Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

वक़्फ़ संशोधन विधेयक और पसमंदा मुसलमान

वरिष्ठ सांसद जगदंबिका पाल के नेतृत्व में ‘’संयुक्त संसदीय समिति वक्फ संशोधन बिल 2024’’ ने पूरे देश मे भ्रमण कर लगभग सभी हितधारकों से संवाद स्थापित किया और कुछ आवश्यक बदलाव के साथ बिल को संसद के बजट सत्र में दोनों सदनों के पटल पर रखा। ज्ञात रहे कि पिछले वर्ष संसद में  वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया गया था जिसके बाद लोकसभा में सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस के बाद बिल को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का फैसला किया गया।

आल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रतिनिधि मण्डल के साथ मैंने भी जेपीसी के समक्ष देशज पसमांदा का पक्ष रखा है। अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए, कई एक सुझाव के साथ मैंने इसमें दलित और आदिवासी मुसलमानो को भी प्रतिनिधित्व देने की गुहार लगाई है।जिस पर वहाँ मौजूद ज्यादातर सदस्यों ने सहमति भी जताई थी। साथ ही साथ बिल के पक्ष मे अपना समर्थन दिया है।

आखिर क्या हैं वक़्फ़ बोर्ड का मूल आधार, उद्देश्य और स्थापना के कारण ? वक्फ का मतलब दान दी गयी संपत्ति होता है. उस दान दी हुई राशि और संपत्ति से गरीब, कमजोर और असहाय लोगों की ही मदद की जानी चाहिए।लेकिन गहन पड़ताल करने पर यह समझ आता है कि आजादी और बंटवारे से पहले ही तत्कालीन सरकार से मिलकर कुछ अशराफ लोगों ने वक़्फ़ बोर्ड जैसे संस्था का निर्माण करवा कर ऐसे कानून बनवाए,जिससे उनका स्वार्थ सिद्ध होता रहे। समय- समय पर इसके नियम कानून में बदलाव होते रहते हैं और अशराफ की पकड़ बोर्ड पर मजबूत होती रही है।

विधिवत रूप से 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ. हालांकि, 1995 के संशोधन से वक्फ बोर्ड को अनेक शक्तियां मिलीं. पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को और अधिक शक्तियां प्रदान कर दी।

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी.

वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा. बाद मे वर्ष 2013 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने 1995 के मूल वक्फ एक्ट में बदलाव करके बोर्ड की शक्तियों में और वृद्धि करते हुए वक्फ को इससे संबंधित मामलों में लगभग पूर्ण स्वायत्तता प्रदान कर दिया।

अभी तक चाहे देश में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, लेकिन आप वक्फ बोर्ड पर ध्यान देंगे तो उसमें अब तक अशराफ यानी कि शासक वर्गीय मुसलमानो को ही उसके कर्ता-धर्ता पाएंगे,ये लोग इसको अपने स्वार्थ के हिसाब से मैनेज करते रहें हैं न कि वक़्फ़ के धार्मिक आधार के निर्देशित पहलु से।

जबकि इस्लामिक कानून के मुताबिक वक्फ किये गए किसी भी संपत्ति का क्रय-विक्रय नहीं किया जा सकता है।

वक्फ की प्रॉपर्टी को लेकर आये दिन नित नये विवाद सुनाई और दिखाई देते रहते हैं।

अभी हाल मे कर्नाटक से एक खबर आयी थी कि वक्फ बोर्ड द्वारा किसानों की जमीनों पर दावों के खिलाफ किसानों ने जन आंदोलन छेड़ दिया है।कर्नाटक के वक़्फ़ मंत्री जमीर अहमद खान ने एक बैठक में वक्फ बोर्ड की जमीनों का सर्वेक्षण करने की बात की थी। किसानों का आरोप है की जमीनों के मालिकाना अधिकार वाले पत्रों में पहले ही बदलाव कर दिया गया है जिसे किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि कर्नाटक के गृह मंत्री जी.परमेश्वर ने किसानों को कहा है कि उनकी सरकार  मामले की समीक्षा करेगी।

यह मामला वक्फ बोर्ड की विसंगतियों को ही परिलक्षित करता है और यह बताता है कि मौजूदा वक्फ बोर्ड में संशोधन की आवश्यकता कितनी अपरिहार्य है।

ऐसे कई एक उदाहरण आसानी से मिल जाते है कि फलां प्रॉपर्टी वक्फ की नहीं थी लेकिन वक्फ ने कब्ज़ा कर रखा है।

वक्फ की प्रॉपर्टी को लेकर गुंडागर्दी, मारपीट, जबरिया कब्ज़ा माफिया गिरी आदि सामान्य बात है।

स्वयं केंद्रिय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरन रिजिजू ने भी वक्फ बोर्ड में माफिया का कब्जा होने की बात को स्वीकार किया है।

