पिछले कुछ समय में भारत और वियतनाम के सांस्कृतिक संबंधों ने एक अत्यंत भावनात्मक और ऐतिहासिक रूप धारण किया है। इस संबंध की नवीनतम कड़ी भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की वियतनाम यात्रा है, जिसने दोनों देशों को न केवल आध्यात्मिक स्तर पर जोड़ा, बल्कि सांस्कृतिक और जन-जन के भावनात्मक ताने-बाने को भी और मजबूत किया। यह घटना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं थी, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, श्रद्धा और भारत-वियतनाम के दीर्घकालिक मैत्री संबंधों का जीवंत प्रतीक बन गई।
भारत के प्रयास से जब भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को वियतनाम ले जाया गया, तो वहाँ की जनता की प्रतिक्रिया अद्भुत और अभूतपूर्व रही। सोशल मीडिया, पत्रों, वीडियो संदेशों और व्यक्तिगत बातचीत के माध्यम से लाखों वियतनामी नागरिकों ने भारत को धन्यवाद कहा। इन संदेशों में औपचारिकता से कहीं अधिक आत्मीयता और श्रद्धा का भाव था। यह उनके हृदय की गहराई से निकला आभार था, जो किसी भी कूटनीतिक संबंध से परे एक आध्यात्मिक बंधन को दर्शाता है।
भगवान बुद्ध के ये पवित्र अवशेष मूलतः आंध्र प्रदेश के पालनाडू जिले स्थित नागार्जुनकोंडा नामक ऐतिहासिक स्थल से प्राप्त हुए थे। नागार्जुनकोंडा बौद्ध धर्म का एक प्राचीन केंद्र रहा है, जहाँ से श्रीलंका, चीन और मध्य एशिया तक बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ था। यह स्थल न केवल पुरातात्त्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए एक सशक्त केन्द्र भी रहा है। यही वह स्थान है जहाँ से भगवान बुद्ध के अवशेषों को सम्मानपूर्वक संजोकर वियतनाम भेजा गया।
भगवान बुद्ध के इन पवित्र अवशेषों को वियतनाम के 9 प्रमुख स्थलों पर जनता के दर्शन हेतु रखा गया। यह आयोजन वहाँ केवल धार्मिक नहीं, अपितु एक राष्ट्रीय उत्सव का स्वरूप धारण कर गया। लगभग 10 करोड़ की आबादी वाले वियतनाम में करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने इन अवशेषों के दर्शन किए। यह संख्या केवल आंकड़ा नहीं, अपितु लोगों की आस्था और भगवान बुद्ध के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा का प्रमाण थी।
सोशल मीडिया पर प्रसारित तस्वीरें और वीडियो अत्यंत भावुक करने वाले थे। लोगों की आंखों में श्रद्धा, चेहरे पर दिव्यता और मन में संतोष का भाव स्पष्ट दिखाई देता था। धूप हो या बारिश, भक्त घंटों कतारों में खड़े रहे बच्चे, वृद्ध, महिलाएं, यहां तक कि दिव्यांगजन भी पूरे समर्पण के साथ दर्शन हेतु उपस्थित रहे। वियतनाम के राष्ट्रपति, उप-प्रधानमंत्री, मंत्रीगण और शीर्ष अधिकारी भी अपने जनमानस के साथ कतार में खड़े होकर दर्शन के लिए उपस्थित हुए। इससे स्पष्ट हुआ कि यह यात्रा केवल जनता का ही नहीं, अपितु शासन का भी आंतरिक आस्था से जुड़ा मामला था।
इस ऐतिहासिक आयोजन की सफलता और जनता की भावनाओं को देखते हुए वियतनाम सरकार ने भारत से निवेदन किया कि यह यात्रा 12 दिनों के लिए और बढ़ा दी जाए। भारत सरकार ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर इस श्रद्धा को सम्मान दिया। यह सहयोग एक बार फिर दर्शाता है कि भगवान बुद्ध के विचार और उनका धम्म केवल किसी एक धर्म या राष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वैश्विक मानवीयता और करुणा का प्रतीक हैं।
इससे पहले भी भारत ने भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष थाईलैंड और मंगोलिया जैसे देशों में ले जाकर वहाँ के लोगों को दर्शन का अवसर प्रदान किया था। इन सभी देशों में जनता की प्रतिक्रिया एक जैसी थी श्रद्धा, करुणा, और आध्यात्मिक आनंद से भरी हुई। यह बताता है कि भगवान बुद्ध के विचारों में एक ऐसी सार्वभौमिक शक्ति है, जो भूगोल, संस्कृति और भाषा की सीमाओं को पार कर विश्व को जोड़ सकती है।
भगवान बुद्ध का धम्म अहिंसा, सम्यक दृष्टि, करुणा, समता और मध्य मार्ग वर्तमान विश्व में भी प्रासंगिक और समाधानकारी सिद्धांतों का स्रोत है। इन मूल्यों के प्रचार से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि वैश्विक सामाजिक समरसता को भी प्रोत्साहन मिलता है।
भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की अंतरराष्ट्रीय यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का भी एक सशक्त उदाहरण है। यह “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को मूर्त रूप देती है। भारत इस यात्रा के माध्यम से यह संदेश दे रहा है कि वह न केवल बौद्ध धम्म की जन्मभूमि है, बल्कि उसकी अंतरात्मा भी आज भी धम्म के मूल्यों से अनुप्राणित है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर सभी भारतीय नागरिकों से यह आह्वान किया कि वे अपने-अपने राज्यों में स्थित बौद्ध स्थलों की यात्रा अवश्य करें। यह यात्रा केवल पर्यटन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अन्वेषण और संस्कृति से संवाद का अनुभव होगी। चाहे वह सांची हो, कुशीनगर हो, सारनाथ हो या धमेक स्तूप ये सभी स्थल भारतीय सभ्यता की उस धारा के प्रतिनिधि हैं, जो अहिंसा और करुणा को जीवन का मूल बनाती है।
भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की वियतनाम यात्रा ने यह प्रमाणित कर दिया है कि श्रद्धा की कोई सीमा नहीं होती। जब एक राष्ट्र, उसकी संस्कृति और उसकी जनता किसी आध्यात्मिक भावना से जुड़ती है, तो वह केवल आयोजन नहीं रह जाता—वह एक चेतना बन जाता है। भारत और वियतनाम के बीच यह चेतना आज और अधिक प्रबल हुई है, और यही वह शक्ति है जो शांति, संवाद और सौहार्द के नए रास्ते खोलती है।
इस ऐतिहासिक घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत न केवल भौतिक विकास का मार्गदर्शक है, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी अगुआ है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ इस पुनर्जागरण की धुरी हैं, और उनके पवित्र अवशेष उन मूल्यों की स्थायी स्मृति हैं, जो आज भी विश्व मानवता के लिए आशा की किरण हैं।
(प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किये गए मन की बात पर आधारित)
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