं का स्वास्थ्य, बच्चों के स्कूल जाने की उम्र, स्कूलो में उनकी उपस्थिति, रसोई ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, संपदा और बैंक खाते शामिल हैं। इन मानकों के हिसाब से देश के 138 करोड़ लोगों में अब केवल 15 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इन सुविधाओं से वंचित हैं।
केंद्र की मोदी सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों का है ये असर
रिपोर्ट बताती है कि देश में गरीबी से लोगो को निजात मिल रहा है, जाहिर है ये मोदी सरकार की कल्याणकारी नीतियों का यह सीधा प्रभाव है. इन योजनाओं में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, उज्जवला योजना, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन धन खाते जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं शामिल हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि डिजीटल क्रांति ने इन योजनाओं का लाभ सीधे अपेक्षित वर्ग तक पहुंचाया है. बिचौलियों का खात्मा कर दिया और बीच में से पैसा निकालने की गुंजाइश खत्म कर दी. आइए देखते हैं कि मोदी सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं से कितनों गरीबों को लाभ मिल रहा है और यह कैसे गरीबों का सहारा बन रही है और उनमें समृद्धि ला रही है
जनधन ख़ाता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ जनधन खातों की संख्या और इसमे जमा पैसों का एक नया रिकॉर्ड बन चुका है। प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) के तहत खोले गए बैंक खातों की संख्या 51 करोड़ के पार पहुंच गई है। इसके साथ ही जनधन खातों में कुल जमा राशि 2.08 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है। पीएमजेडीवाई खातों की संख्या मार्च 2015 के 14.72 करोड़ से तीन गुना (3.4) बढ़कर 29 नवंबर 2023 तक 51.04 करोड़ हो गई है। प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) 28 अगस्त 2014 को शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य उन परिवारों के लिए शून्य रुपये की न्यूनतम जमा राशि वाले बैंक खाते खोलना था, जो अभी तक बैंकिंग सेवाओं से वंचित थे।
सामाजिक सुरक्षा: अटल पेंशन योजना के सदस्यों की संख्या 6 करोड़ पार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार की योजनाओं ने आम लोगों के जीवन की तस्वीर बदल दी है. मोदी सरकार की अटल पेंशन योजना (APY- एपीवाई) एक प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजना है. अटल पेंशन योजना की कामयाबी को आप इसी से जान सकते हैं कि अब तक इसके 6 करोड़ से अधिक खाते हो गए हैं. यानी अटल पेंशन योजना के तहत कुल नामांकन ने 6 करोड़ के आंकड़े को पार कर लिया है. सिर्फ चालू वित्त वर्ष में ही इस योजना से 79 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं. एपीवाई के शुभारंभ से ही इसमें नामांकन निरंतर बढ़ता जा रहा है. वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 में नए नामांकन में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में नए नामांकन में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.
ओबीसी और एससी वर्ग के लिए वरदान बनी ‘पीएम स्वनिधि’ योजना
जब देश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और उससे जुड़े तमाम दल जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं. ऐसे समय में भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट ने विपक्ष को आईना दिखाने का काम किया है. इस रिपोर्ट में ‘पीएम स्वनिधि’ योजना की जमकर तारीफ की गई है. इस योजना के 75 प्रतिशत लाभार्थी आरक्षित वर्ग से हैं। इसमें भी सबसे अधिक हिस्सेदारी ओबीसी वर्ग की है. इस रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि मोदी सरकार किस तरह ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति के कल्याण और उत्थान के लिए काम कर रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर एसबीआई की इस रिपोर्ट को साझा करते हुए कहा कि भारतीय स्टेट बैंक के सौम्या कांति घोष का यह गहन शोध स्वनिधि योजना के परिवर्तनकारी प्रभाव की एक बहुत स्पष्ट तस्वीर पेश करता है. उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट इस योजना की समावेशी प्रकृति को दर्शाती है और इस पर प्रकाश डालती है कि इसने वित्तीय सशक्तीकरण को किस तरह बढ़ावा दिया है.
उज्जवला योजना: 3 साल में गरीबों के बीच बांटे जाएंगे 75 लाख नए एलपीजी कनेक्शन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं ने गरीबों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाया है. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) से देश के करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल चुकी है. अब 13 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में उज्जवला योजना के तहत अगले 3 वित्त वर्ष में 75 लाख नए एलपीजी कनेक्शन देने का फैसला किया गया. ये कनेक्शन साल 2023-24 से 2025-26 तक बांटे जाएंगे. इस योजना के तहत अब तक 9 करोड़ 60 लाख कनेक्शन दिए जा चुके हैं. 75 लाख अतिरिक्त उज्ज्वला कनेक्शन के प्रावधान से पीएमयूवाई लाभार्थियों की कुल संख्या 10.35 करोड़ हो जाएगी.
