भारत की चेतना, सनातन कालयात्रा में ऋषियों, मुनियों, संतों और विचारकों की दृष्टि और चेतना से सहज रूप से निर्मित हुई है जहां मानव को केवल शरीर या उपभोक्ता नहीं, एक दिव्य सत्ता के रूप में देखा गया है। इसी चेतना को स्वामी विवेकानंद ने “दिव्यता प्रत्येक आत्मा में निहित है” कहा, तो श्री अरविंद ने मनुष्य को ईश्वरत्व की ओर उन्मुख होने वाला चेतन बिंदु कहा। डॉक्टर हेडगेवार ने भारत को केवल एक भूखंड नहीं, एक जीवंत राष्ट्र-पुरुष माना। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने “एक देश, एक विधान” के विचार से भारत की एकात्मता के लिए अपना बलिदान दिया, और श्री गुरुजी ने “राष्ट्रीयता का आधार सांस्कृतिक आत्मा है” कहकर इस चेतना को दिशा दी।
इसी तरह से भारत की चेतना की कई धाराओं की समष्टि को अर्क स्वरुप प्रस्तुत किया पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने, जिसे हम आज “एकात्म मानववाद” के रूप में जानते हैं। यह भारत की आत्मा, इसकी चिति का विचार है, जहां व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा अहर्निश एक निरंतर संवाद में हैं। एकात्म मानववाद भारत के धर्म, आध्यात्मिकता, नैतिकता और राष्ट्रधर्म को जोड़ने वाली वह दार्शनिक धुरी है, जो आज भी भारत को आत्मनिर्भर और आत्मचिंतनशील बनाती है। यही वह प्रकाशपुंज है जो विकसित भारत की दिशा में हमारी वैचारिक मशाल बना हुआ है।
एकात्म मानववाद, भाजपा का मार्गदर्शक दर्शन स्वीकार किया गया। इसी दर्शन को आत्मसात कर देश के करोड़ों कार्यकर्ताओं सहित भाजपा यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में दिखाई दे रही है। विश्व के राजनितिक मंच पर भाजपा अपने सतत जीवंत एवं उत्तरोत्तर अधिक प्रासंगिक बनते जा रहे मार्गदर्शक दर्शन एकात्म मानववाद से विश्व भर के राजनीतिक समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत करती दिखाई देती है।
एकात्म मानववाद कोई साम्यवादी या पूंजीवादी विचारधारा का अनुकरण नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना, परंपरा और सामाजिक संरचना से उपजा हुआ एक मौलिक चिंतन था। 2025 में जब इस विचारधारा को 60 वर्ष पूर्ण हुए हैं, तब यह विचार का विषय है कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शासनकाल इस दर्शन को नीतियों और क्रियान्वयन के धरातल पर प्रतिष्ठित करने का अमृतकाल बन चुका है।
मानव विकास का भारतीय दृष्टिकोण
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का मानना था कि समाज को टुकड़ों में नहीं देखा जाना चाहिए – व्यक्ति, परिवार, समाज और प्रकृति, ये सभी एक अविभाज्य इकाई के रूप में हैं। इसलिए, विकास केवल आर्थिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, मानसिक और सामाजिक समृद्धि का समन्वय होना चाहिए। यह दर्शन ‘ग्लोबलाइज़ेशन’ की भौतिकवादी दौड़ में भारत की सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का ढाल बनता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यकाल वास्तव में एकात्म मानववाद को जमीनी स्तर पर लागू करने का प्रयास है। “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” केवल एक नारा नहीं, बल्कि समावेशी, स्वदेशी, स्वावलंबन और एकात्मता के समग्र दृष्टिकोण की झलक है।
समावेशी विकास का व्यापक दृष्टिकोण
एकात्म मानववाद की मूल भावना है कि व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और प्रकृति — ये सब एक दूसरे से अलग नहीं, बल्कि एक ही “जीवंत इकाई” के अंग हैं। नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियां इसी समन्वय और संतुलन की विचारधारा पर आधारित हैं, जो समग्र विकास को सुनिश्चित करती हैं। जनधन योजना, आधार, मोबाइल और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से वंचित नागरिकों को औपचारिक आर्थिक तंत्र से जोड़ा गया, जिससे उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्राप्त हुआ। स्वच्छ भारत मिशन ने न केवल भौतिक स्वच्छता को बल दिया, बल्कि समाज की मानसिक स्वच्छता और सामूहिक उत्तरदायित्व की चेतना को भी जाग्रत किया। हर घर जल, हर घर बिजली, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी पहलें दर्शाती हैं कि सरकार का उद्देश्य केवल शहरी विकास नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के अंतिम व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करना है। आयुष्मान भारत योजना ने करोड़ों निर्धनों को स्वास्थ्य सेवा का संरक्षण देकर जीवन के मूल अधिकार को व्यावहारिक रूप दिया। इन सभी योजनाओं का लक्ष्य केवल सेवा वितरण (डिलीवरी) नहीं, बल्कि नागरिक को सशक्त सहभागी बनाना है और यही एकात्म मानववाद का वास्तविक मर्म है।
