Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

भारतीय राजनीति की यात्राः जनसंघ से भाजपा तक एकात्म मानववाद के आलोक में

भारतीय राजनीति के इतिहास में भारतीय जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तक की यात्रा एक विचारधारा, संगठन और राष्ट्रीय दृष्टि के अ‌द्भुत समन्वय की कहानी है। यह यात्रा केवल सत्ता प्राप्ति की नहीं, बल्कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और भारतीय संस्कृति के उत्थान की भी है। प्रस्तुत लेख में हम इस ऐतिहासिक यात्रा, उसके वैचारिक आधार, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानववाद’ और भारतीय राजनीति में इसके प्रभाव का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

एकात्म मानववादः भारतीय राजनीति का वैचारिक आधार

भारतीय राजनीति में विचारधाराओं की बहुलता रही है, किंतु पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित ‘एकात्म मानवदर्शन’ ने भारतीय जनसंघ और भाजपा को एक विशिष्ट वैचारिक आधार प्रदान किया। 22-24 अप्रैल 1965 को उपाध्याय जी ने इस दर्शन को प्रस्तुत किया, जो आज भी भाजपा की विचारधारा की रीढ़ है। एकात्म मानवदर्शन के चार मुख्य स्तंभ हैं:

एकात्म मानववाद: व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और प्रकृति के बीच समन्वय ।

अंत्योदयः समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति का उत्थान।

सांस्कृतिक राष्ट्रवादः भारत की सांस्कृतिक एकता और प्राचीन राष्ट्र की अवधारणा।

भारत माता की जयः राजनीति का उ‌द्देश्य राष्ट्र की सेवा और गौरव।

यह चारों बिंदु भाजपा के संगठन, कार्यकर्ता और विचारधारा को दिशा देते हैं, जिससे पार्टी न केवल चुनावी राजनीति, बल्कि समाज परिवर्तन की भी वाहक बनती है।

जनसंघ की स्थापनाः ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और आवश्यकता

1947 में स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन, लाखों लोगों का विस्थापन और नरसंहार, तथा तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व की नीतियों से उपजे असंतोष ने राष्ट्रभक्तों को एक नए राजनीतिक विकल्प की आवश्यकता का अनुभव कराया। कांग्रेस के भीतर नेहरू जी की तानाशाही प्रवृत्ति, लोकतांत्रिक मूल्यों की उपेक्षा और समाजवाद की ओर झुकाव ने जनसंघ की स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार की|

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने महसूस किया कि देश को एक ऐसे राजनीतिक दल की आवश्यकता है, जो राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, लोकतांत्रिक मूल्यों और भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य करे। इसी चिंतन से 1951 में भारतीय जनसंघ का जन्म हुआ, जो आगे चलकर भाजपा में परिवर्तित हुआ।

तीन वैश्विक व्यवस्थाएं और भारतीय विकल्प

स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने तीन प्रमुख वैश्विक विचार थे :

पूंजीवादः इस पूंजीवादी विचार में व्यक्ति आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि व्यवस्थाओं का केंद्र है। संपत्ति पर व्यक्तिगत अधिकार और मुक्त बाज़ार (फ्री मार्केट) के नाम पर असीमित प्रतिस्पर्धा को पूंजीवाद ने जन्म दिया जिस कारण से व्यक्ति के शोषण की वृत्ति ने जन्म लिया ।

समाजवाद : समाजवाद के विचार ने संपत्ति के समान वितरण की व्यवस्था की बात की परंतु व्यावहारिक रूप से इसके द्वारा परिवारवाद और सत्ता के केंद्रीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ था ।

साम्यवाद : साम्यवादीयों ने समाज को आर्थिक आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया – ब्यूरो और सर्वहारा । समाज को संपत्ति के स्वामित्व के आधार पर शोषक और शोषित वर्गो में बांटा। शोषित वर्गों को उनका अधिकार दिलाने हेतु वर्ग संघर्ष के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। व्यक्ति स्वातंत्र्य को समाप्त करने की बात करते हुए समाज व्यवस्था की धुरी सरकार को केंद्र बनाने की बात की गई थी।

इन तीनों व्यवस्थाओं की सीमाओं के बीच भारतीय चिंतकों ने प्रश्न उठाया – क्या भारत को भी विदेशी मॉडल अपनाना चाहिए या अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपराओं पर आधारित व्यवस्था विकसित करनी चाहिए? इसी संदर्भ में ‘एकात्म मानवदर्शन’ भारतीय मॉडल के रूप में उभरा, जिसमें व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और प्रकृति के बीच एकात्मता और समन्वय को प्राथमिकता दी गई।

एकात्म मानववादः दर्शन और व्यावहारिकता

पश्चिमी विचारधाराओं में व्यक्ति को केवल भौतिक अस्तित्व शरीर, मन, बुद्धि -तक सीमित माना गया, जबकि भारतीय चिंतन में आत्मा को भ व्यक्ति का अभिन्न अंग माना गया है। यही आत्मा सेवा, त्याग और परमार्थ की प्रेरणा देती है। एकात्म मानवदर्शन के अनुसार व्यक्ति केवल स्वतंत्र इकाई नहीं, बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और प्रकृति का अंग है।

परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य, राष्ट्र के प्रति समर्पण, और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी यही भारतीय दृष्टि है। वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वी को परिवार मानने की भावना ही भारतीयता का प्रकट रूप है। जैव विविधता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समरसता भारतीय जीवन दृष्टि के मूल तत्व हैं।

भाजपा का संगठनात्मक ढांचाः विचार, कार्यकर्ता और संगठन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की तीन विशेषताओं का उल्लेख किया जो निम्नवत है

