अमेरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत समेत अमेरिका के साथ कारोबार करने वाले अन्य देशों पर 5 अप्रैल से 10% की बेसलाइन टैरिफ आरोपित करने से प्रभावित देशों के शेयर बाज़ारों में 7 अप्रैल को भारी गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का असर तुलनात्मक दृष्टिकोण से कम रहा और सेंसेक्स और निफ्टी में महज़ 4% के आसपास की गिरावट दर्ज की गई, जबकि सबसे अधिक 15.24% की गिरावट हाँगकाँग के शेयर बाजार में, 10.74% की गिरावट ताइवान के शेयर बाजार में और 8.49% की गिरावट जापान के शेयर बाजार में दर्ज की गई। वहीं, अमेरिका के शेयर बाजार में में 5.75% की गिरावट दर्ज की गई।
अमेरिका ने यूरोपीय देशों के मुक़ाबले एशियाई देशों पर ज्यादा टैरिफ आरोपित किया है। यह चीन पर 54%, वियतनाम पर 46%, थाईलैंड पर 36%, ताइवान व इंडोनेशिया पर 32% और भारत पर 26% है। इसलिए, यहाँ के शेयर बाजारों में ज्यादा गिरावट देखी गई है। वैसे, गिरावट के कई घरेलू कारण भी हैं। उदाहरण के तौर पर भारत में विगत 6 महीनों से सेंसेक्स में गिरावट का दौर जारी है। निफ्टी में भी 1996 के बाद यानी 29 सालों के बाद पिछले कुछ दिनों से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने से भारत से निर्यात किए जाने वाले हीरे पर सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि भारत हीरा के उत्पादों के उत्पादन का 1 तिहाई से अधिक निर्यात अमेरिका को करता है।
इन झंझावातों के बावजूद, एक विदेशी एजेंसी के अनुसार वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.3 से 6.8 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है, वहीं, 9 अप्रैल को मौद्रिक समीक्षा के परिणामों की घोषणा करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 6.7% से घटाकर 6.5% और महंगाई के अनुमान को 4.2% से घटाकर 4% कर दिया है। ये अनुमान दर्शाते हैं कि अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर न्यून प्रभाव पड़ेगा।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जीडीपी के वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने पहले अग्रिम अनुमान में जीडीपी वृद्धि दर के 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जो पिछले 3 वित्त वर्षों से कम है। गत वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही थी।
जीडीपी में कमी आने के अनुमान के बावजूद, हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर से बहुत बेहतर है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार 2024 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही और 2025 में 3.3 प्रतिशत रह सकती है, वहीं, आईएमएफ के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था 2024 में 3.1 प्रतिशत और 2025 में 3.2 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है. दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका से भी भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है और आगामी सालों में भी इसके मजबूत बने रहने के आसार हैं। वित्त वर्ष 2024 के दौरान अमेरिका में विकास दर के 2.7 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025 में 2.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
दुनिया के देशों में अभी भी महँगाई का स्तर चिंता का सबब है, लेकिन भारत में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी आने के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा महंगाई दर फ़रवरी 2025 में घटकर 3.61 प्रतिशत के स्तर पर आ गई, जो जनवरी महीने में 4.31 प्रतिशत के स्तर पर थी. अभी महंगाई पिछले 6 महीनों में सबसे कम है। यह दिसंबर महीने में 5.22 प्रतिशत के स्तर पर रही थी, जबकि जनवरी 2024 में यह 5.1 प्रतिशत के स्तर पर थी।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के सूचकांक सेंसेक्स में कुल 30 कंपनियाँ सूचीबद्ध हैं और एनएसई या निफ्टी में 50 कंपनियाँ सूचीबद्ध हैं। शेयर बाजार में देसी, विदेशी संस्थागत निवेशक, व्यक्तिगत विदेशी निवेशक आदि सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश करते हैं। दोनों ही सूचकांक बेहद ही संवेदनशील हैं। जब सूचीबद्ध कंपनियों में से किसी खास कंपनी के शेयर की लगातार बिकवाली की जाती है तो उक्त कंपनी पर से निवेशकों का भरोसा कम हो जाता है और उस कंपनी के शेयरों की कीमत कम हो जाती है, जिससे निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है।
शेयरों की कीमत में उतार-चढ़ाव आने के कई कारण होते हैं। जैसे, कंपनी का ख़राब वित्तीय प्रदर्शन या फिर कंपनी का किसी विवाद में पड़ना, राजनीतिक अस्थिरता, सरकार की नीतियाँ, डॉलर के मुक़ाबले रुपए का कमजोर होना, वैश्विक अनिश्चितता, कारोबारी युद्ध, भू-राजनैतिक संकट, फेडरल रिजर्व का रुख आदि। इनके अलावा, शेयरों का अधिक मूल्यांकन और मनोवैज्ञानिक कारण भी शेयर बाजार के क्रैश के कारण होते हैं.
