Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

‘ऐसे थे भारत के गांव’ को पढ़ना भारत की आत्मा को समझ लेना है

किसी भी पुस्तक का लक्ष्य होता है कि वह अपने पाठकों को शिक्षित करे, उन्हें आनंदित करे और उनके ह्रदय को द्रवित करे.

प्रस्तुत पुस्तक ऐसे थे भारत के गाँव जैसा कि अपने नाम से ही स्पष्ट है कि यह भारत के ग्राम्य जीवन के इतिहास को रेखांकित करती है. चार अध्याय (बसावट, गाँव की समृद्धि के स्तंभ, इतिहास के झरोखे में हमारे गाँव और संस्थाएं एवं संगठन) और प्रत्येक अध्याय के अंतर्गत बिन्दुओं का शोधपरक विश्लेषण ऐसे थे भारत के गाँव पुस्तक को विशिष्टता के नए मानकों पर स्थापित करती है.

हालाँकि इतना भर ही नहीं अपितु इस पुस्तक में गाँव की बसावट की चर्चा करते हुए उसके नियम, उसकी भूमि का चयन और उसका निर्धारण जैसे सूक्ष्म लेकिन गूढ़ विषयों का सरलतापूर्वक विवेचन किया गया है.

पुस्तक के दूसरे अध्याय में गाँव की समृद्धि के स्तंभ को दर्शाते हुए प्राचीन ग्राम्य जीवन, उसकी कार्यप्रणाली, ग्राम समाज का अध्ययन, स्वस्थ जीवन, एकरूपता और आत्मनिर्भरता जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं की सारगर्भित चर्चा की गई है.

तीसरे अध्याय में ग्रामीण भारत के इतिहास, उसकी विशेषता, उस दौर का आर्थिक जीवन, रहन-सहन और चौथे अध्याय (संस्थाएं एवं संगठन) में प्रशासन के बदलते रूप, उद्योग धंधे, पंचायत और कृषि व्यवस्था के संदर्भ में लिखा गया है.

श्री विष्णु मित्तल की 160 पन्नों की पुस्तक ऐसे थे भारत के गाँव को पढ़कर पाठकगण यह अनुभव कर पाएंगे मानो उन्होंने भारत की आत्मा का विस्तृत अध्ययन कर लिया है. ग्राम्य जीवन के आपसी भाईचारे का वर्णन करते हुए इस पुस्तक में एक उदाहरण का प्रयोग किया गया है कि गाँव की बहन-बेटियां अपने मायके से आए हुए पंछी को देखकर भी हरी हो उठती हैं. यह शत प्रतिशत सत्य के समीप है कि गाँव में घर दूर-दूर जरूर होते हैं परंतु उन्हें उनके अपनेपन की भावना एकजुट और बांधे रखती है.

प्राचीन ग्राम्य जीवन का बहुरंगी इतिहास जिसे विदेशी आक्रांताओं ने न केवल प्रभावित किया बल्कि  विकृत भी किया लेकिन भारतीय जीवन का आधार सदैव सुदृढ़ रहा है कि भारतीय ग्राम्य व्यवस्था ने विदेशी शासन को भेद डाला. राजवंश उठे और गिरे, युद्धों में हार जीत हुई, लेकिन अनिश्चितता की इस राजनीतिक उथल-पुथल में भी भारतीय ग्राम्य जीवन सामान्य रूप से अपना जीवन यापन एवं अपने कार्यों का संचालन करता रहा.

ऐसे अनेकानेक विशेषताओं से सुसज्जित ऐसे थे भारत के गाँव के लिए यह कह सकते हैं कि अपने पाठक से यह पुस्तक संवाद स्थापित करती है. विशिष्ट शैली में लिखी गई यह पुस्तक ग्राम्य जीवन के सौन्दर्य और संवेदना के साथ-साथ शोधपरक तथ्यों, सिद्धांतों और विश्लेषणों का संगम है.

ऐसे थे भारत के गाँव पुस्तक पाठकों को एक ज्ञानवर्धक यात्रा पर लेकर चलती है जो अपनी समाप्ति पर उनके मन में ग्राम्य समाज के प्रति संवेदनाओं का संचार करती है. यह सही है कि भारत के ग्रामीण जीवन और संस्कृति पर कई विशिष्ट जनों ने विभिन्न कृतियों की रचना की है लेकिन विष्णु मित्तल जी ने गाँवों का जो जीवंत चित्रण अपनी पुस्तक में किया है, वह दुर्लभ है.

एक आदर्श गाँव की व्याख्या करते हुए महात्मा गांधी लिखते हैं कि आदर्श भारतीय गाँव इस तरह बसाया और बनाया जाना चाहिए जिससे वह सम्पूर्णतया निरोग हो सके. उसके झोपड़ों और मकानों में काफी वायु और प्रकाश आ जा सके. ये ऐसी चीजों के बनें हों जो पांच मील की सीमा के अंदर उपलब्ध हो सकती हैं. हर मकान के आस-पास या आगे-पीछे इतना बड़ा आँगन हो जिससे गृहस्थ अपने लिए साग भाजी लगा सकें, अपने पशुओं को रख सकें. अपनी जरूरत के अनुसार गाँव में कुएँ हों जिससे सभी लोग पानी भर सकें. सभी के लिए प्रार्थना घर हो, मंदिर हो, सार्वजनिक सभा के लिए अलग स्थान हो, प्राथमिक और माध्यमिक शालाएं हों, गाँव के अपने मामलों का निपटारा करने के लिए एक ग्राम पंचायत भी हो. अपनी जरूरतों के लिए अनाज, फल, सब्जी, खादी वगैरह खुद गाँव में ही पैदा हों.

इसी क्रम में पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते हैं कि आर्थिक योजनाओं और आर्थिक प्रगति का माप समाज के ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचे व्यक्ति से नहीं बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यमान व्यक्ति से होगा. जिस दिन हम इनको पक्के, सुन्दर और सभ्य घर बनाकर देंगे, जिस दिन हम इनके बच्चों और स्त्रियों को शिक्षा और जीवन-दर्शन का ज्ञान देंगे, जिस दिन इन्हें उद्योग और धंधे की शिक्षा देकर इनकी आय को ऊँचा उठा देंगे, उसी दिन हमारा भातृभाव प्रकट होगा.  

इस पुस्तक में महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, भारत रत्न नानाजी देशमुख, पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महानुभावों के आदर्श ग्राम तथा उसकी आवश्यकताओं पर मूल्यवान विचार का संकलन किया गया है।

महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों के अनुरूप ग्राम स्वराज की दिशा में ठोस एवं निर्णायक पहल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचार को भी संकलित किया गया है.

अन्ततोगत्वा जैसा कि आरंभ में ही किसी भी पुस्तक के लक्ष्य का निर्धारण किया गया है (शिक्षा देना, आनंदित करना और ह्रदय को द्रवित कर देना), ऐसे थे भारत के गाँव अपने पाठकों को ग्राम्य  जीवन के प्रति शिक्षित करती है, उनके मन को आनंदित करती है और इस प्रकार वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति भी करती है.

चूँकि यहां पुस्तक की समीक्षा की जा रही है और संभवतः यह समीक्षा का एक नियम यह भी है कि पुस्तक के किसी कमजोर पक्ष का उल्लेख करना पाठक के प्रति न्याय करना होगा, इसलिए अंत में केवल एक सुझाव कि यदि प्रकाशक इसके मूल्य (400 रु.) में कुछ कमी करने पर विचार करें तो यह अत्यंत पठनीय पुस्तक जन-सुलभ हो सकेगी.