नरेंद्र मोदी बीस वर्षों से संवैधानिक पद पर है। वह सात वर्षो से वह प्रधानमंत्री है, उसके पहले वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इन दो दशकों में उन्होंने एक भी अवकाश नहीं लिया। वह अपने जन्म दिन पर औपचारिकता से दूर रहते है,पहले जब समय मिलता था तो अपनी माँ का आशीर्वाद लेने जाते थे। होली दीपावली जैसे त्योहार वह सैनिकों के बीच मनाते है। इन दिनों में भी वह शेष समय में सरकारी कार्य जारी रखते है। उनका जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित है। परिजनों ने इस बात को मन से स्वीकार कर लिया था। मोदी ने भी समाज सेवा व्रत का पूरी मर्यादा से पालन किया। कुछ तो ऐसा है कि गुजरात से लेकर आज तक विरोधी उनकी बराबरी करने में विफल रहे। मोदी लगातार आगे बढ़ते रहे, विरोधी उनके मुकाबले पीछे छूटते गए। इसका कारण नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की नेकनीयत है,इसके बल पर आमजन के बीच उनकी विश्वसनीयता कायम है। लोगों को विश्वास है कि मोदी देश व समाज के प्रति समर्पित है। वह पूरे देश को अपना परिवार मानकर समर्पित भाव से सतत सक्रिय है। डिजिटल इंडिया,स्किल इंडिया,मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप,स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री जन-धन योजना,मुद्रा योजना, फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना,प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और सागर माला, भारत माला नमामि गंगे परियोजना आदि की अभूतपूर्व उपलब्धि उनकी नेकनीयत के ही प्रमाण है। राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से भेजे गए सौ पैसे में गरीबों तक मात्र पन्द्रह पैसे पहुंचते है। मोदी ने ऐसा कर दिया कि अब शतप्रतिशत धन गरीबों के बैंक खाते में पहुंचने लगे। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है। श्री रामजन्म भूमि पर मंदिर निर्माण हेतु भूमिपूजन हुआ। इसके पहले अनुच्छेद तीन सौ सत्तर,पैतीस ए और तीन तलाक की समाप्ति हुई। नागरिकता संशोधन कानून लागू हुआ। यह सब नरेंद्र मोदी की दृढ़ता से संभव हुआ। कोरोना संकट ने आर्थिक गतिविधियों को सीमित किया है। इसका प्रतिकूल प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ना ही था। लेकिन यह समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है।
दुनिया के सभी देशों में जीडीपी का ग्राफ नीचे आया है। ऐसे में केवल भारत का उल्लेख करना निराश करने वाला है। परिस्थियों के अनुरूप ही आकलन होना चाहिए। लेकिन कुक लोग वर्तमान समय की तुलना पिछली यूपीए सरकार से कर रहे है। वह कोरोना के समय आई गिरावट पर फोकस करते है। यह संकट स्थाई नहीं है। इसमें भी नरेंद्र मोदी सरकार ने अबतक का सबसे बड़ा आर्थिक पैकेज दिया है। ऐसे में यूपीए सरकार से तुलना इस समय बेमानी है। कार्यशैली और घोटालों के मामले में मनमोहन सिंह व मोदी सरकार के बीच जमीन आसमान का अन्तर है। इस तथ्य को देश का आम जनमानस भी स्वीकार करता है। यह ठीक है कि देश में आज भी बहुत समस्याएं हैं। वर्तमान सरकार की नीयत पर आमजन को विश्वास है। यह माना जा रहा है कि सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है। यूरिया खाद की उपलब्धता, फसल बीमा को व्यापक रूप में लागू करना, सिंचाई, बिजली आदि की रैंकिंग में आगे निकलना,मेक इन इंडिया,स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया आदि के दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे। देश पुनः तेज दर से विकास करेगा। भारत की अर्थव्यवस्था पर दुनिया का भरोसा बढ़ा है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में अनेक महत्वपूर्ण योजनाएं लागू की ही हैं। साथ ही पिछली सप्रंग सरकार के समय शुरू की गयी कई अनेक योजनाओं को भी आगे बढ़ाया है। इनकी गति व स्वरूप से दोनों सरकारों के बीच का अन्तर आसानी से समझा जा सकता है।
