Home » Salient Points of PM Narendra Modi’s address at Special Commemorative Postage Stamp Release on 100 Years of Yogoda Satsang Math on 7th March, 2017
- योगी परिवार के सभी महानुभाव आज 7 मार्च है, ठीक 65 साल पहले एक शरीर हमारे पास रह गया और एक सीमित दायरे में बंधी हुई आत्मा युगों की आस्था बनकर फैल गई ।
- योगी जी ने जो किया है हम उसे प्रसाद रूप लेकर के बांटते चले जा रहे हैं तो एक भीतर के आध्यत्मिक सुख की अनुभूति कर रहे हैं। और वही मुक्ति के मार्ग वगैरह की चर्चा हमारे यहां बहुत होती है, एक ऐसा भी वर्ग है जिसकी सोच है कि इस जीवन में जो है सो है, कल किसने देखा है कुछ लोग हैं जो मुक्ति के मार्ग को प्रशस्त करने का प्रयास करते है लेकिन योगी जी की पूरी यात्रा को देख रहे हैं तो वहां मुक्ति के मार्ग की नहीं अंतरयात्रा की चर्चा है।
- आप भीतर कितने जा सकते हो, अपने आप में समाहित कैसे हो सकते हो। त्रुटिगत विस्तार एक स्वभाव है, अध्यात्म भीतर जाने की एक अधिरत अनंत मंगल यात्रा है और उस यात्रा को सही मार्ग पर, सही गति से उचित गंतव्य पर पंहुचाने में हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, भगवतिंयों ने, तपस्वियों ने एक बहुत बड़ा योगदान दिया है और समय समय पर किसी न किसी रूप में ये परंपरा आगे बढ़ती चली आ रही है।
- योगी जी के जीवन की विशेषता, जीवन तो बहुत अल्प काल का रहा शायद वो भी कोई अध्यात्मिक संकेत होगा। कभी कभी हठियों को बुरा माना जाता है लेकिन वो प्रखर रूप से हठ योग के सकारात्मक पहलुओं के तर्क वितर्क तरीके से व्याख्या करते थे। लेकिन हर एक को क्रिया योग की तरफ प्रेरित करते थे अब मैं मानता हूं योग के जितने भी प्रकार है उसमें क्रिया योग ने अपना एक स्थान निश्चित किया हुआ है।
- मैं कल काशी में था, बनारस से ही मैं रात को आया और योगी जी के आत्मकथा में बनारस में उनके लड़क्कपन की बातें भरपूर मात्रा में, शरीर तो गोरखपुर में जन्म लिया लेकिन बचपन बनारस में बीता और वो मां गंगा और वहां की सारी परंपराएं उस आध्यात्मिक शहर की उनके मन पर जो असर था जिसने उनके लड़क्कपन को एक प्रकार से सजाया, संवारा, गंगा की पवित्र धारा की तरह उसका बहाया और वो आज भी हम सबके भीतर बह रहा है।
- मैं समझता हूं कि देशभक्ति होती है मानवता का, अध्यात्म जीवन की यात्रा को कहां ले जाती है उन शब्दों में बड़ा अद्भुत रूप से, आखिरी शब्द हैं योगी जी के और उसी समारोह में वो भी एक राजदूत का, सरकारी कार्यक्रम था, और उस कार्यक्रम में भी योगी जी कह रहे हैं जहां गंगा, जंगल, हिमालय, गुफायें और मनुष्य ईश्वर के स्वपन देखते है यानि देखिए कहां विस्तार है गुफा भी ईश्वर का स्वपन देखता है, जंगल भी ईश्वर का स्वपन देखता है, गंगा भी ईश्वर का स्वपन देखता है, सिर्फ इंसान नहीं ।
- मैं धन्य हूं कि मेरे शरीर ने उस मातृभूमि को स्पर्श किया। जिस शरीर में वो विराजमान थे उस शरीर के द्वारा निकले हुए आखिरी शब्द थे।
- फिर वो आत्मा अपना विचरण करके चली गई जो हम लोगों में विस्तृत होती है। मैं समझता हूं कि एकात्मभाव:, आदि शंकर ने अदैत्व के सिंद्धात की चर्चा की है।
- जहां द्वैत्य नहीं है वही अद्वैत्य है। जहां मैं नहीं, मैं और तू नहीं वहीं अद्वैत्य है। जो मैं हूं और वो ईश्वर है वो नहीं मानता, वो मानता है कि ईश्वर मेरे में है, मैं ईश्वर में हूं, वो अद्वैत्य है।
- योगी जी का एक बहुत बड़ा एक contribution है कि एक ऐसे व्यवस्था दे करके गए जिस व्यवस्था में बंधन नहीं है।
- मेरी समझ के हिसाब से मैं आपका अनुमान लगाता हूं। अगर मेरी समझ कुछ और होगी तो मैं आपका अनुमान अलग लगाऊंगा, तो ये सोचने वाले की क्षमता, स्वभाव और उस परिवेश का परिणाम होता है। उसके कारण विश्व की दृष्टि से भारत की तुलना होती होगी तो जनसंख्या के संबंध में होती होगी GDP के संदर्भ में होती होगी, रोजगार-बेरोजगार के संदर्भ में होती होगी। तो ये विश्व के वो ही तराजू है।
- योग एक सरल entry point है मेरे हिसाब से| दुनिया के लोगों को आप आत्मवत सर्वभूतेषु समझाने जाओगे तो कहाँ मेल बैठेगा, एक तरफ जहां eat drink and be merry की चर्चा होती है वहा तेन त्यक्तेन भुन्जिता: कहूंगा तो कहा गले उतरेगा।
- योग जो है वो हमारी आध्यात्मिक यात्रा का entry point है कोई इसे अंतिम न मान लें।लेकिन दुर्भाग्य से धन बल की अपनी एक ताकत होती है धनवृत्ति भी रहती है।
- योग अंतिम नहीं है उस अंतिम की ओर जाने के मार्ग का पहला प्रवेश द्वार है और कहीं पहाड़ पर हमारी गाड़ी चढ़ानी हो वहां धक्के लगाते हैं गाड़ी बंद हो जाती है लेकिन एक बार चालू हो जाए तो फिर गति पकड़ लेती है, योग का एक ऐसा एन्ट्रेस पांइट कि एक बार पहली बार उसको पकड़ लिया निकल गए फिर तो वो चलाता रहता है। फिर ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती है वो प्रक्रिया ही आपको ले जाती है जो क्रिया योग होता है।
- उसी योगी को नमन करते हुए आपके बीच इस पवित्र वातावरण में मुझे समय बिताने का सौभाग्य मिला, मुझे बहुत अच्छा नहीं लगा फिर एक बार योगी जी की इस महान परंपरा को प्रणाम करते हुए सब संतों को प्रणाम करते हुए और आध्यत्मिक यात्रा को आगे बढ़ाने में प्रयास करने वाले हर नागरिक के प्रति आदर भाव व्यक्त करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं। धन्यवाद|
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