Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

तबलीगी जमात ने भटकाई बहस

कोविड-19 के कहर के खिलाफ जब देश एकजुट होकर लड़ रहा है, उसी बीच इस्लामिक मजहब के संदेशों का प्रचार करने का दावा करने वाले तबलीगी जमात के जमातियों द्वारा किये जा रहे गैर-जिम्मेदाराना हरकतों ने बहस का रुख  भटकाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि मार्च के दूसरे-तीसरे सप्ताह में दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में हुई तबलीगी जमात की बैठक के बाद देश-विदेश से जुटे जमाती देश के अलग-अलग हिस्सों में गये, जिसमें से बड़ी संख्या में कोरोनो संक्रमित जमातियों की पहचान हुई और यह प्रक्रिया अबतक चल रही है. तमिलनाडु, आंध्रा, तेलंगाना और  दिल्ली जैसे राज्यों में तो कुल कोरोना पॉजिटिव मामलों में अधिक संख्या मरकज में शामिल हुए जमातियों की ही है. हिमाचल प्रदेश में तो अबतक जितने भी मामले मिले हैं, सभी के सभी मरकज में शामिल जमातियों के ही हैं. आश्चर्यजनक तो ये है कि इतना हडकंप मचने और बार-बार अपील के बावजूद अभी भी मरकज में शामिल हुए तमाम जमाती कोरोना जांच के लिए आगे नहीं आ रहे हैं और कई जगहों पर तो जांच में अवरोध तक पैदा करने की खबरें आ रही हैं. इंदौर में जांच के लिए गयी चिकित्सकों की टीम पर पत्थरबाजी तथा देश के कुछ अन्य स्थलों से ऐसी तस्वीरों का आना, मन को छुब्ध करने वाला है.

दरअसल तबलीगी जमात के लोग अपने कृत्यों से दो तरह का नुकसान कर रहे हैं. पहला तो कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार व समाज के अभूतपूर्व प्रयासों में पलीता लगा रहे हैं और दूसरा अपने समुदाय के प्रति समाज में घृणा और अविश्वास की भावना को बल देने का काम भी जानबूझकर कर रहे हैं. ऐसा करने वाले जमात के लोगों को समझना चाहिए कि उनके इस कृत्य की वजह से उन्हीं के समुदाय के कुछ अच्छे लोगों को भी शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है तथा उनके खिलाफ समाज में अविश्वास की भावना को बढ़ावा मिल सकता है. एकतरफ कोरोना के खतरे को तो जमात के तब्लीगियों ने बढ़ाया ही है, दूसरी तरफ समाज की साझा संस्कृति और सौहार्द की भावना को भी संदेह के घेरे में रखने का काम किया है.

कोरोना नामक इस अदृश्य खतरे के खिलाफ लड़ाई में विभाजनकारी चर्चाओं के लिए कोई जगह नहीं है. यह समय एकजुट होकर सिर्फ इसपर कार्य करने का है कि कोरोना के संकट से देश को बाहर कैसे निकाला जाए. याद रखना होगा कि यह वायरस  देश, धर्म, जाति, पंथ, अमीरी-गरीबी की सीमाओं को नहीं पहचानता है. यह अपने असर में किसी भी मनुष्य शरीर के लिए नुकसानदायक है. इसलिए इसको किसी प्रकार के भेदभाव वाले चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. यह दौर सामने आई विकट परिस्थिति के खिलाफ एका बनाने का है.

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि एका और सौहार्द की जिम्मेदारी किसकी है ? कहा जाता है कि ‘रेत में सिर धंसाकर यह मान लेना कि चारो तरफ अँधेरा हैं और कोई देख नहीं रहा’, सिर्फ मन को तसल्ली देने वाली बात है. इससे न तो समाधान के रास्ते निकलते हैं और न ही समस्या की जड़ का ही पता चलता है. दरअसल एक सभ्य समाज में शालीन दिखने की लालसा ने हमें समस्याओं के मूल से मुंह मोड़ने का अभ्यस्त बना दिया है. हम समस्याओं पर बात करते हुए, उन्हें छूने से भी कतराते हैं. तबलीग के जमातियों से उपजे इस अविश्वास की बहस में सबसे पहले मुसलमान समुदाय को एकजुटता दिखाने की जरूरत है. उन्हें एक स्वर में जमात की इस गैर-जिम्मेदाराना हरकत की निंदा करते हुए, इसपर कार्रवाई की मांग करनी चाहिए. अगर मुसलमान समुदाय ऐसा करता तो अविश्वास की भावना स्वत: कम होती. किंतु यह सच है कि अभी तक ऐसी भावना इस समुदाय की तरफ से नहीं दिखाई गयी है. इसका नुकसान यह हो रहा है कि अनेक जगहों से आ रही ऐसी खबरें भी असरहीन हो रहीं हैं, जहाँ हिन्दू-मुसलमान एकजुट होकर कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई को लड़ रहे हैं. मुसलमानों  को अपने प्रतीक चुनने में भी उदारता दिखानी चाहिए. वे कलाम को चुनते हैं या औरंगजेब को, यह भी उनके अपने समाज का प्रश्न है. चूँकि अविश्वास उनके समुदाय की वजह से पैदा हुआ है, तो विश्वास हासिल करने की जिम्मेदारी भी उसी समाज की होगी. बेशक ऐसा उत्साह मुस्लिम समाज और उनका नेतृत्व अभी तक उस पैमाने पर नहीं दिखा रहा, जो उन्हें विश्वास की कसौटी पर खरा साबित करता हो.

एक भ्रम से और पर्दा उठाना चाहिए कि ‘जमाती’ का अर्थ ‘मुसलमान’ नहीं होता. यह बात सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जो ‘जमात’ की हरकतों की वजह से एक समुदाय को निशाना बना रहे हैं. यह समझना उनके लिए भी उतना जरुरी है जो ‘जमात’ के कृत्यों की आलोचनाओं को अपने मजहब अथवा समुदाय की आलोचना मानकर बचाव कर रहे हैं. ‘जमात’ के लोगों की आलोचना को यदि पूरे मजहब की आलोचना मानकर बचाव किया जाएगा तो जिस निंदा के दायरे में आज ‘जमात’ है, उस दायरे में कल को वह समुदाय भी स्वत: आ जाएगा, जो बचाव कर रहा है. अत: इसे संकुचित सोच से मुक्त होकर समझने की जरूरत है.

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो हैंl)

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