योजनाएं बनाने में सप्रंग सरकार भी कम नहीं थी। लेकिन क्रियान्वयन के स्तर पर उसका प्रदर्शन दयनीय रहा। उनकी गति बहुत धीमी थी। इसके अलावा घोटालों की वजह से भी अनेक योजनाएं विफल साबित हुई थीं। बड़ी संख्या में परियोजनाओं पर कार्य तो शुरू हुआ लेकिन कुछ समय बाद उनको रोक दिया गया। ऐसी परियोजनाएं वर्तमान सरकार को विरासत में मिली हैं। इनकी लागत भी बहुत बढ़ चुकी थी। इस आधार पर दो प्रमुख निष्कर्षों का उल्लेख किया जा सकता है। एक यह कि मोदी सरकार ने कार्यशैली में बहुत बदलाव किया है। इसके पीछे प्रधानमंत्री के नेतृत्व का भी प्रभाव है। इस कारण क्रियान्वयन पक्ष मजबूत हुआ है। दूसरा यह कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार व घोटालों से मुक्त रही है।
कोरोना से पहले दुनिया में भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। विश्व के थिंक टैंक व आर्थिक विशेषज्ञ भी इस तथ्य को स्वीकार करने लगे थे। दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की थी। लेकिन भारत उसके सामने चुनौती बनकर उभर रहा है। चीन के रणनीतिक थिंक टैंक एन बाउंड ने यह विश्लेषण प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार चीन पिछड़ रहा है। उसने जवाबी रणनीति नहीं बनाई तो वह भारतीय सफलता का तमाशबीन बनकर रह जाऐगा। चीन ने भारत का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया है। सच्चाई यह है कि मोदी सरकार में बहुत कुछ बदल रहा है। जो बदलाव भारत में हो रहे हैं वे विकास की बड़ी संभावना की ओर इशारा करते हैं। भारत में उभरते हुए बाजार की संभावना भी अधिक है और निवेशक उसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि चीन की अर्थव्यवस्था ढलान पर है। भारत उसकी जगह ले सकता है। चीन का कर्ज उसके जीडीपी का दो सौ साठ प्रतिशत हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इसे लेकर उसे चेतावनी भी दी है। बढ़ते कर्ज को कम नहीं किया गया तो चीन की अर्थव्यवस्था धड़ाम हो जाएगी। अर्थात उसे मुंह के बल गिरने से कोई रोक नहीं सकेगा। इसी लिए वह बौखला रहा है।
करीब तीन वर्ष पहले विश्व बैंक की भारत के संबंध में अनुकूल रिपोर्ट थी। इसके अनुसार वैश्विक आर्थिक सुस्ती के बावजूद भारत की विकास दर सात प्रतिशत पर बनी हुई थी। कोरोना संकट के बाद यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। केन्द्र सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास की व्यापक योजनाएं बनाई हैं। लेकिन इनका लाभ उन्हीं राज्यों को ज्यादा मिलेगा,जो खुद सजग व तत्पर होंगे। उन्हें सहयोगी संघवाद की भावना से काम करना होगा। विकास के मामले में दलगत सीमा से ऊपर उठना होगा। उत्तर प्रदेश की पिछली सरकार कृषि क्षेत्र में केंद्र से मिली धनराशि का मात्र पचास प्रतिशत ही खर्च कर पाती थी। केंद्र सरकार की कृषि बाजार योजना को भी ठीक से लागू करने का प्रयास नहीं किया गया। इसी प्रकार प्रदेश में पिछली सरकारों ने कृषि विज्ञान केंद्र नहीं खोले थे। योगी आदित्यनाथ सरकार ने बीस कृषि विज्ञान केंद्र खोलने की दिशा में कदम भी बढ़ा दिए हैं। बुन्देलखंड में तीन हजार से ज्यादा खेत तालाबों का निर्माण सुनिश्चित हुआ। हर घर नल से जल योजना आगे बढ़ रही है। