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सूर्य मिशन : ‘रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं हम…!’

चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 जैसी सफलताओं से यह सुस्‍थापित होने लगा है कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत अब तेजी से आगे बढ़ रहा है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अब भारत विश्‍व के उन्‍नत राष्‍ट्रों की पंक्ति में जा खड़ा हुआ है। आपको याद होगा कि मार्च 2019 में डीआरडीओ ने एक अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ऐसे एंटी सेटेलाइट मिसाइल सिस्टम का सफल परीक्षण अपनी अंतरिक्ष शक्ति का शानदान प्रदर्शन किया था।

स्‍वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे, रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे‘

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की सुप्रसिद्ध कविता ‘चाँद कवि’ की ये पंक्तियाँ इन दिनों भारत के अंतरिक्ष अभियानों के संदर्भ में नए अर्थ पाती दिख रही हैं। भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने हाल ही में चंद्रयान 3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारने का कीर्तिमान बनाया है और अब बीते 2 सितंबर को एक और महत्‍वाकांक्षी अभियान आदित्‍य एल 1 के जरिये देश सूर्य की ओर भी बढ़ चला है।

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब भारत की नजरें सूर्य पर टिकी हैं। यह भारत का पहला सूर्य मिशन है, जिसके जरिए सौर वायुमंडल यानी क्रोमोस्फेयर और कोरोना की गतिशीलता का अध्ययन किया जाएगा। यह आदित्‍य मिशन देश के लिए इसलिए भी अहम है क्‍योंकि सदैव से ही कई देशों में सूर्य का अधिकाधिक अध्‍ययन करने की होड़ सी मची रही है।

सूर्य को लेकर अभी तक कुल 22 मिशन भेजे जा चुके हैं। वर्ष 1960 में नासा ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए पहला सूर्य मिशन पायनियर-5 भेजा था। अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अभी तक कुल 22 मिशन सूर्य की ओर भेजे हैं। इन सभी 22 मिशन में से अभी तक 1 ही मिशन असफल हुआ है। इसमें भी सबसे ज्यादा मिशन नासा की ओर से ही भेजे गए हैं। इसरो के आदित्य एल-1 के साथ ही भारत भी अब इन देशों की श्रेणी में सम्मिलित हो गया है।

इसरो का आदित्‍य एल 1 मिशन धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर तक सूर्य की ओर जाएगा। इसे पहले बिंदु तक पहुंचने में ही चार महीने का समय लग जाएगा। इसमें कुल 7 पेलोड लगाए गए हैं। इससे को फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परत) के अध्ययन में मदद मिलेगी।

आदित्‍य एल-1 को पृथ्वी से सूर्य की ओर करीब 15 लाख किमी की दूरी पर भेजा जा रहा है।  खगोल वैज्ञानिकों ने अभी तक 5 लैंग्रेज कक्षाएं तलाश की है, जहां किसी कृत्रिम उपग्रह को सूर्य के अध्ययन के लिए स्थापित किया जा सकता है। 590 किलोग्राम प्रोपल्शन फ्यूल और 890 किलोग्राम के अन्य सिस्टम लगे हैं। ऐसे कुल मिलाकर इस अंतरिक्ष यान की कुल वजन करीब 1480 किलोग्राम है।

इस सूर्य मिशन में डेटा और टेलीमेट्री जैसे कमांड के लिए यूरोपीय, अमेरिकी, स्पेनिश और ऑस्ट्रेलियाई स्पेस एजेंसियों की भी मदद ली गई है। अभियान में कुल मिलाकर 70 वैज्ञानिकों के साथ-साथ 1000 लोगों ने परिश्रम किया है। आदित्य एल1 हेलो ऑर्बिट में स्थापित होने के बाद करीब 5 साल तक काम करता रहेगा।

इसके जरिए सन साइकल की स्टडी की जाएगी। आदित्‍य यान हेलो ऑर्बिट में जाकर कोरोनल हीटिंग, सौर पवन त्वरण, कोरोनल मास इजेक्शन फ्लेयर्स और निकट-पृथ्वी अंतरिक्ष मौसम की शुरुआत, सौर वातावरण के युग्मन और गतिशीलता और वितरण और तापमान सौर वायु अनिसोट्रॉपी को समझने के लिए डेटा इकट्ठा करेगा। 20 सेकंड में डेटा और फोटो धरती पर प्राप्त हो जाएंगे।

