• मेरे सामने पांच-सात कार्यक्रमो के प्रपोजल पडे हो तो मेरे स्वभाव के मुताबिक मै दिव्यांग के कार्यक्रम को प्रधानता देता हूं | निर्दोष बाल-बच्चो को मिलना, उनके परिवार जनो ने ईश्वर का प्रसाद समझकर इन बच्चों का जो पालन पोषण की होती है, एक तरह की तपस्या की होती है | इसलिये मुझे इस दिव्यांगजनो के माता-पिता को भी प्रणाम करने का अवसर मिलता है की जिन्होने अपने संतान के लिए खुद के जीवन को और उनके सपनो की आहूति दे दी है | मां-बाप कहीं जा नहीं सकते, संतान को अकेले रख नहीं सकते | उन परिवारों को देखे तो पता चलता है की परिवार कितनी तपस्या करता है और यह जब देखते है तब समाज के तौर पर, सरकार के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है की परिवार के इस काम में हम भी मददगार हो, उनकी थोडी जिम्मेदारी हम भी उठाये और उस पवित्र भाव से यह दिव्यांगजनो के बीच मेरी सरकार आती है, में आता हूं और यह सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है | इसके पीछे मेरे मन में एक विचार है, खयाल है | यह अवसर सहायता का अवसर नहीं है, साधन सहायता का अवसर नहीं है, यह तो इसका एक अल्प भाग है | पर इस लाखों लोगों के कार्यक्रम के द्वारा सवा सो करोड देशवासीयों के मनमें दिव्यांगजनो के प्रति एक जिम्मेदारी का अहसास कराना | जिसके घर में दिव्यांग व्यक्ति है सिर्फ उनकी जिम्मेदारी नहीं है पर यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है, पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी है उस वातावरण का निर्माण करने का मेरा एक प्रयास है| इस मुद्दे पर एक देश के तौर पर जाने-अन्जाने हम लोग उदासीन है |
• सरकारी ईमारतें बनी हो और अगर वहां कोई दिव्यांगजन को आना हो तो उनके लिये भी यही व्यवस्था होती है जो मजबूत शरीर वाले लोगों के लिये होती है | अब यह कैसे जायेगें वहां? हमने एक सुगम्य योजना बनाई, सरकारी ईमारतों को आग्रह किया है, रातों रात पैसे ना आये यह समझ सकते है, पर अब ईमारतें बने तो, रेलवे प्लेटफार्म बने तो, बस स्टेशन बने तो उसमे एक व्यवस्था ऐसी भी होनी चाहिये कि जिससे दिव्यांगजन सरलता से कहीं जा सके और मेरा अनुभव यह कहता है कि लोगों को इसमें कोई विरोध नहीं होता है, कोई परेशानी नहीं होती है बस यही कहते हैं कि साहब पहले किसी ने बताया नहीं था, आपने बता दिया अब हम कर देंगे| धीरे-धीरे हम यह वातावरण स्कूल हो, कोलेज हो, होस्पिटल हो, सरकारी जगह हो वहां जो भी व्यवस्था बनाये उसमें दिव्यांगो के लिए हमारे दिमाग में चिंतन होना चाहिये | आर्किटेक्चर कोलेज को भी पता होना चाहिये की उनके यहां से जो नये आर्किटेक्चर तैयार होंगे उनकी डिजाइन में यह व्यवस्था हो | यह एक जन-आंदोलन खडा करना पडेगा और अगर यह जन आंदोलन हम करेंगे तो काफी व्यवस्थाएं विकास ले सकती है और एकबार दिव्यांगजन के लिए समाज का नजरिया बदले, कोई दिव्यांगजन अगर जा रहा हो और चार-पांच युवान खडे हो जाये और उनको रास्ता दे तब सम्मान का भाव उनमें आता है कि यह देश, यह समाज और मेरे आसपास के लोग मेरे लिए जागृत है |
• जबसे सरकार में यह व्यवस्था बनी है, पिछली सरकारों ने भी यह दिशा में काम किया है पर आपको जान कर आश्चर्य होगा की 1992 से इस प्रकार के कामो की शूरूआत हुई | 1992 से 2014 तक इस प्रकार से दिव्यांगजनो को सहायता पहुंचाने के सिर्फ 56 कार्यक्रम हुए थे | दो साल में यह सरकार बनने के बाद साडे चार हजार एसे कार्यक्रम किये गये और देशभर में से खोज खोज करके अब तक साडे पांच लाख दिव्यांगजनो को सीधी सहायता मुहैया करा दी गयी है | सिर्फ योजना बनाना नहीं सरकार के सभी अंग संवेदनशील हो, योजनाए गरीब के घर, दलित के घर, वंचित के घर..उसके घर तक पहुंचे इसके लिए भारत सरकार पूरी तरह आग्रही है और परिणामकारी है |
• हमारे दिव्यागंजनो के लिये जो साधनो की जरूरी हो उस साधन बनाने के लिए सरकार का एक काम है जिसमें ईनोवेशन होता है | आपको आश्चर्य होगा की वह सिर्फ नाम का रह गया था, यह सरकार ने उसको पुनःजीवित किया, नये-नये इंजीनीयर को आमंत्रित किया और जो संस्था बंद हो गई थी उसमे नये नये ईनोवेशन हुए, नयी नयी चीजें बनने लगी और अब काफी सस्ते भावमें परिवार में भी अगर किसी को कुछ खरीदना हो तो खरीद सके एसी व्यवस्था करी | कहने का मतलब यह है की एक सरकार के तौर पर समाज के इस वर्ग की भी चिंता, उनको भी उतनी ही प्राथमिकता और उसका परिणाम है की आज समग्र डिपार्टमेन्ट भारत सरकार के मघ्य में आ गया है. दलित, पीड़ित, वंचित दिव्यांगजनो के लिये यह समग्र डिपार्टमेन्ट को प्राणवान बनाने का बीड़ा सरकार ने उठाया है और दो साल के कम समय में यह करने में हम सफल हुए है|
• सरकार कोई नियम बनाये की अब सरकार में दिव्यांगजनो को नौकरी मिलेगी | अखबार में हेडलाईन आती है, सरकार की वाहवाही भी होती है, चारो और प्रशंसा हो सबको अच्छा लगे | आप को जानके आश्चर्य और आघात लगेगा | जब मैं प्रधानमंत्री बनके दिल्ली गया, भारत सरकार की कमान संभाली, तब सबसे पहले मैंने जांच करने की सूचना दी | मैंने पूछा के भारत सरकार में दिव्यांगजनो के लिये पद तो है, लेकिन उसमें से कितने स्थान रिक्त है, खाली है? सरसरी नजर से दिखा था, बारीक जांच नहीं की थी, सिर्फ सरसरी नजर डाली थी | मैं प्रारंभ के दिनो की बात कर रहा हूं | बडौदा से, आप के यहां से सांसद बनके दिल्ली गया और प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली, उस दिनो की बात कर रहा हूं| तकरीबन 16,500 पद, जो दिव्यांगजनो के लिये थे, वो रिक्त थे, खाली थे |
• मैंने हमारे मंत्रीमंडल के साथी सदस्य, मंत्री और डिपार्टमेन्ट के अफसरों को कहा कि, सर्वप्रथम भर्ती करो, इस रिक्त स्थान को भरो | आज मैं संतोषपूर्वक कहता हूं कि तकरीबन 14,500 पद के लिये भर्ती प्रक्रिया संपन्न हो गई है और रिक्त स्थान पर आज दिव्यांगजन कार्यरत है | हम सिर्फ इस प्रकार के अवसर पर साधन सहायता ही नहीं करते| उनके के लिये काम भी कर दिखाते है |
• आप को आश्चर्य होगा की यहां दो बहन मेरे भाषण को दिव्यांजगनो के लिये, जो लोग सुन नहीं सकते है, उनके लिये उनकी भाषा में, सांकेतिक भाषा में मेरे भाषण को समजा रही है, प्रस्तुत कर रही है | लेकिन हमारा देश विशाल है | राजकोट में कोई बहन अलग प्रकार से संकेत करके पढाती है, मुंबई में दूसरी तरीके के, दिल्ली में तीसरे तरीके के, कोलकाता में चोथे तरीके से – कहने का अर्थ है कि हर राज्य ने अपनी-अपनी निशानी, संकेत गढ लिये है, विकसित किये है | कहने का अर्थ है कि अगर अहमदाबाद का कोई दिव्यांग अगर दिल्ली जाये तो उसे पता नहीं चलता कि ये क्या कहते है? क्योंकि निशानी या संकेत बदल जाते है | अब आप ही मुझे बताये कि इतने विशाल देश में दिव्यांगजनो के लिये, निशानी की भाषा, सांकेतिक भाषा एकसमान होनी चाहिये के नहीं? हिंदुस्तान के किसी भी कोने भी अगर हमारा दिव्यांग भाई-बहन जाये और वो निशानी करे, तो सामनेवाले को समझ में आना चाहिये कि नहीं? मुझे कहने में शरम आती है, मुझे माफ किजियेगा, यह काम भी इस देश में नहीं हुआ था | इस सरकार ने आकर देश के सभी दिव्यांगजनो के लिये एक समान भाषा बनाना तय किया, उसके लिये कानून बनाने का फैसला लिया| उस की तालीम की व्यवस्था की | किसी एक विषय पर जब गहन पडताल करते है, उस में डूब जाते है, तो समस्या का समाधान किस तरह से आता है, वो हमने देखा है |
• आज संपूर्ण विश्व में एक बात की प्रशंसा हो रही है | चारो और गौरवगान हो रहा है | किस बात पर? किस बात पर? किस बात पर प्रशंसा हो रही ही? अरे, मुझे सुनाई दे इतनी जोर से तो बोलो | पूरी दुनिया में किस बात की प्रशंसा हो रही है? किस बात की? अरे प्यारो, संपूर्ण विश्व ये कहा रहा है, आर्थिक विकास की दुनिया में, दुनिया के जो बडे-बडे अर्थतंत्र है, उसमें सबसे ज्यादा रफ्तार से आगे बढती ईकोनोमी कोई है, तो वो हिंदुस्तान की है दोस्तो | संपूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा रफ्तार से विकास करी रही ईकोनोमी हमारे भारत की है | हमारे देश में निरंतर दो साल सूखा पडने के बावजूद, वर्ल्ड बेंक हो, आईएमएफ हो, क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी हो, सभी एक सुर के साथ कह रहे है कि भारत का विकास जबरदस्त रफ्तार से हो रहा है | सभी समस्याओं का समाधान विकास है | और विकास के मार्ग से ही निरक्षरता दूर होगी, बीमारी भी दूर होगी, गरीबी भी दूर होगी और दुनिया के समृद्ध राष्ट्रो की तुलना में भारत भी उन्नत सर के साथ खडा होगा |
• थोडे समय से मैं गरीबो के लिय गैस के सिलेन्डर का प्रावधान करने में लगा हूँ | पहले किसी के घर में गैस का सिलिन्डर होता था तो वो बहु रसूखवाला परिवार समझा जाता था | उस परिवार की पहुँच ऊपर तक होगी ये माना जाता था | बेचारा गरीब इन्सान को तो सिलिन्डर के बारे में सोच भी नहीं सकता था | लोग सांसद के घर सिलिन्डर के लिये चिठ्ठी लिखवाने जाते थे | बडौदा के लोगो को इस समस्या का अहसास नहीं है, क्योंकि यहा तो पाईपलाईऩ से गैस आता है | गैस के सिलिन्डर नहीं मिलते थे |गरीब माताओ को चूल्हे पर धुंए के बीच रसोई बनानी पडती थी | वैज्ञानिकों का दावा है की एक दिन में 400 सिगरेट जितना धुआ गरीब माता के शरीर में जाता है | इस गरीब माता के स्वास्थ्य की चिंता कौन करे ?
• दिल्ली में हमारी सरकार ने तय किया की पांच करोड परिवारो को, जिनके पास गैस कनेक्शन नहीं है, ये सरकार सामने से उनको गेस कनेक्शन देगी और उन गरीब माताओ को चुल्हे से, धुए से मुक्ति दिलायेंगे | उनके लिये हररोज अभियान चल रहा है | भारत सरकार ने दाहोद में प्रारंभ किया था, आज समग्र हिंदुस्तान में अभियान चल रहा है | इस सरकार के केन्द्र में इस देश का गरीब, पीडित, दलित, शोषित, वंचित है, आदिवासी भाई है और उनके कल्याण के लिये काम करनेवाली ये सरकार है |
• आज दिव्यांगजनो को तकरीबन 10,000 लोगो को इस सहायता का लाभ मिलनेवाला है और हमारे गहलोत जी ने कहा उस प्रकार से, संपूर्ण जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध है | लोग देख सकते है कि हमारे गांव को वो दिव्यांग का नाम है, पर उसे सचमुच सहायता मिली है कि नहीं, वो देख सकते है | संपूर्ण पारदर्शिता हमारे सरकार की प्राथमिकता है | व्यापक जनसमाज के हितो के कार्यो को बल मिले इस प्रकार के कार्यो को हम कर रहे है |