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों के संबंध में भी कारगर नीति बनाई थी। नीति आयोग खुद इस दिशा में पहल कर रहा था। कुछ को छोड़ दें तो अन्य सार्वजनिक उपक्रम घाटे में चल रहे हैं। जाहिर है कि राज्य सरकारों को इस दिशा में प्रयास करने होंगे। नीति आयोग ने कहा भी है कि जो सार्वजनिक उपक्रम लगातार घाटे में चल रहे हैं, जिनमें सुधार की ज्यादा संभावना नहीं है, उन्हें निजी क्षेत्र को देने पर विचार करना चाहिए। सरकारी व्यय में लीकेज रोकने का काम भी राज्यों को करना है। जहां तक केन्द्र का प्रश्न है,मोदी सरकार की ओर से सब्सिडी सीधे खातों में भेजने मात्र से हजारों करोड़ का लीकेज रूका है। नीम कोटेड यूरिया ने भी बड़े घोटाले को रोका है। स्पेक्ट्रम,कोयला ब्लॉक आवंटन में पारदर्शिता ने सरकारी राजस्व सुनिश्चित किया है। इस सब मामलों में पहले क्या होता था,यह बताने की जरूरत नहीं। ऐसा लगता था जैसे सरकारी धन में लीकेज के इंतजाम सत्ता में बैठे लोगों ने ही किए थे। इनको रोकने में किसी की दिलचस्पी नहीं थी।
विदेश नीति को भी मोदी सरकार ने प्रभावी बनाया है। अनेक देशों के साथ सहयोग के नए अध्याय शुरू हुए हैं। नरेंद्र मोदी ने सौर ऊर्जा व बौद्ध धर्म के माध्यम से अलग अलग समूह बनाने का जो प्रयास किया है,उसका दूरगामी प्रभाव होगा। विश्व के बीस से अधिक देशों में बौद्ध धर्म है। इनका भारत के प्रति स्वाभाविक लगाव है। इनके साथ साझा मंच बनाने से भारत को वैश्विक मामलों में सहयोग मिलेगा। इनके बीच आपसी सहयोग बढ़ने का आर्थिक व पर्यटन के क्षेत्र में बड़ा लाभ होगा। सौर ऊर्जा के माध्यम से भी अनेक देशों का साझा मंच आकार ले रहा है। इसकी कल्पना मोदी ने की थी। इस देशों में सूर्य देव की अधिक कृपा होती है। इससे ऊर्जा निर्माण की बड़ी संभावना है। यह प्रयास सार्थक हुए तो भविष्य की ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी। वहीं इन सभी देशों के बीच साझा संबंध आगे बढ़ेंगे जिनका सकारात्मक प्रभाव अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई देगा। यह सही है कि पाकिस्तान सीमा पर तनाव कायम है।
चीन के साथ उसका गठजोड़ भारत के लिए परेशानी का कारण है। भारत की सीमाएं सुरक्षित होनी चाहिए। भारतीय सेना चीन को जबाब दे रही है। कुछ लोग इस प्रकार आलोचना कर रहे है जैसे चीन व पाकिस्तान से तीन वर्ष पहले हमारे बड़े अच्छे रिश्ते थे। अब बिगड़ गए। मोदी ने रिश्ते सुधारने के प्रयास किए। विदेश नीति में अनेक तथ्य शामिल होते हैं। कई बार अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते। फिर भी यह नहीं भूलना चाहिए कि दोनों देशों के साथ बड़े युद्ध के बावजूद समझौते करने पड़े थे। संप्रग सरकार ने रक्षा क्षेत्र की तैयारियों में भी लापरवाही दिखाई थी। मोदी सरकार इस दिशा में कमियों को पूरा करने का प्रयास कर रही है। कुछ तो है जो पाकिस्तान इन तीन वर्षों में कई बार संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत की शिकायत लेकर दौड़ा है। उसे मुंहतोड़ जवाब मिल रहा है। जाहिर है मोदी सरकार नेक नीयत के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रही है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)