Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

विमुद्रीकरण पर आगे का रास्ता साफ सुथरे भारत की ओर जाता है

पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह इस बात से खुश हो सकते हैं कि राज्यसभा में उनकी आशंका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी समर्थन दिया है। आईएमएफ का ताजा अनुमान कह रहा है कि भारत की तरक्की की रफ्तार 7.6% से घटकर 6.6% रह सकती है। 2016-17 के लिए जीडीपी 1% घटाने के पीछे आईएमएफ ने सबसे बड़ी वजह नोटबंदी को बताई है। आईएमएफ ने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में कहा है कि बड़े नोटों की बदली की वजह से भारत में आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा है और इसी वजह से एक प्रतिशत की जीडीपी में कमी से भारत सबसे तेजी से तरक्की करने वाली अर्थव्यवस्था नहीं रह सकेगा। हालांकि, आईएमएफ की इतनी खराब आशंका के बावजूद भारत की तरक्की की रफ्तार 2016-17 में 6.6% से कम नहीं होती दिख रही है। इस दौरान आईएमएफ के मुताबिक, चीन 6.7% की रफ्तार से तरक्की करेगा और इस 0.1% से वो भारत से ज्यादा तेजी वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। खुद आईएमएफ भी अपनी रिपोर्ट में कह रहा है कि सबसे तेजी से तरक्की करती अर्थव्यवस्था का ये खिताब भारत को फिर से 2017-18 में मिल जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 7.2% और चीन 6.5% की रफ्तार से तरक्की करेगा। इस रिपोर्ट को सरसरी निगाह से देखने पर ये लगेगा कि सरकार ने बड़ा गलत फैसला लिया और अब उसी का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। इस दावे पर इसलिए भी पक्का भरोसा हो जाता है कि दुनिया में इससे पहले कहीं भी ऐसा कोई फैसला कोई भी सरकार नहीं ले सकी है। यहां तक कि बड़ी नोटों को खत्म करने के दुनिया के सबसे बड़े पैरोकार केनेथ रॉगऑफ भी सवाल पूछ रहे हैं कि क्या मोदी की ये योजना काम करेगी? फिर आगे वो कह रहे हैं कि योजना लागू करने में ढेर

सारी खामियों (उदाहरण के लिए नए नोटों का अलग आकार का होना, जो एटीएम में फिट नहीं होते थे) के बावजूद दुनिया के कई बड़े अर्थशास्त्रियों का ये मानना है कि लम्बे समय में इसके ढेर सारे बड़े फायदे हो सकते हैं। भ्रष्टाचार, कर चोरी और दूसरे ढेर सारे अपराध रोकने में ये कारगर साबित होगा। लेकिन, लम्बे समय में मिलने वाला लाभ योजना को लागू करने के तरीके से तय होगा। सच भी यही है। किसी भी योजना को लागू करने से ही उसका लाभ या हानि तय होता है। और विमुद्रीकरण के मामले में भी यही होगा।
दरअसल हम हिन्दुस्तानियों की आदत है कि हम उसी विचार पर यकीन कर पा रहे हैं, जो दुनिया में कहीं और आजमाया गया हो। और अगर

कहीं आजमाया नहीं गया, तो हम उसके असफल होने की आशंका में डूबे रहते हैं। विमुद्रीकरण के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। विमुद्रीकरण पर आगे के रास्ते की बात करें, तो जनवरी महीने में ही नकदी की किल्लत काफी हद तक खत्म हो गई है। इससे ये तय होता है कि सरकार ने नोटों को बाजार में लाने की तैयारी पक्की कर रखी थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध संस्थान में इसी विषय पर बोलते हुए मैंने कहा था कि सरकार की तैयारी के लिहाज से इसमें 2-3 महीने का समय लगेगा। विमुद्रीकरण के विरोधी स्थिति सामान्य होने में 6 महीने का समय बता रहे थे। विमुद्रीकरण के विरोधियों का दूसरा सबसे बड़ा तर्क ये है कि आखिर अर्थव्यवस्था में वो रकम तो आई नहीं, जिसका सरकार अनुमान लगा रही थी। माना जा रहा था कि करीब 3-5 लाख करोड़ रुपये का काला धन होने की वजह से वो वापस नहीं आएगा और सरकार के लिए वो रकम आगे खर्च करने के काम आएगी। दरअसल इस तर्क के पीछे रिजर्व बैंक का वो आंकड़ा है, जिसके मुताबिक, करीब 50 हजार करोड़ रुपये की ही रकम वापस नहीं आई। लेकिन, अब जरा दूसरे आंकड़ों पर नजर डालिए।