आयुष्मान भारत के 27 करोड़ से अधिक कार्ड जारी, 6 करोड़ लोगों को मिला मुफ्त इलाज
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देशवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना’ (पीएम-जेवाई) की शुरुआत की थी. अब यह योजना गरीब-वंचितों के लिए वरदान साबित हो रही है. इस योजना के तहत 27 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड दिए जा चुके हैं. आयुष्मान भारत योजना में अब तक 6 करोड़ से अधिक लोगों का मुफ्त इलाज किया गया है. उसमें से 3.5 करोड़ से अधिक महिलाओं का इलाज किया गया है. इस योजना के कारण लाभार्थियों को उपचार पर हो सकने वाले 1 लाख करोड़ रुपये की बचत भी हुई है.
देश में 4 करोड़ गरीबों को मिला पक्का घर
प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी और ग्रामीण को मिलाकर देश में करीब चार करोड़ बनाए जा चुके हैं और बनकर तैयार हो चुके घर पात्र गरीबों को सौंपा जा चुका है. इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों का जीवनस्तर ऊंचा हुआ है, जीवन आसान हुआ है और समग्र समृद्धि आई है. देश की समृद्धि के लिए यह जरूरी है कि सभी देशवासियों का अपना घर हो. इसके तहत मोदी सरकार ने देश में आर्थिक रूप से कमजोर या गरीब तबके के लोगों को अपना घर मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की.
इसके तहत सरकार देश के उन नागरिकों की मदद करती है, जिनके पास पक्के मकान नहीं हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत अब तक गांवों में 3 करोड़ घरों का निर्माण किया गया है. वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 1.20 करोड़ घरों को मंजूरी दी गई थी जिसमें 72.56 लाख बनकर तैयार हो चुके हैं और लोगों को सौंप दिए गए हैं. यानि दोनों योजनाओं को मिलाकर देश में चार करोड़ से अधिक घरों का निर्माण किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी में अब तक 1.18 करोड़ से ज्यादा घरों को मिली मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (पीएमएवाई-यू) को अभूतपूर्व सफलता मिली है। मोदी सरकार अब तक 1.18 करोड़ घरों को मंजूरी दे चुकी है। इनमें से 113 लाख से अधिक का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है और 78 लाख से अधिक आवासीय इकाइयों को लाभार्थियों को सौंपा जा चुका है. मिशन के तहत कुल निवेश 8.11 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें 2 लाख करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता है. अब तक, 153970 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता जारी की जा चुकी है। पीएम आवास योजना के तहत सरकार बेघर लोगों को घर बनाकर देती है. इसके साथ ही लोन लेकर घर या फ्लैट खरीदने वाले लोगों को सब्सिडी भी सरकार की ओर से मिलती है. एक वक़्त था जब गरीबी हटाओ केवल नारा था, सियासत करने का एक साधन था.
गरीबी पर बात हो तो साल 1971 का जिक्र लाजिमी है.
चुनावी सरगर्मी के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया. इंदिरा का यह स्लोगन इतना लोकप्रिय हुआ कि वो एक मजबूत प्रधानमंत्री बन गईं. गरीबी हटाओ नारे के साथ इंदिरा गांधी पीएम तो बन गयी, लेकिन गरीबो का उत्थान नहीं हुआ. उनका नारा नारा ही बन कर रह गया. 1971 के जनगणना के मुताबिक भारत में उस वक्त करीब 54 करोड़ आबादी थी, जिसमें से 57% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. देश में 66 फीसदी लोग अनपढ़ थे. ग्रामीण से ज्यादा शहरी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही थी. लम्बे वक़्त तक इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री रही, लेकिन गरीबी के स्तर पर कोई सुधार नहीं देखने को मिला.
यूएन की मनमोहन सिंह और मोदी सरकार में गरीबों पर तुलनात्मक स्टडी
इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और फिर मनमोहन सरकार तक गरीबी हटाओ के नारे के साथ सिर्फ चुनाव ही जीतती रही हैं. गरीबी के उत्थान और उनके कल्याण के लिए कांग्रेस सरकारों ने कभी गंभीरता के साथ कोई कार्यक्रम नहीं चलाए. यही वजह है कि कांग्रेस सरकारों के दौरान देश के करोड़ों लोग गरीबी और महंगाई के कुचक्र में फंसे रहे.
संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत का जिक्र करते हुए बताया गया कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान साल 2005-2006 में जहां 55% लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, वहीं साल मोदी सरकार के कार्यकाल में 2021 तक ही गरीबी के आंकड़े घटकर 16% ही रह गए. पीएम मोदी के शत-प्रतिशत सैचुरेशन और हर योजना को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के विजन के चलते ही गरीबी सूचकांक में भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है.
(लेखक प्रधानाध्यापक हैं, समसामयिक विषयों पर लिखते हैं. प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं)