अंतत: अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के मध्य वक्फ संशोधन क़ानून 2025 के वैधता की लड़ाई देश के सर्वोच्च न्यायालय में लड़ी जायेगी । वैसे इसकी आशंका भी थी क्योंकि वक्फ संशोधन क़ानून के दोनों सदनों से पारित होते ही अनेक सांसदों द्वारा भी इसकी संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात की जाने लगी थी और सात अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलेमा – ए – हिन्द की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को इससे संबंधित विभिन्न याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार करने का आश्वासन दिया था । अब यह कोई नई बात नहीं रही कि देश की संसद के दोनों सदनों से पारित विधेयक के क़ानून बन जाने के उपरांत उसकी संवैधानिकता को चुनौती सुप्रीम कोर्ट में न दी जाए । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है । इतिहास साक्षी है कि समयानुरूप जिसमें बदलाव नहीं हुआ वह समय के साथ अप्रासंगिक हो गया । साथ ही समय – समय पर अगर परिवर्तन न हो तो कालानुरूप कई विकृतियों का जन्म भी होने लगता है । संभवत: समयानुसार विभिन्न आवश्यकताओं के अनुरूप भारतीय संविधान में अब तक कई संशोधन किए जा चुके हैं । इसी संशोधन की कड़ी में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उसको नियंत्रित करने वाले कानूनों एवं उभरती हुई अन्य चुनौतियों के समाधान हेतु कई संशोधन किए भी जा चुके है । लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने पश्चात् वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 पर राष्ट्रपति के द्वारा हस्ताक्षर करने के साथ ही यह विधेयक अब क़ानून बन चुका है एवं आठ अप्रैल को भारत सरकार द्वारा इस क़ानून की आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी गयी है । इस संशोधन का प्रमुख उद्देश्य है कि वक्फ क़ानून में पारदर्शिता बढ़े और वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग न हो एवं इसके शासन की संरचनाओं में आवश्यक सुधार हो ताकि वक्फ प्रबंधन से समुचित समावेशी विकास हो सके । परन्तु अभी भी इस कानून को लेकर सत्ता और विपक्ष के मध्य रस्साकसी चल रही है । एक तरफ तो सत्ता पक्ष ने फ्लोर मैनेज करके इस विधेयक को दोनों सदनों में पास करवा लिया वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इस क़ानून के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है ।
भारतीय राजनीति का यह कटु सत्य है कि विभिन्न राजनेताओं द्वारा देश के हित को सर्वोपरि रखने की बजाय वें अपने राजनीतिक स्वार्थ को सर्वोपरि रखते हुए अपनी सुविधानुसार संविधान के किसी भी संशोधन का विरोध – समर्थन करते हैं । भारतीय सन्दर्भ में यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य ही है कि हिन्दुओं के बाद देश की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला समुदाय भी अल्पसंख्यक की श्रेणी में आता है और उससे संबंधित सरकार की सभी योजनाओं का लाभ भी लेता है । ध्यान देने योग्य है कि मुस्लिम – तुष्टिकरण और जातिवाद की राजनीति ने देश का सबसे अधिक नुकसान किया है । मुस्लिम – तुष्टीकरण की सबसे बड़ी पराकाष्ठा यह है कि एक बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहाँ तक कह दिया था कि देश के संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार मुसलमानों का है, और तो और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दिल्ली के सौ से अधिक संपत्तियों को तत्कालीन सरकार ने वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया । वक्फ के विचारों का समावेश पूर्णत: इस्लाम की परंपराओं और उनके कानूनों में है । एक बार वक्फ की संपत्ति घोषित हो जाने बाद वह अविभाज्य, अपरिवर्तनीय और अहस्तांतरित हो जाती है क्योंकि अल्लाह हमेशा के लिए है, इसलिए वक्फ संपत्ति भी हमेशा के लिए होती है और वक्फ की संपत्ति को बेचा, विरासत व उपहार में नहीं दिया जा सकता है ।
