भारत अबतक वैश्विक शक्तियों के द्वारा बनाए गए कानूनों और विधियों को मानने के लिए बाध्य रहने वाला राष्ट्र-राज्य था। अब जाकर भारत ने वैश्विक परिदृश्य पर अपनी दमदार उपलब्धि और पहुॅच बनाई है। इसी का परिणाम है कि वो अब वैश्विक विधि एवं व्यवस्था निर्माताओं की जगत में शामिल है। भारत हमेशा से एक सम्यगत राष्ट्र-राज्य रहा है, जिसे अपने स्थानीय राजनीतिक-सांस्कृतिक विरासत को विदेश नीति के साथ जोड़कर एक मजबूत नीतिनिर्माण प्रक्रिया का निर्धारण करना है। आर्थिक मजबूती और नए वैश्विक भू-रणनीतिक सच्चाईयों को आत्मसात करके ही हम नई विदेश नीति की परिकल्पना कर सकते है। मोदी सरकार ने पहली बार पाकिस्तान के बैताल को भारतीय विदेश नीति के कंधो से उतार फेंका है और उसको चीन के साथ जोड़कर क्षेत्रीय शक्ति के उपर उठकर वैश्विक उड़ान भरी है। इसमें इण्डोनेशिया से लगायात आसियान, जापान, अफ्रिका एवं अमेरिकी नीतियों के साथ सहयोग की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। उपरोक्त बातें आज दिनांक 23 जनवरी 2017 को मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र, युनेस्को शांति एवं अंतर-सांस्कृतिक सहमति पीठ एवं डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जीे फाउंडेशन, दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार ‘भारतीय विदेश नीति की उभरती प्रवृत्तियाॅ’ एवं डाॅ. अनिर्बान गांगुली, डॉ. विजय चैथाईवाले और डॉ.उत्तम सिन्हा की संपादित पुस्तक ’’द मोदी डाक्ट्रिन’’ के आलोक में नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी एवं म्यूजियम के निदेशक श्री शक्ति सिंहा जो कि वाजपेयी शासन में प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव भी थे, ने कहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि विदेश नीति कुछ और नहीं बल्कि आंतरिक नीतियों का ही विकसित स्वरूप है, अपनी आंतरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ही विदेश नीति बनाई जाती है।
डॅा. श्यामा प्रसाद मुखर्जीे अधिष्ठान, नई दिल्ली के निदेशक तथा नामक पुस्तक के संम्पादक डॅा. अनिर्बान गांगुली ने कहा कि सुषमा स्वराज ने मोदी सिद्धांत और भारतीय विदेश नीति नामक पुस्तक के विमोचन में कहा कि भारतीय विदेश नीति अब 24*7 आधार पर कार्य कर रही है और अब यह दोनो पक्षों के लाभ पर कार्य करने वाली व्यवस्था है। मोदी सरकार विदेश नीति का संघीकरण कर रही है। उच्च बैठकें नई दिल्ली से बाहर ज्यादातर संख्या में हो रहे है। भारतीय विदेश नीति में पंचामृत का सिद्धांत प्रमुख है।
इड्सा, नई दिल्ली के डा. उत्तम सिन्हा ने कहा कि साउथ ब्लाक के अधिकारियों द्वारा ना प्रयोग हो कर अब विदेश नीति नागरिक-जनकेंद्रित हो रही है। नए उपागमों, व्यवस्थाओं और वैचारिकी को अब स्थान दिया जा रहा है। ओआरएफ, नई दिल्ली के डॉ. अशोक मलिक ने भी अफगानिस्तान की सुरक्षा एवं भारतवंशीयों के विकास एवं विदेश नीति के योगदान पर प्रकाश डाला। संकाय प्रमुख प्रो. जयकांत तिवारी ने कहा कि चीन के उपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उनका मानना था कि भारत अनिवार्य रूप से मोदी के गतिशील विदेश नीति का लाभ उठाएगा।
कार्यक्रम का संचालन डा. मनोज मिश्रा, कार्यवाहक समन्वयक, मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र एवं विषय प्रदर्शन इतिहास विभाग के प्रो. केशव मिश्रा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डा. सुनीता सिंह, एमसीपीआर ने दिया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्रो, अध्यापकों ने अंतःक्रिया संवाद सत्र में भाग लिया !