ऐसी तमाम विसंगतियों के निस्तारण के लिए वक्फ बोर्ड के पास अपना खुद का ट्रिब्यूनल कोर्ट है। लेकिन यहाँ भी अशरफो का वर्चस्व होने के कारण ज्यादातर मामले अधर मे ही लटके रहते है।वक्फ के भीतर जमा लोगों को बस अपना स्वार्थ सिद्ध करना है। वक्फ के पास पावर है, सरकार ने भी वक्फ को पावर दिया ताकि गरीबों और असहाय की मदद हो सके, लेकिन उस पावर का गलत इस्तमाल किया गया. भारत में ज्यादातर जो मुस्लिम लीडर हैं वो अशराफ ही हैं, इसलिए अगर उनका कोई भाई लूट रहा होता है, तो दूसरा उसका विरोध नहीं करता है.

वक्फ द्वारा कई जगह हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा की बात सामने आई है तो ये हो सकता है।इसके साथ ही कई ऐसी संपत्तियों पर भी ये दावा करते हैं जो भारत में इस्लाम आने के पहले के हैं।

यहाँ यह बताना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता हैं कि बहुत से मस्जिदो, मदरसों और कब्रिस्तानो के लिए ज़मीन हिन्दुओ ने गाँव के मुसलमानो को दे रखी हैं या वक़्फ़ कर दीं हैं ताकि उनके गाँव के मुसलमानो को अपने धार्मिक क्रिया कालापो के लिए दूसरे गाँव या कही दूर ना जाना पड़े।

मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर भी वक्फ बोर्ड अपना दावा करते आया है। कई जगहों के कब्रिस्तान, मस्जिद और मदरसा तक को अपना बताते हुए कब्जा कर लिया है हलाकि इन धार्मिक संपत्तियों का वक़्फ़ बोर्ड से कोई मतलब नहीं रहा है।जिन संपत्तियों को अगर किसी ने वक्फ कर दिया हो, उस पर भी वक्फ बोर्ड का कब्जा है, इसके साथ ही उन संपत्तियों को कई बार अपने फायदे के लिए बेच दिया जाता है।

वर्तमान केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड के कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने के लिये वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया गया है ।

ये संशोधन विधेयक वक्फ बोर्ड में व्याप्त अनियमितताओं एवं विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य से वक्फ अधिनियम-1995 के कुछ प्रावधानों को हटाने की बात करता है।

इस संशोधन विधेयक को पेश करने के संदर्भ  में सरकार का दावा है कि इससे वक़्फ़ बोर्ड के प्रबंधन में सुधार होगा एवं इसके साथ ही इस विधेयक का उद्देश्य वक़्फ़ सम्पत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना, भ्रष्टाचार आदि पर नियंत्रण पाना, वक़्फ़ सम्पत्तियों के विकास और संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ साथ  यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना कि वक़्फ़ सम्पत्तियों का उपयोग हितधारक समुदाय के लाभ के लिए ही किया जा सके ।

एनडीए सरकार के उपर्युक्त दलीलों और दावों के बावजूद विपक्ष, अशराफ़  समाज के उलेमाओं एवं अशराफ़ मुस्लिम सांसदों एवं तथाकथित सेक्यलर लिब्रल बुद्धिजीवीओ द्वारा इस प्रस्तावित विधेयक का प्रारम्भ से ही पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। इस विधेयक का विरोध करने वालों के अपने तर्क और आशंकाएँ है। विपक्ष का मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करता है। वे इसे समुदाय के अधिकारों पर सरकार का हस्तक्षेप मानते हैं। हर मामले की तरह इस विषय पर भी मुस्लिम समाज के लोगों को भ्रमित किया जा रहा है।

वक़्फ़ बोर्ड की उपर्युक्त विसंगतियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि अगर वक्फ संसोधन बिल पास हो जाए तो पूरे मुस्लिम समुदाय और देश दोनों को फायदा होगा।

अभी जिस तरह से विरोध हो रहा है, बिल के पास होने के बाद भी होगा, ठीक उसी तरह जब कभी तीन तलाक के बारे में विरोध हो रहा था, हालांकि वो कदम समाज के हित के लिए था।

तथाकथित सेक्युलर, लिबरल और अशराफ़ गठजोड़ वाले मीडिया, बुद्धिजीवी लोगो द्वारा पूरे मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है और सरकार की मनसा पर प्रश्नवाचाक चिन्ह लगा रहें हैँ, जबकि सरकार सिर्फ संशोधन करने की बात कर रही है, तो लोगों को पहले समझना होगा कि इसको बेवजह का संप्रदायिक मसला बनाने की कोशिश ना किया जाए।

