हेमंत पाणिग्रही
- एक पत्रकार के जीवन में वैसे तो बहुत ऐसी घटनाएं होती हैं जो जीवन भर याद रहती है, कुछ घटनाएं गुदगुदाती हैं, तो कुछ रूलाती भी हैं, कुछ विस्मय पैदा करती है तो कुछ रोमांच, लेकिन 6 अप्रैल 2010 की वो सुबह आज भी सालती है, उस क्षण के स्मरण मात्र से ही अंतर्मन कांप जाता है। होता यूं है कि हर दिन मैं खबरों का इंतजार करता था उस दिन खबर मेरा इंतजार कर रही थी, ऐसी खबर जो पूरे मानव समाज को झकझोरने वाली।उस दिन दफ्तर पहुचने पर एक खबर आयी कि बस्तर में एक बड़ा नक्सली हमला हुआ है, जिसमें कुछ सीआरपीफ के जवान मारे गए हैं। इस तरह की खबरों से नाता आम तौर पर हमेशा से रहा है। जब से पत्रकारिता में सक्रिय हुआ हूं तब से ही नक्सली वारदातों को कव्हर करता रहा हूं। लेकिन ताड़मेटा की बात कुछ और थी। खबरों का सिलसिला जारी था, लेकिन मरने वाले जवानों की संख्या कितनी है इस पर अभी भी संशय बना हुआ था। वास्तविक स्थिति को जानने के लिए मैं रायपुर स्थित सीआरपीएफ मुख्यालय पहुंचा लेकिन घटना को ल्रकर वहां भी स्थिति स्पष्ट नहीं पायी थी। चारों ओर अफरातफरी का माहौल था, सीआरपीएफ मुख्यालय में लगातार बज रही टेलीफोन की घंटियों ने वहां तैनात जवानों की चिंता बढ़ रही थी। धीरे-धीरे सुचना मिलने लगी लेकिन वो भी अपुष्ट थी, इन सब के बीच एक बात थी वो यह थी कि मरने वाले जवानों की संख्या लगातार बढ़ रही थी, लेकिन वास्तविक संख्या कितनी थी यह अब भी स्पष्ट नहीं हो पाया था।
एक पत्रकार होने के नाते खबरों को लगातार प्रेषित करना मेरी ड्यूटी थी, लेकिन वहां का माहौल मुझे विलित कर रहा था।
स्थिति धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी और दोपहर तक सब कुछ साफ हो गया, इस हृदय विदारक घटना में देश ने 76 जवानों को खो दिया था, नक्सलियों की कायराना करतूत ने पूरे मानव समाज को हिला कर रख दिया था।
सीआरपीएफ मुखयलय में सन्नाटा और वहां तैनात अधिकारियों के चेहरे का भाव उनके मन की पीड़ा को बरबस ही दर्शा रहा था। मन की संवेदना ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर इतनी बड़ी वारदात को नक्सलियों ने कैसे अंजाम दिया।
अब मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूलने वाली घटना से रूबरू होने जा रहा था। सीआरपीएफ के मुख्यालय की एसाइनमेंट खत्म होने के बाद मुझे बस्तर में यथा स्थिति की रिपोर्टिंग के लिए कहा गया और तुरंत बस्तर जाने की व्यवस्था भी की गयी। बस्तर पहुचते ही मुझे शहीदों के शवों पर स्टोरी करने का निर्देश मिला और तैनाती जगदलपुर के महारानी अस्पताल मंे हुई। यह वही स्थान था जहां असमय कालकवलित हुए जवानों का पोस्टमार्टम चल रहा था। यह एक ऐसा हृदय विदारक दृष्य था जिसे मैं आज स्मरण करता हूं तो अंदर से कांप जाता हूं। मैं एक ऐसे घटना का साक्षी था जो आने वाले समय में वर्ग संघर्ष को कलंकित करने जा रहा था, सर्वहारा समाज की लड़ाई की आड़ में हो रहे कुकर्मो की गाथा लिखने वाला था। अस्पताल में तैनात सिपाहियों के चेहरे तब देखने लायक होते थे जब किसी शहीद के परिजन का फोन आ जाता था। उस पीड़ा को शब्दों में वयां करना किसी के लिए भी संभव नहीं था।
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के भाषण के बाद वह घटना बार-बार मन को विलित कर रही है। कन्हैया ने अपने भाषण में जब सीमा पर मरने वाले जवनों को अपना भाई बताता है तब मैं उससे यह पूछता हूं और मैं ही नहीं पूरा देश पूछता है कि ताड़मेटला में जिन 76 जवनों को आपके सहोदर संगठन द्वारा बेरहमी से मार दिया गया वह किसके भाई थे, किसके पिता थे, किसके पति थे, जिनके मरने का जश्न आप गंगा ढ़ाबा पर गोमांस और मदिरा के साथ मनाया था, क्यों इसका भी जवाब देना चाहिए आपको।
क्या किसी के घर में मातम पसरा हो और आप जश्न मना सकते हैं? लेकिन इस घटना के बाद इस विश्वविद्यालय में जश्न मनाया गया। जिसकी चर्चा उस समय भी थी और वर्तमान में भी हो रही है।
आखिरकार देश की सबसे बड़े विश्वविद्यालय में विचारधारा के नाम पर क्या हो रहा है। पूरा देश देख रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह कैसा गंदा खेल खेला जा रहा है, आखिर इसमें किसका हित निहित है।
अब एक सवाल यह उठता है कि बस्तर की आप नेत्री सोनी सोढ़ी जेएनयू कैंपस में जाकर कन्हैया कुमार से मुलाकात कर तथाकथित आजादी की मांग का समर्थन करती है। आप नेत्री सीेनी सोढ़ी वहीं है जिन पर कुछ दिनों पहले अज्ञात लोगों ने हमला कर दिया था। उन पर हुए हमला की हम सब निंदा करते हैं । एक सवाल यह भी उठता है कि जेएनयू में जाकर कन्हैया कुमार का समर्थन करती है। परंतु बस्तर में नक्सली हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों से मुलाकात क्यों नहीं करती हैं जिनके परिजन बस्तर विवि से संबंद्ध महाविद्यालयों में अध्ययनरत होंगे। अब लगने लगा है कि कुछ लोग अपनी राजनीतिक अस्तित्व को बंचाए रखने के लिए इस तरह के वातावरण को बनाए हुए हैं ताकि वो अपना तथाकथित वर्ग संघर्ष जारी रख सकें। लेकिन अब लगता है कि देशद्रोही शक्तियों का विरोध समूचा समाज एक जुटता के साथ कर रहा है और हम एक साथ सशक्त लोकतंत्र की ओर हैं।