Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

दूरगामी सुधारों को लागू करने में कामयाब रही मोदी सरकार

इसे विडंबना ही कहेंगे कि कृषि प्रधान देश भारत में खेती-किसानी कभी फायदे का सौदा नहीं रही। हां, एक बड़ी आबादी का भरण-पोषण करने में वह जरूर सक्षम थी। लेकिन 1991 में शुरू हुई उदारीकरण-भूमंडलीकरण की नीतियों के तहत खेती की यह क्षमता भी कम होती गई जिससे वह घाटे का सौदा बन गई। इसके बाद अन्नदाता किसानों की आत्महत्याओं का दौर शुरू हो गया। सरकारों ने इस समस्या के समाधान के बजाए महानगरों को जोड़ने वाली लंबी दूरी की रेलगाड़ियां चलाई जिससे पलायन को बढ़ावा मिला।

2014 में सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खेती को फायदे का सौदा बनाने में जुट गए। इसके लिए दीर्घकालिक उपायों की शुरूआत की गई ताकि खेती की लागत में कमी आए। इसके साथ-साथ प्रधानमंत्री ने कृषि उपज के विपणन-भंडारण-प्रसंस्करण को आधुनिक बनाने पर ध्यान दिया ताकि उपज की बरबादी रूके और उपज की लाभकारी कीमत मिले।

रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल को रोकने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की गई। अब तक 22 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किए जा चुके हैं। इससे देश में मिट्टी की गुणवत्ता जांच की एक बहुत बड़ा नेटवर्क तैयार हुआ है। नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत से न केवल पड़ोसी देशों को होने वाली यूरिया की तस्करी रूकी बल्कि उसकी क्षमता में भी बढ़ोत्तरी हुई। अब सरकार नैनो यूरिया को बढ़ावा दे रही है ताकि देश यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर बने।

प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत किसानों को अपने खेतों में सिंचाई के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों पर सब्सिडी दी जाती है। किसानों को साहूकारों से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार संस्थागत ऋणों में भरपूर बढ़ोत्तरी किया है। 2022 में सरकार ने 18.5 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण वितरित किया गया जो कि 2014 में मात्र 8.5 लाख करोड़ रुपये था। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 2015-16 में परंपरागत कृषि विकास योजना शुरू की गई।    

प्रधानमंत्री मोदी ने मोटे अनाजों को श्रीअन्न नाम दिया। श्री अन्न को लोकप्रिय बनाने के कार्यक्रमों भारत सबसे आगे है। जलवायु परिवर्तन और बदलते मौसम चक्र से उत्पन्न चुनौतियों को देखते हुए मोटे अनाज उम्मीद की किरण जगाते हैं। यही स्थिति दलहनी-तिलहनी फसलों की है जिन्हें हरित क्रांति के दौर में अनुर्वर भूमियों पर धकेल दिया गया। इसी को देखते हुए मोदी सरकार गेहूं-धान के बजाए मोटे अनाजों और दलहनी-तिलहनी फसलों के समर्थन मूल्य में भरपूर बढ़ोत्‍तरी के साथ-साथ इनकी सरकारी खरीद का नेटवर्क तैयार कर रही है। उदाहरण के लिए 2014 से 2022 के बीच जहां गेहूं के एमएसपी में 47 प्रतिशत बढ़ोत्‍तरी हुई हुई वहीं चना में 68 प्रतिशत, सरसों में 76 प्रतिशत, कुसुम में 85 प्रतिशत और मसूर में 95 प्रतिशत।

सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण का अभियान शुरू किया ताकि पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता कम की जा सके और पर्यावरण प्रदूषण में कमी आए। 2013-14 में सिर्फ 1.5 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण होता था जो कि अब 10 प्रतिशत से अधिक हो गया है। सरकार ने पेट्रोल में दस प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित समय सीमा से पांच महीने पहले हासिल कर लिया। इससे किसानों को आठ वर्षों में 40,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है। इससे उत्साहित सरकार ने 2025-26 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है। पहले यह लक्ष्य 2030 तक हासिल किया जाना था। इसी तरह मोदी सरकार कचरा व गोबर से बायोगैस-सीएनजी बनाकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है।

मोदी सरकार किसानों को फसल उत्पादन से आगे बढ़ाकर बागवानी, मछली पालन जैसी आयपरक गतिविधियों में शामिल करना चाहती है। इसके लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन की शुरुआत की गई है। इसी तरह किसानों की आय बढ़ाने और उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए डेयरी उद्यमिता विकास योजना शुरू की गई है। सरकार के इन प्रयासों के नतीजे दिखने लगे हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 77वें दौर के अनुसार खेती से होने वाली आय के स्रोतों में काफी विविधता आई है और अब वह केवल फसली खेती व पशुपालन तक सीमित नहीं है।

किसानों को प्रत्यक्ष नकदी समर्थन देने हेतु प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना शुरू की गई है। इससे तहत 11.3 करोड़ किसानों को हर चौथे महीने 2000 रुपये की तीन किस्तों में हर साल 6000 रुपये दिए जाते हैं। इस योजना के तहत पिछले तीन वर्षों के दौरान दो लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजी जा चुकी है।

मोदी सरकार का सबसे ज्यादा जोर विपणन सुधारों पर है। राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई नाम) के साथ–साथ सरकार फल-सब्जी, दूध, मछली जैसे जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के शीघ्र परिवहन हेतु किसान रेल व किसान उड़ान की व्यवस्था की है। राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उपज के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र ने राज्यों से खाद्यान्न कारोबार पर मंडी शुल्क में एकरूपता लाने की सलाह दी है। इससे जिंस बाजार एकीकृत नहीं हो पाता है जिसका दुष्प्रभाव खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पर पड़ता है।

समग्रत: मोदी सरकार ने पिछले नौ वर्षों में खेती-किसानी में दूरगामी सुधारों को लागू किया ताकि खेती फायदे का सौदा बने और गांवों में कृषि आधारित उद्योग-धंधों की शुरुआत हो। इसके परिणाम दिखने लगे हैं। पिछले नौ वर्षों में न केवल किसान आत्महत्याओं में कमी आई बल्कि कृषि बाजार के उदारीकरण से किसानों की आमदनी बढ़ी और कृषि उपजों का निर्यात रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गया।

लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं, वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं. प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं|