Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

चीन की चाल को समझें

ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान पाकिस्तान ने कई बार कुत्सित प्रयास किया कि वह अपने साथ अफगानिस्तान को लेकर उसे भारत के खिलाफ युद्ध में शामिल करे परन्तु ऐसा न हो सका । इसके विपरीत अफगानिस्तान ने सार्वजनिक रूप से यह बयान जारी कर दिया कि भारत ने किसी भी ड्रोन या मिसाइल से अफगानिस्तान पर हमला नहीं किया है जिसके कारण पाकिस्तान बेनकाब हो गया और उसे अफगानिस्तान से आंशिक सहयोग भी नहीं मिला । इस महत्वपूर्ण घटना की गंभीरता को देखते हुए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहली बार अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री से बात कर उन्हें ऑपरेशन सिन्दूर के बारें में बताया । बिना देरी किए हुए चीन ने भी अफगानिस्तान से संपर्क किया और उसे अपने महत्वकांक्षी सीपैक प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया । चीन द्वारा अफगानिस्तान को सीपैक प्रोजेक्ट में शामिल करने के पीछे का मुख्य कारण यह है कि उसके कर्मचारियों की बलूचिस्तान में सुरक्षा सुनिश्चित हो सके एवं बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का सहयोग अफगानिस्तान न करे ताकि बलूचिस्तान की एक अलग देश की मांग को पाकिस्तान कुचल सके । इसलिए चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मध्य त्रिपक्षीय फैसला लिया गया है ताकि चीन के द्वारा भारत पर दबाव बनाया जा सके ।

वैश्वीकरण के इस दौर में यह एक तथ्य है कि आज विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाले सभी देशों को भारत का बाजार तो चाहिए लेकिन उन्हें विकसित और मजबूत भारत नहीं चाहिए । क्योंकि चीन समेत पश्चिम के अधिकाँश देशों को लगता है कि अगर भारत अपनी आर्थिक मजबूती के साथ खड़ा हो गया तो उस पर उनका नियंत्रण नहीं रह जाएगा और एशिया महाद्वीप में भारत एक दूसरा मजबूत चीन बन जाएगा । इसलिए भारत को आर्थिक कमजोर बनाए रखने के विषय पर चीन समेत अधिकांश पश्चिमी देशों की मौन सहमति है । परिणामत: नीतिगत मामलों में भारत को उलझाए रखने के लिए ऐसे सभी देश कुछ न कुछ साजिश रचते रहते हैं । इसी परिप्रेक्ष्य में हमें पहलगाम की वीभत्स घटना को भी देखना चाहिए । यह घटना उस समय कश्मीर में हुई जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत के दौरे पर थे और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे पर थे । इस घटना के दो प्रमुख निहितार्थ थे – धारा 370 की समाप्ति के बाद शांत और पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित हो रहे कश्मीर को फिर से वैश्विक पटल पर लाकर उसे अशांत दिखाना तथा भारत का सांप्रादायिक सदभाव बिगाड़ना । अगर हम इस घटना की जड़ में जाएंगे तो पाएंगे कि पाकिस्तान को आगे रखकर कहीं न कहीं चीन भी इस पटकथा लेखन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से शामिल था ।

ध्यान देने योग्य है कि पिछले दिनों अमेरिका और चीन के मध्य चले टैरिफ – युद्ध के बाद मैन्युफैक्चरिंग करने वाली विभिन्न कंपनियों ने इस बदले हुए व्यापारिक समीकरणों के चलते अपना नया ठिकाना खोजना प्रारंभ कर दिया था । हालांकि जबसे डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तभी से चीन ने भारत की अर्थव्यवस्था की प्रशंसा करना प्रारंभ कर दिया था । भारत में चीन के राजदूत जू – फिहोंग ने अपने एक ट्वीट पर भारत को बधाई देते हुए लिखा भी था कि आईएमएफ के आंकड़े के अनुसार वर्ष 2015 में भारत की अर्थव्यवस्था 2.1 ट्रिलियन डॉलर की थी जो अब वर्ष 2025 में 4.3 ट्रिलियन डॉलर की हो गयी है । ध्यातव्य है कि चीन एक ऐसा देश है जो भारत जैसे देश की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था को कभी नहीं सहन कर सकता । लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष यह है कि चूंकि भारत एक तेजी से विकास करती हुई अर्थव्यवस्था है और यहाँ की जनसंख्या अधिक होने के कारण उत्पादन की खपत हेतु यहाँ का बाजार सुलभ है और श्रम भी अपेक्षाकृत सस्ता है । अत: अमेरिका और चीन के मध्य ट्रेड वार से पहले ही कई कंपानियों ने चीन + थ्योरी पर काम करना प्रारंभ कर दिया था । चीन + थ्योरी का अर्थ है कि चीन के अतिरिक्त अन्य किसी देश में उत्पादन करने का प्लांट लगाने का विकल्प । यह सर्वविदित है कि वर्तमान परिस्थिति में चीन का अगर कोई विकल्प देश है तो वह भारत है । क्योंकि भारत में नरेंद्र मोदी के सशक्त नेतृत्व में एक राजनीतिक स्थिरता है तथा अपेक्षाकृत अधिक जनसंख्या होने के कारण सबसे बड़ा बाजार भी है, जिसके कारण प्रत्येक व्यवसायी को भारत हर प्रकार से अनुकूल लगता है । मोबाईल फोन बनाने वाली एप्पल जैसी बड़ी कंपनी ने तो घोषणा तक कर दिया था कि जून के बाद अमेरिका में बिकने वाला हर आईफोन भारत में बना होगा । जिसके कारण चीन का असहज होना स्वाभाविक ही था । परिणामत: वह भारत को उलझाना चाहता है ताकि यहाँ पर राजनीतिक अस्थिरता आ सके और बड़ी – बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां चीन से बाहर भारत में स्थापित न हो सकें ।