संगठन आधारित दलः भाजपा का आधार मजबूत संगठन है, जो केवल चुनावी सफलता नहीं, बल्कि सतत सामाजिक कार्य में विश्वास रखता है।

कैडर बेस्ड पार्टीः भारतीय जनता पार्टी एक कार्यकर्ता आधारित संगठन है, जिसमें विचारधारा के प्रति निष्ठा सर्वोपरि है।

विचार आधारित कार्यकर्ता: भाजपा के कार्यकर्ता केवल पद या सत्ता के लिए नहीं, बल्कि विचार के लिए कार्य करते हैं।

यह संगठनात्मक ढांचा भाजपा को अन्य दलों से भिन्न बनाता है, जहां परिवारवाद, अवसरवाद या केवल सत्ता प्राप्ति प्राथमिकता नहीं है।

अंत्योदयः गरीब के उत्थान का संकल्प

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ‘अंत्योदय’ की अवधारणा प्रस्तुत की विकास की प्रक्रिया में सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का उत्थान। जिनके पास छत नहीं, भोजन नहीं, शिक्षा के साधन नहीं ऐसे समाज के वर्ग का विकास सरकारों का लक्ष्य होना चाहिए। भाजपा की सरकारों की नीतियों में यह दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है, जहां गरीब कल्याण, सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को प्राथमिकता दी जाती है।

सांस्कृतिक राष्ट्रवादः विविधता में एकता

भारत को केवल भू-भाग या उपमहा‌द्वीप मानने की प्रवृत्ति के विपरीत, जनसंघ और भाजपा ने भारत को एक प्राचीन, सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में देखा। भाषा, जाति, खानपान, वेशभूषा में विविधता के बावजूद, भारतीय संस्कृति की अंतर्निहित एकता ही राष्ट्र की पहचान है। यही दृष्टि भाजपा के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की नींव है, जो देश की सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और मूल्यों के संरक्षण को प्राथमिकता देती है।

राजनीति का उद्देश्यः राष्ट्र सेवा और भारत माता की जय

भाजपा की राजनीति का उ‌द्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि ‘भारत माता की जय’, राष्ट्र की सेवा, गौरव और उत्थान है। अन्य दलों में जहां राजनीति व्यक्तिगत या पारिवारिक स्वार्थों के लिए की जाती है, वहीं भाजपा में राजनीति को राष्ट्र सेवा का माध्यम माना गया है। यही कारण है कि भाजपा के कार्यक्रमों, घोषणाओं और आचरण में ‘भारत माता की जय’ का उ‌द्घोष प्रमुखता से होता है।

पंच निष्ठाएं: कार्यकर्ता का आचरण

भाजपा के संविधान में ‘पंच निष्ठाएं’ पांच सिद्धांत कार्यकर्ताओं के आचरण के लिए निर्धारित किए गए हैं, जो पार्टी की विचारधारा, संगठन और राष्ट्र के प्रति समर्पण को सुदृढ़ करते हैं। ये निष्ठाएं कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।

लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और विपक्ष की भूमिका

नेहरू युग में कांग्रेस के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों की उपेक्षा, विपक्ष की आवाज को दबाने के प्रयास, और सत्ता केंद्रीकरण की प्रवृत्ति ने भारतीय राजनीति में स्वस्थ लोकतंत्र की आवश्यकता को रेखांकित किया। जनसंघ ने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा, विपक्ष की भूमिका को मजबूत करने और राष्ट्रवादी चिंतन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 के चुनाव में नेहरू के सामने प्रत्याशी खड़ा करना इसी लोकतांत्रिक चेतना का उदाहरण था।

भारतीय लोकतंत्रः मदर ऑफ डेमोक्रेसी

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहा है अर्थात् लोकतंत्र की जननी। भारतीय ग्रंथों, वेद, महाभारत, रामायण, शुक्र नीति, विदुर नीति आदि में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है। जब पश्चिम में पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद का जन्म भी नहीं हुआ था, तब भारत में लोकतांत्रिक परंपराएं विद्यमान थीं। यही परंपरा आज भी भारतीय राजनीति को दिशा देती है।

एकात्म मानववाद की प्रासंगिकताः आज के संदर्भ में

आज जब वैश्विक स्तर पर वैचारिक सम्भ्रम है, पूंजीवाद और साम्यवाद अपनी सीमाओं से जूझ रहे हैं, तब ‘एकात्म मानवदर्शन’ भारतीय समाज के लिए एक व्यावहारिक और समावेशी मॉडल प्रस्तुत करता है। इसमें व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और प्रकृति के बीच संतुलन, समरसता और समन्वय का मार्ग दिखाया गया है। भाजपा की नीतियाँ, कार्यक्रम और संगठनात्मक संरचना इसी दर्शन पर आधारित हैं, जो उसे अन्य दलों से अलग पहचान देती हैं।

विचार यात्रा से राष्ट्र निर्माण तक

भारतीय जनसंघ से भाजपा तक की यात्रा केवल राजनीतिक दल के विकास की नहीं, बल्कि एक विचार, एक दर्शन और एक राष्ट्र के पुनर्निर्माण की यात्रा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानवदर्शन’ ने भारतीय राजनीति को स्वदेशी दृष्टि, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक समरसता का मार्ग दिखाया। भाजपा का संगठन, कार्यकर्ता और विचारधारा इसी दर्शन से प्रेरित होकर राष्ट्र सेवा, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए सतत कार्यरत है।

आज जब भारत विश्व मंच पर अपनी पहचान मजबूत कर रहा है, तब ‘एकात्म मानवदर्शन’ की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। यह न केवल भारतीय राजनीति, बल्कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समावेशी, संतुलित और मानव केंद्रित विकास का मार्गदर्शन करता है। यही भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी उपलब्धि और भविष्य की दिशा है।

 

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