“एक देश, एक चुनाव” विषय पर गोष्ठी का आयोजन
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन और श्याम लाल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “एक देश, एक चुनाव” विषयक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. अनिर्बान गांगुली (निदेशक, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन) रहे, जिन्होंने भारत में एकसमान चुनाव प्रणाली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्तमान परिदृश्य और इसकी संभावित चुनौतियों एवं लाभों पर व्यापक चर्चा की।
इससे पहले कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुआ.
प्राचार्य रवि नारायण कर ने एक देश एक चुनाव की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “एक देश, एक चुनाव” भारत को राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक बचत, प्रभावी शासन और मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रदान करेगा। यह देश की प्रशासनिक व्यवस्था को अधिक सक्षम, जवाबदेह और सुचारु बनाएगा, जिससे भारत का लोकतंत्र और सशक्त होगा। अब समय आ गया है कि इस महत्वपूर्ण सुधार को लागू कर भारत के विकास की गति को तेज किया जाए।
इसके पश्चात कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. अनिर्बान गांगुली ने अपने संबोधन में कहा कि “एक देश, एक चुनाव” केवल एक कानूनी सुधार नहीं, बल्कि नए भारत के निर्माण का एक व्यापक आंदोलन है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस विषय पर हो रही गहन चर्चा का उल्लेख करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को इस बहस में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए, क्योंकि वे ही भविष्य के नेता हैं, जो भारत के लोकतंत्र की दिशा तय करेंगे।
उन्होंने बताया कि 2017 में नीति आयोग द्वारा इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसमें दिवंगत प्रो. बिबेक देबरॉय के नेतृत्व में इस प्रणाली की संभावनाओं को रेखांकित किया गया। साथ ही, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने इस विषय पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, और 2019 में भी इस विषय पर चर्चा हेतु एक बैठक आयोजित की गई।
डॉ. गांगुली ने 1952 से 1967 के बीच हुए एकसमान चुनावों का उदाहरण देते हुए बताया कि उस समय भारत में चुनाव प्रक्रिया व्यवस्थित और स्थिर थी। लेकिन 1967 के बाद राज्य सरकारों के अस्थिर होने और बार-बार चुनाव होने के कारण इस व्यवस्था में बाधा आई, जिससे लगातार चुनावों की प्रवृत्ति विकसित हुई।
उन्होंने 1983 में चुनाव आयोग, 1999 में विधि आयोग, और 2015 में 79वीं संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों का उल्लेख करते हुए बताया कि इस विषय पर कई बार गंभीर चर्चा हो चुकी है, और अब इसे लागू करने की आवश्यकता है।
डॉ. गांगुली ने कहा कि लगातार होने वाले चुनावों के कारण शासन बाधित होता है, प्रशासनिक कार्य प्रभावित होते हैं और नीतिगत निर्णय लेने में देरी होती है। उन्होंने बताया कि 2024 में लोकसभा चुनाव पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए, जबकि “एक देश, एक चुनाव” लागू करने से लगभग 12,000 करोड़ रुपये की बचत संभव है।
उन्होंने 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति का जिक्र करते हुए बताया कि इस विषय पर 47 राजनीतिक दलों से परामर्श किया गया, जिनमें से 32 दलों ने इसे समर्थन दिया। इसके अलावा, 80% राजनीतिक दलों ने सहमति जताई, 100% पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों ने इसका समर्थन किया, 75% पूर्व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों ने सहमति दी, 100% पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने समर्थन दिया, 87% राज्य चुनाव आयोगों ने भी इस प्रणाली को उपयोगी माना।
डॉ. गांगुली ने बताया कि दिवंगत करुणानिधि ने अपनी जीवनी में “एक देश, एक चुनाव” का समर्थन किया था, और 2019 में शरद पवार ने भी इसे एक सराहनीय कदम बताया था। उन्होंने कहा कि “एक देश, एक चुनाव” केवल संसाधनों की बचत ही नहीं करेगा, बल्कि नीति-निर्माण की प्रक्रिया को भी गति प्रदान करेगा।
गोष्ठी के अंत में डॉ. गांगुली ने कहा कि “एक देश, एक चुनाव” भारत के लोकतंत्र को अधिक सशक्त और व्यवस्थित बनाएगा। इससे न केवल प्रशासनिक स्थिरता आएगी, बल्कि भारत के विकास की गति भी तेज होगी। उन्होंने इसे “लोकतंत्र का महोत्सव” करार देते हुए कहा कि यह देश के हर नागरिक की भागीदारी को सुनिश्चित करने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय होगा।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस आदर्श कुमार गोयल (पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय हरित अधिकरण एवं पूर्व न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट) ने की। अपने संबोधन में उन्होंने ‘एक देश, एक चुनाव’ के संवैधानिक एवं कानूनी पहलुओं पर चर्चा की और बताया कि इस नीति को लागू करने के लिए किस प्रकार संवैधानिक संशोधनों और राजनीतिक सहमति की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि यह नीति चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण प्रशासनिक कार्यों में होने वाली बाधाओं को रोका जा सकेगा।
कार्यक्रम में शिक्षाविदों, शोधार्थियों और छात्रों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपने विचार रखे। गोष्ठी का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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