2015 में विश्व बैंक के सर्वे के मुताबिक, भारत में 53% भारतीयों के पास ही बैंक खाते थे और उसमें से भी 43% खातों में कोई लेन-देन नहीं होता था। इसका सीधा सा मतलब हुआ कि उदारीकरण के करीब 3 दशक के बाद भी हिन्दुस्तान की सरकारों ने भारतीयों को बैंकिंग व्यवस्था में शामिल करने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया। कमाल की बात ये कि उसमें से एक दशक में डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे और आधा दशक वित्तमंत्री। उनके दूसरे महत्वपूर्ण पदों को इसमें शामिल नहीं करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमुद्रीकरण का फैसला लेने से काफी पहले से ही जनधन खाते खोलने का अभियान शुरू किया। 20 करोड़ से ज्यादा जनधन खाते नरेंद्र मोदी के 2 साल के समय में खोले गए। लेकिन, ये ज्यादातर खाते खाली ही रहे। लेकिन, विमुद्रीकरण के दौरान कुल 72000 करोड़ रुपये इन खातों में आ गए। 50 दिनों के विमुद्रीकरण के दौरान 2 करोड़ नए जनधन खाते खुले और इसमें 3.5 लाख करोड़ रुपये डाले गए। 50 हजार करोड़ रुपये नकद और 3 लाख करोड़ रुपये चेक या दूसरे खातों के जरिए। फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट का एक और आंकड़ा बताता है कि विमुद्रीकरण के 50 दिनों में लोगों ने 80 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा नकद अपने घर कर्ज की भरपाई के लिए किया। करीब 60 लाख खातों में 2 लाख रुपये से ज्यादा नकद जमा कराया गया। संयोग देखिए कि इन 60 लाख खातों में करीब 7 लाख खाते वही हैं, जिस पर पहले से ही सरकारी एजेंसियों की नजर है। अब अगर बिना किसा और गुणा गणित के इस रकम को जोड़ें, तो समझ आ जाता है कि काला धन वापस लाने के मामले में विमुद्रीकरण सफल हुआ है कि नहीं। इसमें सोना कारोबारियों, अलग-अलग जगह पकड़ी गई नकदी, रियल एस्टेट कारोबारियों प पड़े छापे में मिली नकदी को मैं नहीं जोड़ रहा हूं।

इन आंकड़ों से इतना तो साफ है कि सरकार का काला धन वापस लाने का मकसद पूरा हुआ है। हां, ये जरूर है कि लगभग पूरा काला धन भी बैंकिंग सिस्टम में आ गया है। इस वजह से शायद सरकार के लिए ये मुश्किल हो गया है कि वो बता सके कि सही तौर पर कितना काला धन आया है और ये किसका है। लेकिन, सरकार को जिम्मेदारी से देश को बताना चाहिए कि जनधन खातों और दूसरे खातों में अचानक आई नकदी में से कितना काला धन है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार जल्द से जल्द ये आंकड़े देश के सामने रखेगी। लेकिन, इतना तो पक्के तौर पर हुआ है कि भ्रष्टाचारियों में दहशत बनी है। वो डर बढ़ेगा, जब सरकारी एजेंसियां संदेह वाले खातों की जांच में आगे बढ़ेंगी। आम लोगों में ये भरोसा बना है कि भ्रष्टाचार करना अब कठिन होगा। इसका अंदाजा निहिलेंट एनालिटिक्स के एक सर्वे के परिणामों से समझ में आता है। इस सर्वे में 66% लोगों ने विमुद्रीकरण का समर्थन किया है। 66% लोग मानते हैं कि विमुद्रीकरण अपने आखिरी परिणाम तक पहुंचेगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इस बात के लिए उनको पूरा भरोसा है। इतने ही लोगों का ये भी मानना है कि भ्रष्टाचार, काला धन और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ये कारगर है। 68% महिलाएं विमुद्रीकरण के साथ खड़ी हैं।

सवाल फिर वही खड़ा होता है कि फिर देश से लेकर विदेश तक के जानकार अर्थव्यवस्था में कमजोरी की बात क्यों कर रहे हैं और क्या आगे इसका फायदा होता दिख रहा है। क्योंकि, आईएमएफ साफ कह रहा है जीडीपी घटेगी। इसका जवाब यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट दे देती है। यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉसपेक्ट्स 2017 की रिपोर्ट साफ कहती है कि भारत की जीडीरी 2017 में 7.7% की रफ्तार से बढ़ेगी और 2018 में 7.6% की रफ्तार से। संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट ये भी कह रही है कि भारत ही दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था रहने वाली है। और इसकी झलक जमीनी तौर पर सरकार के खजाने में आने वाले कर में भी दिख रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि विमुद्रीकरण के दौरान एक्साइज कलेक्शन 31.6% बढ़ गया। वित्त मंत्री ने जोर देकर कहाकि ये सीधे मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ा हुआ है। अप्रैल से दिसम्बर महीने की बात करें, तो प्रत्यक्ष कर 12.01% अप्रत्यक्ष कर 25% बढ़ा है। पिछले साल के दिसम्बर महीने में एडवांस टैक्स 14.4% बढ़ा है। इसका सीधा सा मतलब हुआ कि कंपनियों को आने वाले महीने में बेहतर उत्पादन का अनुमान है। विमुद्रीकरण का आगे रास्ता एक साफ-सुथरे, समृद्ध भारत की तरफ जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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