कुछ मुस्लिम नेताओं समेत विपक्षी दलों के कई नेताओं के लिए वक्फ क़ानून एक धार्मिक विषय मात्र है । परन्तु वक्फ अधिनियम 1995 में स्पष्टतौर पर लिखा गया है कि भारत में वक्फ क़ानून सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और विनिमय व सरंक्षण के लिए होगा । ध्यान देने योग्य है कि वक्फ अधिनियम 1995 के अनुसार किसी भी संपत्ति (चल और अचल) को उन सभी कार्यों के लिए स्थायी रूप से दान में दिया जा सकता है जो इस्लामिक धर्म में पवित्र और धार्मिक हो । साथ ही इससे यह ऐसी अपेक्षा भी की जाती है कि वक्फ संपत्तियों और इससे होने वाली आय से कब्रिस्तान और मस्जिदों की देखरेख, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं व शैक्षणिक संस्थाओं का प्रबंधन करने के साथ – साथ निर्धनों और दिव्यांगजनों की सहायता की जाए । परन्तु वक्फ संपत्तियों की अपरिवर्तनशीलता, कुप्रबंधन, कानूनी विवाद, अधूरा सर्वेक्षण, वक्फ कानूनों का दुरुपयोग, न्यायिक निगरानी न होना और वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता समेत अन्य कारणों के कारण ही सरकार को वक्फ संशोधन विधेयक 2025 को संसद में पारित कर क़ानून बनाया गया । स्वतन्त्रता पश्चात् वर्ष 1954 से लेकर वर्ष 2013 तक वक्फ अधिनियमों में समयानुसार कई बदलाव किए जा चुके हैं । बदलाव की इसी कड़ी में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 बनाया गया है जो कि राजनीतिक नफ़ा – नुकसान के आंकलन को ध्यान में रखकर अनेक राजनेताओं द्वारा कुछ मुसलमानों के साथ खड़े होकर यह दिखाने भर का प्रयास मात्र है कि उन्हें भी यह वक्फ संशोधन पसंद नहीं आ रहा है । इस नापसंद का एक प्रमुख उद्देश्य वोटबैंक की राजनीति भी है क्योंकि आने वाले समय में कई राज्यों में विधानसभा का चुनाव भी है । इसलिए अनके राजनेता और उनके राजनीतिक दल स्वयं को अधिक मुस्लिम – हितैषी दिखाने का प्रयास करते हुए इस वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में देश की सर्वोच्च न्यायालय जा चुके हैं । अब सत्ता पक्ष स्वयं भी सुप्रीम कोर्ट जा चुका है और अदालत से कह रहा है कि इस संबंध में कोई भी निर्णय देने से पूर्व वह उसका पक्ष भी सुने । हालांकि वक्फ संशोधन विधेयक को संसद में पेश करते हुए सरकार ने यह तर्क दिया तथा कि वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पंथनिरपेक्ष है तथा वह पारदर्शी है और जवाबदेही तय करता है । साथ ही सरकार ने यह भी स्पष्ट किया था कि वक्फ बोर्ड और केन्द्रीय वक्फ परिषद् की भूमिका मात्र नियामक की है न कि धार्मिक है, जिसके कारण मुस्लिम समुदाय का समावेशी विकास सुनिश्चित होता है क्योंकि इसके द्वारा सभी हितधारकों को सशक्त बनाकर और शासन में सुधार कर एक प्रगतिशील निष्पक्ष ढांचा तैयार किया जाएगा । अब आने वाले दिनों में कोर्ट के निर्णय से ही पता चलेगा कि ऊँट किस करवट बैठेगा परन्तु इस ‘उम्मीद’ नामक क़ानून से मुस्लिम समुदाय के लोगों का और अधिक विश्वास हासिल कर उनका समग्र और समावेशी विकास सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए ।
(The views expressed are the author's own and do not necessarily reflect the position of the organisation)