- · लक्ष्मण राव जी इनामदार जी के शताब्दी समारोह के साथ इस सहकारी आंदोलन में और अधिक गति मिले, नई ऊर्जा मिले और समाज के प्रति एक संवेदना के साथ सामान्य मानवी की समस्याओं के समाधान के लिए मिल-बैठ करके कैसे रास्ते खोज जाएं, साथ-सहयोग और सहकारिता के द्वारा समस्याओं का कैसे समाधान हो, इसके लिए आज आप दिनभर बैठ करके व्यापक चिंतन भी करने वाले हो।· हमारा देश बहुरत्ना वसुंधरा है। हर काल खंड में, हर भू-भाग में समाज के लिए जीने वाले, समाज को कुछ न कुछ दे करके जाने वालों की श्रृंखला अनगिनत है।
· आज कई लोगों को ये भी सवाल उठेगा कि हमने तो कभी नाम नहीं सुना था, आप शताब्दी मना रहे हो। मैं मानता हूं कि नाम नहीं सुना था, वही तो उनकी सबसे बड़़ी कमाल थी।
· अपने-आप को हमेशा पीछे रख करके; और मैं मानता हूं सहकारिता की सफलता का पहला मंत्र यही होता है कि स्वयं को जितना हो सके उतना दूर रखना और सबको मिला करके लोगों को आगे करना, वो सहकारिता का सबसे बड़ा मंत्र है।
· उन्होंने व्यक्ति निर्माण में अपना जीवन खपाया, राष्ट्र निर्माण का एक रास्ता उन्होंने खोजा।
· ये मेरा सौभाग्य रहा, जीवन का बहुत कलाखंड उनके साथ बिताने का मुझे अवसर मिला। जवानी के अनेक वर्ष उन्हीं के मार्गदर्शन में काम करता रहा।
· लेकिन बहुत सी बातें थीं, वो उनके जाने के बाद पता चलने लगीं, यानी जीवन को कैसे जिआ होगा, इसका ये एक उत्तम उदाहरण है।
· सादगीपूर्ण जीवन और फिर भी स्वयं को हमेशा चित्र में न आने देना; साथी आगे बढ़ें, साथियों की शक्ति आगे बढ़े, विचार को ताकत मिले, ये अपने आप में इस महान परम्परा की एक अनमोल रत्न के रूप में उन्होंने काम किया।
· शताब्दी वर्ष के निमित्त कई कार्यक्रम होंगे। सहकारिता आंदोलन को एक नई ताकत मिलेगी। लेकिन आज जब हम वकील साहब के शताब्दी वर्ष निमित्त सहकारिता क्षेत्र में जो उनका योगदान था, उसको स्मरण करते हुए आगे बढ़ रहे हैं तब, आज दिनभर बैठ कर आप चर्चा करने वाले हैं। विश्व में best practices क्या हैं सहकारिता क्षेत्र की, इसकी चर्चा करने वाले हैं।
· कृषि क्षेत्र में हम सहकारिता के माध्यम से कैसे आगे बढ़े, 2022, हमारे किसानों की आय दोगुना कैसे हो, ऐसी कौन सी चीजों को हम जोड़ें, ऐसी कौन सी गलत आदतों को छोड़ें ताकि हम हमारे कृषि जगत को भी हमारे ग्रामीण जीवन को आधुनिक भारत के संदर्भ में तैयार करें। विकास की उस दिशा में तैयार करें।
· इतना बड़ा देश है। व्यवस्था की जरूरत पड़ती है, नियमों की जरूरत पड़ती है, structure की आवश्यकता होती है, do’s and dont’s की आवश्यकता होती है, वो तो जरूरी है। लेकिन सहकारिता उससे नहीं चलती है, सहकारिता एक spirit है।
· सहकारिता एक व्यवस्था नहीं है, एक spirit है। और ये spirit के लिए संस्कार आवश्यक हैं और इसलिए इनामदार जी बार-बार कहते थे, बिना संस्कार नहीं सहकार ।
· आज कभी-कभी नजर आता है कि spirit कहीं ढांचे में खो तो नहीं गया है। क्या हमें सहकारिता के spirit को पुनर्जीवित करने के लिए, पुन- चेतनमंत करने के लिए, वकील साहब से बड़ी प्रेरणा क्या हो सकती है। और हम जितनी ज्यादा मात्रा में सहकारिता spirit को ताकत देंगे, तो व्यवस्थाएं अपने-आप कोई दोष होगा, तो भी शायद व्यवस्थाएं ठीक हो जाएंगी।