राजनीति का औषधिकरण सख्ती से, योग से, हठ से. शब्द नया है, संज्ञा एकदम ताजी है, लेकिन ये सबकुछ उत्तर प्रदेश में हुआ है और इसे अंजाम दिया है, देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने. सोमवार को योगी आदित्यनाथ के पूर्वाश्रम पिता का स्वर्गवास हो गया, लेकिन कोरोना के खिलाफ शासकीय कर्म जंग छेड़ चुका एक योगी बेटा पिता के अंतिम क्रियाकर्म में भी शामिल नहीं हुआ. कहने को तो संतों का यही धर्म है, लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एक संत ने राजधर्म का पालन करते हुए लॉकडाउन को महत्ता दी.
ताजा खबर ये है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने तब्लीगी जमात से जुड़े 16 विदेशी और 14 हिंदुस्तानी जमातियों को छिपा कर रखा था.
जरा ध्यान दीजिएगा, छिपाने की साजिश करने वाला प्रोफेसर है और ऐसी साजिश रचने वाले प्रोफेसर को हर हाल में खोजकर जेल भेजने वाले संत शासक का नाम योगी आदित्यनाथ है. एक योगी है, एक प्रोफेसर है, लेकिन धर्म का पालन करने में एक श्रेष्ठ है तो दूसरा निम्न से निम्नतर.
योगी आदित्यनाथ लगातार अपनी मशीनरी के साथ हर मोर्च पर डटे दिखाई पड़ते हैं. दूसरी ओर महाराष्ट्र की शिवसेना-कांग्रेस सरकार का हाल देखिए, जो हर मोर्चे पर असफल दिखाई दे रही है. बात कोरोना दर की हो या पालघर में हुई संतों की मॉब लिंचिंग. उद्धव ठाकरे से कुछ संभाले ही नहीं संभल रहा है और इधर, हर मसले में सबसे संवेदनशील उत्तर प्रदेश में योगी के आदेश के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल रहा है.
संवेदनशील इसलिए, क्योंकि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने तीन लाख 86 हजार बेसहारा मजदूरों को उत्तर प्रदेश में धकेल दिया. इनमें एक लाख 23 हजार बिहारी मजदूर भी थे. उधर बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने एक भी मजदूर को बिहार में लेने से साफ इनकार कर दिया. ये योगी शासन ही था, जिसने इन सभी मजदूरों को यूपी में पनाह दे दी. ना कोई हल्ला, ना बवाल, ना लिंचिंग, ना ही कोई मरीज. सबके सब आज भी यूपी में हैं.
बताते चलें कि यूपी में कोरोना मरीजों का ताजा आंकड़ा 1294 है. जिसमें जमातियों की गिनती 866 है. 140 डिस्चार्ज हो चुके हैं और 20 की मौत हो चुकी है. यानी साफतौर पर पूरे देश की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी कोरोना का आंकड़ा जमातियों ने ही बढ़ाया है. ऐसे में, इंटैलिजेंस और पुलिसिया खुफिया लगाकर पूरे प्रदेश में 15,906 मस्जिदें तलाशी गईं. जिसमें इंडोनेशिया, किर्गिस्तान, कजाखिस्तान, मलेशिया और बांग्लादेश के 327 विदेशी मौलाना छिपे हुए थे. बहराइच में ऐसे ही 17 विदेशी मौलानाओं को जेल भेज दिया गया. पूरे उत्तर प्रदेश में मौलानाओं को छिपाने, छिपने, पुलिस पर हमले और डॉक्टरों पर पत्थर चलाने के कुल 172 मामलों में मुकदमा दर्ज कराया गया है. सभी 327 विदेशी मौलानाओं को ब्लैक लिस्टेड करने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी गई है.