अभी बीते 23 अगस्‍त को ही भारत के इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान 3 को उतारा तो उस पर पूरी दुनिया की निगाहें थीं। इस लैंडिंग के कुछ ही दिन पहले रूस का मून मिशन लूना-25 समानांतर ही चल रहा था और क्रैश हो गया।

जाहिर है, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुचंना दूभर एवं दुरुह है। इसी को लक्ष्‍य बनाकर चले चंद्रयान-2 को वर्ष 2019 में विफलता हाथ लगी थी। लेकिन भारत ने हिम्‍मत नहीं हारी और चार साल बाद, कम बजट किंतु भरपूर प्रयासों के साथ आखिर इस मिशन में सफलता प्राप्‍त कर ली। लैंडिंग के बाद से विक्रम लैंडर से निकला रोवर प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी कर रहा है और  वहां से लगातार संवाद में बना हुआ है, थर्मल इमेजेस भेज रहा है।

इसरो प्रमुख सोमनाथ ने चंद्रयान-3 को लेकर कहा कि सब कुछ ठीक से काम कर रहा है। चंद्रयान से सारा डेटा बहुत अच्छे से आ रहा है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 14 दिन के आखिरी तक हमारा मिशन सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाएगा। अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश एम. देसाई ने चंद्रयान-3 मिशन को लेकर कहा कि जांच में चंद्रमा पर सल्फर बहुत प्रमुख रूप में मिला है। इससे पहले भी चंद्रमा की सतह पर सल्फर मिला था।

इन सब बातों से अब यह सुस्‍थापित हो चुका है कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत अब तेजी से आगे बढ़ रहा है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अब भारत विश्‍व के उन्‍नत राष्‍ट्रों की पंक्ति में जा खड़ा हुआ है। आपको याद होगा कि मार्च 2019 में डीआरडीओ ने एक अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ऐसे एंटी सेटेलाइट मिसाइल सिस्टम का सफल परीक्षण अपनी अंतरिक्ष शक्ति का शानदान प्रदर्शन किया था।

यह मिसाइल दूरसंचार, नेवीगेशन और रिमोट सेंसिंग सेटेलाइटों को कुछ ही पलों में ध्वस्त कर सकेगी। डीआरडीओ ने ‘मिशन शक्ति’ के जरिये सेटेलाइटों को मार गिराने के लिए ‘बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर’ का परीक्षण किया था। और अब 2023 में चंद्रयान के बाद आदित्‍य एल 1 सुर्खियों में है।

मिशन गगनयान की तैयारी

अब इसरो अपने महत्वाकांक्षी परियोजना गगनयान मिशन को लेकर पूरी तैयारी में लगा है। गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से अंतरिक्ष तक भेजा और वापस लाया जाएगा। इसरो ने हाल ही में इस मिशन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इसरो ने ड्रग पैराशूट के लिए परीक्षणों की एक शृंखला सफलतापूर्वक आयोजित की।

यह परीक्षण गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन में पुन: प्रवेश के दौरान क्रू मॉड्यूल को स्थिर करने और इसके वेग को सुरक्षित स्तर तक कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पहला मिशन मानव रहित होगा। दूसरे मिशन में एक रोबोट को भेजा जाएगा और आखिरी मिशन में अंतरिक्ष में तीन एस्ट्रोनाट (अंतरिक्ष यात्री) भेजे जाएंगे। दूसरा मिशन अगले साल 2024 में प्रक्षेपित किया जाएगा। यदि इसमें यदि सफलता मिल पाती है तो यह एक और अभिनव इतिहास बन जाएगा। यह सब देखना हर भारतीय के लिए बहुत गर्व का विषय है।

भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा ही है कि इसरो ने हमेशा कम बजट में बेहतर से बेहतर कार्य कर दिखाया है। गुणवत्‍ता और क‍िफायत के चलते ही विश्‍व के देश इसरो पर भरोसा करते हैं और सैटेलाइट लॉन्च में सेवाएं लेते हैं। बीते वर्षों में इसरो ने एक दिन में 104 सैटेलाइट लॉन्‍च करके पूरे विश्‍व को चकित कर दिया था। अब चंद्रयान और आदित्‍य एल 1 के नाम सबकी जुबान पर चढ़े हुए हैं।

निश्चित ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत अब एक नई शक्ति बनकर विश्‍व फलक पर उभर रहा है। आज अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती धाक देखकर राष्ट्रकवि की काव्य-पंक्ति को क्षमा सहित थोड़ा परिवर्तित करते हुए यह कहना समीचीन लगता है कि – रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं हम…!

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