स्वदेशी: भारत की आत्मा का सम्मान
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन में स्वदेशी केवल एक आर्थिक या व्यापारिक अवधारणा नहीं थी, बल्कि यह आत्मा, आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव से जुड़ा हुआ एक जीवंत दर्शन था। नरेंद्र मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान इस स्वदेशी दृष्टिकोण को 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में पुनर्परिभाषित करता है। मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, और ODOP जैसी योजनाओं ने स्थानीय उत्पादों, नवाचार और युवाओं की उद्यमिता को नई उड़ान दी है।
खादी और ग्रामोद्योग के पुनरुत्थान से लेकर TRIFED, GI टैग्स और ई-कॉमर्स पर देशज उत्पादों की प्राथमिकता तक, यह सरकार स्वदेशी आर्थिक रणनीति को जमीन पर उतार रही है। यहां स्वदेशी केवल ‘निर्माण’ तक सीमित नहीं, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक गौरव और आत्मनिर्भरता को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने का माध्यम बन चुका है। विदेश नीति में भी ‘Make in India for the World’ जैसे संकल्प भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित कर रहे हैं। स्वदेशी का यह पुनर्जागरण, मोदी सरकार में परंपरा का उत्सव नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक स्वराज की ओर बढ़ते भारत की सामूहिक यात्रा है।
अंत्योदय: अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के लिए नीति
अंत्योदय का तात्पर्य उस व्यक्ति के कल्याण से है जो समाज की अंतिम पंक्ति में खड़ा है, यह विचारधारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय से लेकर अब नरेंद्र मोदी तक एक जीवंत व निरंतर विकसित होते विचार अनुक्रम का प्रतीक है। मोदी सरकार ने इस सिद्धांत को केवल भाषणों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे जमीन पर उतारते हुए एक व्यापक नीति के रूप में आत्मसात किया है। गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला योजना के अंतर्गत गैस कनेक्शन, शौचालय निर्माण, जन औषधि केंद्रों के माध्यम से सस्ती दवाइयों की उपलब्धता, और पीएम स्वनिधि योजना के जरिए रेहड़ी-पटरी वालों को स्वरोज़गार का अवसर – ये सभी प्रयास न केवल जरूरतमंदों को सहायता प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें आत्मगौरव और गरिमापूर्ण जीवन का अवसर भी प्रदान करते हैं।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में भी अंत्योदय का गहरा प्रतिबिंब देखने को मिलता है, जिसमें शिक्षा को गांव-कस्बों के छात्रों के लिए मातृभाषा में गुणवत्तापूर्ण, जीवन-कौशल आधारित शिक्षा सुनिश्चित की गई है। Digital India अभियान ने सुदूरवर्ती इलाकों तक न केवल सूचना पहुंचाई, बल्कि सेवा, सुशासन और आत्मनिर्भरता के नए द्वार खोले हैं।
इस प्रकार अंत्योदय अब मोदी युग में केवल सरकारी सहायता का पर्याय नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक न्याय, आत्मसम्मान और अवसरों की समानता का नया पर्याय बन चुका है। यही एकात्म मानववाद की जीवंतता का प्रमाण है अंतिम व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाना, उसे समाज की मुख्यधारा में भागीदारी का अधिकार देना।
समाज और प्रकृति के साथ समरसता:
