“पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा एवं बुद्ध की धरोहर”
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के निर्णय पर दिनांक 17 नवंबर 2024 दिन रविवार को बोधगया स्थित महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के सेमिनार हॉल में “पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा एवं बुद्ध की धरोहर” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
यह आयोजन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली और महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के सहयोग से संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य पाली भाषा के महत्व और भगवान बुद्ध की सांस्कृतिक विरासत पर चर्चा करना था।
इस अवसर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. अनिर्बान गांगुली ने संबोधन में सर्वप्रथम प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के ऐतिहासिक निर्णय के लिए धन्यवाद और आभार प्रकट किया गया।
उन्होंने कहा कि इस निर्णय से पाली भाषा के संरक्षण और उसके वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार को प्रोत्साहन मिलेगा। भारत की प्राचीन बौद्ध संस्कृति को सशक्त पहचान देने की दिशा में यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर उपस्थित सभी अतिथियों ने प्रधानमंत्री के इस पहल की सराहना की और इसे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण बताया।
इसके पश्चात डॉ गांगुली ने महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के योगदान पर विस्तार से चर्चा की।
उन्होंने बताया कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, एक महान भारतीय नेता और महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में, भारत में बौद्ध धर्म और इसकी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए समर्पित प्रयास किए।
यह अद्भुत संयोग है कि महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सर आशुतोष मुखर्जी (डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के पिता) भी थे और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी भी रहे।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता के दौरान, उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करने और भारत में बौद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने बौद्ध धर्म से जुड़े प्रमुख स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएँ चलाईं। उन्होंने विशेष रूप से बोधगया, जो बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है, के विकास और संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाई।
डॉ मुखर्जी ने भारतीय युवाओं के बीच बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के प्रति जागरूकता फैलाने और इसके शिक्षाप्रद तत्वों को प्रोत्साहित करने के लिए कई शिक्षात्मक कार्यक्रमों का आयोजन किया। इसके माध्यम से उन्होंने युवाओं को बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के प्रति प्रेरित किया।
इसके साथ ही उनके नेतृत्व में महाबोधि सोसाइटी ने विश्व के अन्य बौद्ध राष्ट्रों के साथ संबंधों को मजबूत किया। उन्होंने जापान, श्रीलंका, और थाईलैंड जैसे देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का आयोजन कर, भारत को वैश्विक बौद्ध समुदाय का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने का प्रयास किया।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रयासों के कारण महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया ने बौद्ध धर्म के प्रति भारतीय समाज के नज़रिए में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य किया और इसे देश की सांस्कृतिक विरासत के रूप में और अधिक व्यापकता प्रदान की।
कार्यक्रम में शामिल अन्य अतिथियों में मुख्य रूप से कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह (कुलपति – नव नालंदा महाविहार), ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक बहुप्रतीक्षित फैसला लिया है। पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है। पाली भाषा भगवान बुद्ध के अमर संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम है। यह भाषा करुणा, शांति और ज्ञान की वह धरोहर है, जिसने मानवता को नई दिशा दी।
प्रोफेसर अंगराज चौधरी ने कहा कि हमें बुद्ध की शिक्षाओं को समझने की आवश्यकता है, हमें पाली भाषा का सम्मान करना होगा और इसे आगे बढ़ाने पर सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक आवश्यक शुरुआत कर दी है, अब हमें इसे आगे बढ़ाना है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ बुद्धिस्ट स्ट्डीज के कुलपति प्रोफेसर राजेश रंजन ने कहा कि पाली भाषा भगवान बुद्ध के शांति और करुणा के संदेशों को संरक्षित करती है।
जादवपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्र विभाग की प्रोफेसर मधुमिता चट्टोपाध्याय ने कहा कि इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम मिलकर बुद्ध की शिक्षाओं को समझें और इस विरासत को जीवन में उतारें। यह सेमिनार हमें अतीत की सीख को वर्तमान और भविष्य से जोड़ने का एक अनमोल अवसर देता है।
साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आनंद कुमार सिंह ने कहा कि पाली भाषा वह माध्यम है, जिसने भगवान बुद्ध के ज्ञान और करुणा को युगों-युगों तक जीवित रखा।
मगध यूनिवर्सिटी के पाली भाषा विभाग के प्रमुख डॉ संजय कुमार ने कहा कि भगवान बुद्ध की इस महान धरोहर पर चर्चा करना न केवल हमारा दायित्व है, बल्कि इसे समझना हमारे जीवन को समृद्ध करता है।
नव नालंदा महाविहार के एसोसिएट प्रोफेसर विश्वजीत कुमार ने कहा कि हमें बुद्ध की शिक्षाओं के प्रकाश में पाली भाषा की प्रासंगिकता को आधुनिक दृष्टिकोण से समझना होगा।
गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, नोएडा के डॉ अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि इस अमूल्य विरासत से प्रेरणा लेकर शांति और सह-अस्तित्व के मार्ग पर आगे बढ़कर हम पाली भाषा के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकते हैं।
गया कॉलेज के पाली भाषा विभाग के प्रमुख डॉ राजेश कुमार मिश्र ने कहा कि पाली भाषा, वह सेतु है जो हमें भगवान बुद्ध के गहन ज्ञान और करुणा के संदेशों तक ले जाती है। यह भाषा केवल प्राचीन ग्रंथों का संग्रह नहीं, बल्कि मानवता के लिए शांति, सत्य और समत्व का आधार है।
बुद्धिस्ट थाई भारत सोसाइटी के महासचिव वेलनरेबल डॉ रत्नेश्वर चकमा ने कहा कि पाली भाषा उन अमर उपदेशों की संरक्षक है, जो हमें भीतर और बाहर, दोनों में सामंजस्य स्थापित करने का मार्ग दिखाती है।
महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव पी सिवली थेरो ने अपने आशीर्वचन में कहा कि पाली भाषा, जो भगवान बुद्ध के ज्ञान और करुणा का अमूल्य भंडार है, हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस भाषा के माध्यम से बुद्ध के शांति, करुणा और सहिष्णुता के संदेश न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया तक पहुंचे।
आज मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देकर इसे वह सम्मान दिया, जिसकी यह से अधिकारिणी थी।
प्रधानमंत्री जी के प्रयासों से न केवल पाली भाषा को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं, बल्कि भगवान बुद्ध की विरासत को सहेजने और इसे वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का काम भी हुआ है।
यह सेमिनार इसी दिशा में एक और प्रयास है, जहां हम बुद्ध के संदेशों और पाली भाषा की प्रासंगिकता को समझने और प्रचारित करने के लिए एकत्र हुए हैं।
आइए, हम सभी मिलकर इस धरोहर को संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प लें।
यह न केवल हमारी संस्कृति के लिए गर्व का विषय है, बल्कि विश्व शांति के मार्ग पर बढ़ने का प्रेरणास्रोत भी है।
इस दौरान बोधगया केंद्र के प्रभारी भिक्षु वेनेरेबल ए. गानानी थेरो, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की सचिव श्रीमती अनुत्तमा गांगुली सहित अनेक विशिष्ट लोगों ने हिस्सा लिया।
यह सम्मेलन पाली भाषा के प्रसार और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अध्ययन में रुचि रखने वाले सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर सिद्ध हुआ। महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन द्वारा इस आयोजन के माध्यम से पाली भाषा और बौद्ध विचारधारा की धरोहर को संरक्षित और प्रचारित किया गया।