पहलगाम में हुई वीभत्स घटना का जबाव जब भारत ने ऑपरेशन सिन्दूर के माध्यम से देना प्रारंभ किया तो चीन को सबसे अधिक आर्थिक चोट लगी जिसके कारण उसका तिलमिलाना स्वाभाविक भी है क्योंकि चीन द्वारा पाकिस्तान को दिए गए उन्नत किस्म के विभिन्न ड्रोन, लड़ाकू विमानों, मिसाईलों और विभिन्न एअरडिफेन्स की तकनीकि को भारत ने एक झटके में ध्वस्त करके उसके रक्षा – व्यवसाय पर बहुत गहरी चोट कर उसकी पोल खोल दिया है । चीन द्वारा दिए गए सभी हथियारों का उपयोग पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ भरपूर किया था परन्तु उसके एक भी हथियार सफल नही हो सके । जिसके कारण से वह अब निर्धन देशों को अपना रक्षा – उपकरण नहीं बेच पाएगा । भारत की चीन पर यह ऐसी आर्थिक चोट है जिसे चीन कभी नहीं भूल सकता है क्योंकि उसके द्वारा पाकिस्तान को दिए गए हथियार इतने दोयम दर्जे के थे कि अंत में पाकिस्तान को अमेरिका तक से मदद के लिए गुहार लगाना पड़ा । युद्ध में अपने हथियारों को असफल होता देख चीन ने बौखलाहट में भारत के अरुणाचल प्रदेश के 27 स्थानों के नाम बदल दिए ताकि भारत पर वह कुछ मानसिक दबाव बना सके परन्तु उसने अनजाने में ही सही लेकिन एक बार फिर से भारत को यह पुष्ट अवसर सोचने के लिए दे दिया कि वह भी पाकिस्तान की ही तरह धोखेबाज पड़ोसी देश है । चीन के इस बौखलाहट भरे रवैये का जब भारत पर कोई असर नही हुआ तो उसने बांग्लादेश को आगे कर दिया ।

बांग्लादेश में तख्तापलट होने के पश्चात अब यह सार्वजनिक हो गया है कि मोहम्मद युनुस ने चीन जाकर भारत के खिलाफ षड्यंत्र करना प्रारंभ कर दिया है और उसकी मंशा है कि चीन के सहयोग से चिकननेक पर कब्जा कर पूर्वोत्तर के राज्यों को भारत के जमीनी संपर्क से काट दिया जाए । इसी रणनीति के तहत चीन के कुछ अधिकारी बांग्लादेश पहुंचे और वहाँ के रंगपुर डिवीजन के लालमोनिरहाट एअरबेस का निरीक्षण किया । इस एअरबेस का क्षेत्रफल मात्र 166 एकड़ है । भारत से लालमोनिरहाट एअरबेस की दूरी मात्र 15 किमी. है और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से तो यह मात्र 135 किमी. ही दूर है इसलिए भारत के लिए इस एअरबेस का रणनीतिक महत्त्व बहुत अधिक है । ध्यातव्य है कि लालमोनिरहाट एअरबेस को 1931 में अंग्रेजों ने बनाया था और द्वितीय विश्वयुद्ध में इसका उपयोग किया था । भारत – पाकिस्तान विभाजन के पश्चात वर्ष 1958 में पाकिस्तान ने सिविल एविएशन के लिए इसका अंतिम बार उपयोग किया था । उसके बाद से यह एअरबेस बंद है ।

वर्ष 2019 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस स्थान पर शेख मुजीबुर्ररहमान के नाम पर एक एविएशन यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय लिया था परन्तु यह कार्य पूरा नहीं हो सका । अब चीन की सहायता से इस एअरबेस के पुनरोद्धार करने का निर्णय मो. युनुस ने लिया है और उसके आसपास अधिक संख्या में चीन अपने कारखाने स्थापित करने लगा है जिसमें अधिकाँश चीन के लोग कार्य कर रहे हैं । इसका सीधा सा अर्थ यह है कि बांग्लादेश की सहायता से चीन रंगपुर के इस डिवीजन से उस क्षेत्र में उपस्थित भारत की सैनिक – गतिविधियों पर नजर रखकर उसकी जासूसी करवायेगा । भारत को पूर्वी और पश्चिमी, दो फ्रंट पर उलझाने के लिए चीन भरसक प्रयास कर रहा है । चीन द्वारा भारत को दो मोर्चे पर एक साथ उलझाने के कारण भारत की स्थिति कमजोर हो जायेगी इसके कारण से भारत अस्थिरता की तरफ बढ़ेगा । एक अस्थिर भारत हमेशा से चीन और अमेरिका के लिए फायदेमंद है क्योंकि अस्थिर भारत में कोई भी कंपनी भारी – भरकम पूंजी – निवेश नहीं करेगी और न ही भारत में अपना प्लांट लगाएगी । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि शक्ति – संतुलन के लिए अमेरिका को भारत की आवश्यकता चीन के विरुद्ध है और भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की है । इसलिए भारत सरकार को अमेरिका और चीन की चाल को अच्छी तरह से समझना चाहिए ।

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