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के चिंतन में प्रकृति के दोहन के स्थान पर उसके साथ समरस जीवन की बात की गई थी, और इसी दर्शन को नरेंद्र मोदी ने 21वीं सदी की वैश्विक भाषा में “पर्यावरणीय न्याय” के रूप में प्रस्तुत किया है। यह केवल एक पर्यावरण नीति नहीं, बल्कि भारतीय जीवनशैली का संस्कार है जो कहता है कि मनुष्य को उपभोग की सीमा पहचाननी होगी और प्रकृति से तालमेल बैठाते हुए जीवन जीना होगा।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने “International Solar Alliance” के ज़रिए सूर्य ऊर्जा को वैश्विक विकास का साधन बना दिया, जो विकासशील देशों को सस्ती, स्वच्छ और सतत ऊर्जा देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इसी तरह “Mission LiFE” यानि पर्यावरण के लिए जीवनशैली का विचार केवल भारत की नहीं, बल्कि वैश्विक नागरिकता की जिम्मेदारी को दर्शाता है, जिसमें हर व्यक्ति का योगदान प्रकृति संरक्षण में महत्त्वपूर्ण है। मोदी का यह आग्रह है कि क्लाइमेट चेंज के समाधान केवल बड़े समझौतों से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे व्यवहारिक बदलावों से आएंगे जैसे पानी की बचत, सिंगल यूज़ प्लास्टिक से परहेज़, ऊर्जा की मितव्ययिता, और जैविक उत्पादों का प्रयोग।
यह दृष्टिकोण न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक रूप में पुनर्परिभाषित करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि “विकास बनाम पर्यावरण” की जो द्वंदात्मक बहस पश्चिमी चिंतन में है, उसके विपरीत भारत का “विकास सह पर्यावरण” का मॉडल कहीं अधिक समावेशी और दीर्घकालिक है। मोदी का यह समरस दृष्टिकोण, एकात्म मानववाद को वैश्विक मंच पर स्थापित करता है, जहां प्रकृति शत्रु नहीं, बल्कि सहयोगी है और मनुष्य केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि रक्षक और पोषक है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता:
आज की दुनिया तेजी से आर्थिक, तकनीकी और सैन्य विकास की ओर अग्रसर है, परंतु इस विकास के केंद्र में मानवता कहीं छूटती जा रही है। एक ओर उपभोक्तावाद ने मनुष्य को केवल ‘उपयोगकर्ता’ और ‘ग्राहक’ के रूप में परिभाषित कर दिया है, वहीं दूसरी ओर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), सोशल मीडिया और अत्यधिक डिजिटलीकरण ने व्यक्ति को सामाजिक रूप से अलग-थलग और मानसिक रूप से असंतुलित करना शुरू कर दिया है। विश्व भर में पारिवारिक विघटन, नैतिक मूल्यों का पतन, अवसाद की बढ़ती दरें ये सब संकेत हैं कि वैश्विक मानवता एक गहरे नैतिक और आध्यात्मिक संकट से गुजर रही है।
ऐसे में एकात्म मानववाद केवल एक भारतीय विचारधारा नहीं, बल्कि समूची विश्व मानवता के लिए मार्गदर्शक दर्शन बनकर उभर रहा है। यह विचार कहता है कि मानव जीवन का लक्ष्य केवल वस्तुओं का उपभोग नहीं, बल्कि जीवन की समरसता और संतुलन है। यही समरसता व्यक्ति और समाज, राष्ट्र और प्रकृति के बीच ‘संवेदनशील समन्वय’ को जन्म देती है।
आज जब पश्चिमी दुनिया पर्यावरणीय संकट, सामाजिक अलगाव, मानसिक रोगों और नैतिक विचलन से जूझ रही है, तब उसे एक ऐसे दर्शन की आवश्यकता है जो तकनीक, बाजार और मनुष्य के बीच संतुलन स्थापित कर सके। एकात्म मानववाद यह प्रस्ताव रखता है कि “विकास” केवल GDP से न मापा जाए, जहां जीवन के भौतिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सभी पक्षों का संतुलित विकास हो।
नरेंद्र मोदी जी द्वारा G20 अध्यक्षता की थीम “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” ने एकात्म मानववाद को सम्पूर्ण विश्व से परिचित कराया। वे विश्व को एक ऐसा मार्ग दिखा रहे हैं, जिसमें विकास के साथ-साथ मूल्य, आत्मा और संस्कृति का भी स्थान है। इसलिए आज की विघटित होती मानवता को एकात्म मानववाद की अत्यंत आवश्यकता है, जो यह याद दिलाता है कि मनुष्य का अस्तित्व केवल “स्व” तक सीमित नहीं, वह समाज और सृष्टि का अभिन्न अंग है। भारत यदि विश्वगुरु बनता है, तो उसकी भूमिका केवल ज्ञान देने की नहीं, बल्कि दिशा देने और नेतृत्व करने की होगी और वह दिशा एवं नेतृत्व एकात्म मानववाद के आलोक से ही संभव है।
एकात्म मानववाद केवल भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक दर्शन नहीं, यह भारत की सनातन आत्मा का दार्शनिक प्रतिबिंब है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यकाल इस दर्शन को केवल भाषणों तक सीमित न रखकर, योजनाओं, नीतियों और वैश्विक दृष्टिकोण में उतारने का युग है। आज, जब विश्व पुनः मूल्यों, संस्कृति और संतुलन की खोज में है, एकात्म मानववाद उसका उत्तर हो सकता है।
(The views expressed are the author's own and do not necessarily reflect the position of the organisation)