मुस्लिम समाज को एक समतावादी समाज माना जाता है लेकिन व्यावहारिक धरातल पर भारतीय मुस्लिम समाज में भी स्तरीकरण दिखायी देता है। इसमें तीन प्रमुख श्रेणियां देखी जाती हैं। अशराफ उच्च वर्ग के मुसलमान माने जाते हैं, जिनका दावा है कि वे अरबी, तुर्की, फारसी या अफगान वंश से संबंधित हैं। अशराफ में सैयद, शेख, पठान और मुगल जैसी उच्च जातियां आती हैं।

अजलाफ निम्न वर्ग के मुसलमान माने जाते हैं, जिनका संबंध परिवर्तित हिंदुओं से है। इस श्रेणी में कारीगर, किसान और श्रमिक वर्ग के मुसलमान शामिल होते हैं। अरजाल सबसे निचली श्रेणी के मुसलमान माने जाते हैं, जो मुखतः दलित जातियों से मतांतरित हुए हैं। इन्हें समाज में सबसे अंतिम पायदान पर रखा जाता है। नीचे के इन दो मुस्लिम वर्गों को मिलाकर ‘पसमांदा मुस्लिम’ समूह की रचना होती है। पसमांदा मुस्लिम एक सामाजिक-आर्थिक और जातिगत श्रेणी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को संदर्भित करती हैं। “पसमांदा” शब्द का अर्थ है “पीछे छूट गए” या “वंचित”। यह उन मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं।

अधिकतर पसमांदा मुस्लिम अधिकार कार्यकर्ताओ  का कहना है कि प्रस्तावित बदलाव क्रांतिकारी हैं, इससे वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण, सत्यापन, लेनदेन में पारदर्शिता आएगी और इससे गरीब मुसलमानों को वक्फ के विवादों से मुक्ति मिलेगी। नए वक्फ बोर्ड बिल के प्रस्तावों में महिलाओं के साथ-साथ पसमांदा वर्ग के पिछड़े मुसलमानों के लिए प्रावधान किए गए हैं। इससे महिलाओं-पसमांदा वर्ग के लोगों की बेहतरी की राह खुलेगी।

तथाकथित अशराफ उलेमा, अशराफ राजनीतिज्ञ आदि लोग वक्फ संपत्तियों पर सांप की तरह कुंडली मारे बैठे हैं, जबकि 85 प्रतिशत पसमांदा (अति पिछड़ा व शोषित वंचित) मुसलमान यानी पसमांदा मुसलमान को वर्षो से मृग तृष्णा दिखाया जा रहा है,पस्मान्दा मुसलमान को वक्फ संपत्तियों से कोई लाभ नहीं मिल रह है उनका मानना है कि इस विधेयक का विरोध करने वाले मौलाना अरशद मदनी और उन जैसे तमाम लोगों की दलीलें मतलबपरस्ती वाली हैं और इन लोगों ने पसमांदा मुसलमानों के हित में कभी कुछ नहीं किया, उल्टे इनका इस्तेमाल किया है।

वक्फ संशोधन विधेयक लाकर सरकार कुछ अच्छा करना चाहती तो ऐसे लोग व उनके सहयोगी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने में जुटे हुए हैं ।

सेक्युलर, लिबरल और अशराफ़ गठजोड़ वाले मीडिया, बुद्धिजीवी लोगो को समझना चाहिए कि वक़्फ़ बोर्ड सरकार की संस्था है समय समय पर सरकारों ने उसके लिए एक्ट बनाए उसमें सुधार(अमेंडमेंट) भी करते रहें हैं।

इसमें व्याप्त करप्शन/विसंगतियों को दूर करने के लिए यह बिल लाया गया है इस के कुछ पॉइंट्स पर सहमति असहमति जताई जा सकती है किंतु पूरे बिल का विरोध करना रिग्रेसिव एटीट्यूड है। जिससे समाज और देश दोनों को बचना चाहिए।

यही कारण हैं कि पसमांदा आंदोलन से जुड़े अधिकतर लोगों  का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  वक्फ से संबंधित संपत्तियों के संबंध में जो निर्णय लिया है, वह पसमांदा मुसलमानों के हित में है। इसलिए पसमन्दा मुसलमान इस संशोधन को खुलकर सपोर्ट कर रहें हैं।

वक़्फ़ संशोधन विधेयक को लेकर मुस्लिम समाज के अत्यंत पिछड़े  वर्ग को उम्मीद की किरण दिखाई देती है| वक़्फ़ की संकल्पना जिस नेक  इरादे के साथ  की गयी उसमें समय के साथ तमाम बुराइयाँ घर कर गयी जिसे दूर करना अतिआवश्यक है।

इस संशोधन विधेयक के माध्यम से सरकार के द्वारा वक़्फ़ बोर्ड में यथोचित बदलाव का दावा किया जा रहा जिसको लेकर पसमंदा समाज बहुत आशान्वित है।

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