बहरहाल, अमेरिका द्वारा टैरिफ आरोपित करने से भारत को छोड़कर अधिकांश देशों में मंदी की आशंका उत्पन्न हो गई है, क्योंकि टैरिफ की वजह से प्रभावित देशों के आयात में कमी आयेगी, विदेशी मुद्रा की आवक कम होगी, बेरोजगारी में वृद्धि होगी आदि। चूँकि, दुनिया के अनेक देशों की अर्थव्यवस्था पहले से खस्ताहाल है, इसलिए, वहाँ विकास की गति और भी धीमी पड़ सकती है और मंदी को अपना पैर पसारने का मौका मिल सकता है।
भारत कई उत्पादों जैसे, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी सेवाओं, स्टील आदि का निर्यात अमेरिका को करता है। अस्तु, टैरिफ लगने से अमेरिकी बाजार में इन वस्तुओं की लागत बढ़ेगी, जिससे वहाँ इनकी मांग में कमी आयेगी और भारतीय निर्यातकों को नुकसान होगा। साथ ही, इससे भारत में रोजगार में कमी, व्यापार घाटे में बढ़ोतरी, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, कंपनियों के राजस्व में कमी, आर्थिक गतिविधियों में कमी, विकास की रफ्तार में कमी आदि आ सकती है। निर्यात के स्तर में गिरावट आने से रुपया भी कमजोर हो सकता है, आयात महंगा हो सकता है और मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
वैसे, ऐसी स्थिति के लंबे समय तक बने रहने पर भारत नुकसान की भरपाई के लिए, यूरोपीय संघ, आसियान और मध्य पूर्व जैसे वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश कर सकता है। कोरोना काल में भी भारत मास्क और वैक्सीन के मामले में बहुत जल्द आत्मनिर्भर बन गया था। साथ ही, जवाबी कार्रवाई में, अमेरिका से आयात किए जाने वाले कृषि उत्पादों, मोटर साइकिल, चिकित्सा उपकरणों आदि पर टैरिफ लगा सकता है, जिससे नुकसान की कुछ हद तक की भरपाई हो सकती है।
बजट में सरकार का ज़ोर विकास की गति देने का रहा है, जीडीपी वृद्धि दर में जरूर कुछ कमी आई है, लेकिन रेपो दर में कटौती करने और महंगाई में विगत 6 महीनों से कमी आने से इसमें तेजी आने के आसार हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत बनी हुई है और टैरिफ इसे कमजोर नहीं कर सकती है। इसलिए, भारतीय शेयर बाजार में बिकवाली की गुंजाइश कम है और निवेशकों को निवेश पर आकर्षक प्रतिफल मिलने की संभावना बरकरार है। इसलिए, निवेशकों को घबराने की कतई जरुरत नहीं है, उन्हें बस बेवजह बिकवाली से परहेज करने ने की जरूरत है।
(The views expressed are the author's own and do not necessarily reflect the position of the organisation)