मुरादाबाद के नवाबपुरा में कोरोना से 2 भाइयों की मौत के बाद जब डॉक्टरों की टीम जांच करने पहुंची तो माहिलाओं और पुरुषों ने उनपर जमकर पत्थरबाजी की. 5 कालीदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास से सिर्फ एक आदेश दिया गया, ‘‘हमला करने वालों को छोड़ना नहीं और जांच अब पूरे इलाके की होगी.’’ बस फिर क्या था. दो दर्जन से ज्यादा लोगों को मुकदमे में बंद कर दिया गया और आज पांच पत्थरबाज कोरोना पॉजिटिव निकल आए. कुछ ऐसी ही दुर्घटना बरेली और सहारनपुर में भी हुई, लेकिन फॉर्मूला वही कि सबको दवा दी जाए. दवा मुकदमे की, दवा सख्ती की, दवा जांच की और दवा क्वारेंटाइन की.
ऐसा भी नहीं कि सबकुछ एकतरफा किया गया. जरा याद करिए कि सबसे पहले तो बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज हुआ. उनका इलाज हुआ और जल्द ही कनिका से पुलिसिया पूछताछ की भी तैयारी है. कुछ ऐसा ही सख्त बर्ताव सहारनपुर के हमलावरों के खिलाफ भी किया गया, जहां हमलावर दबंग बहुसंख्यक थे.
बहरहाल, अब बात नेपाल बॉर्डर की करते हैं. नेपाल बॉर्डर से सटे पीलीभीत इलाके में 37 लोग सऊदी अरब से उमरा करके लौटे थे और छिपे हुए थे. खुफिया खबर लगते ही 2 घंटे में सभी को क्वारेंटाइन किया गया. जांच की गई और जैसे ही इनमें से 2 कोरोना पॉजिटिव मिले, बाकी 35 के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई और नेपाल बॉर्डर को हर तरफ से सील कर दिया गया. बिहार बॉर्डर से सटे कुशीनगर इलाके में एक इंस्पेक्टर ने जैसे ही लापरवाही बरती, उसे सस्पेंड कर दिया गया. नोएडा के डीएम को लताड़कर कुर्सी से हटा दिया गया. डीएम साहब लापरवाही बरत रहे थे और नोएडा की हालत खराब होती जा रही थी. इन सबके बाद गृह विभाग को गोपनीय रिपोर्ट तैयार करने के आदेश दिए गए, जिसमें 35 जिलों की रिपोर्ट असंतोषजनक पाई गई. ये योगी का गोपनीय मैनेजमेंट था.
कुछ इसी अंदाज में ‘हॉट स्पॉट’ योजना भी लागू की गई. लॉकडाउन शुरू होने से पहले 24 लाख से ज्यादा मजदूरों के खाते में एक-एक हजार रुपए जमा कराए गए. गरीबों को भोजन, मुफ्त राशन और कम्युनिटी किचन ऐसे ब्रह्मास्त्र हैं कि फिलहाल उत्तर प्रदेश से भूख के चलते या भोजन मांगने के लिए भीड़ का कोई उन्माद कहीं देखने को नहीं मिला. इस बीच, सीएम हेल्पलाइन के जरिए कहीं भी छिपे हुए कोरोना मरीजों को ढूंढ़कर निकाला जा रहा है.
वैसे तो विपक्ष और वामपंथी कभी कोई मौका नहीं छोड़ते, लेकिन असल में विपक्ष और वामपंथियों को भगवा वस्त्रधारी मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई मौका मिल भी नहीं रहा है. भला मिलेगा भी कैसे? जो हर मोर्चे में आगे हो, जिसकी सख्ती किसी लाठी के मानिंद हो, जिसने अपने बीमार पिता को स्वर्गवासी होने के बाद भी देखने ना जाने का फैसला लिया हो, जिसने पूर्वाश्रम रिश्तेदारों को समझाया हो कि क्रियाकर्म में भीड़ इकठ्ठा ना करें, उसके खिलाफ मौका कोई तलाशे भी कैसे? गणित के ऐकिक नियम के मुताबिक यदि मान लिया जाए कि पालघर जैसी मॉब लिंचिंग की कोई घटना उत्तर प्रदेश में हो गई होती तो वाम गैंग विपक्ष के साथ मिलकर अब तक हाहाकार मचा चुका होता.
फिलहाल तो लॉकडाउन के साथ योगी का दृढ़ योग, सख्त तेवर, सेवा भावना और राजनीतिक औषधिकरण का अभियान जारी है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैl)