Home » Salient Points of PM Modi’s address at Swachh Shakti 2017 – A Convention of Women Sarpanches at Gandhinagar, Gujarat on 8 Mar, 2017
- मेरा सौभाग्य है कि आज 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर देश के कोने-कोने से आई हुई माताओं, बहनों का दर्शन करने का सौभाग्य मिला, उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।
- । यहां भी आप लोगों ने दो प्रदर्शनी देखी होंगी; एक गांव- गांव का विकास और उसमें स्वच्छता का महात्मय, आधुनिक Technology से बहुत ही उत्तम प्रकार की प्रदर्शनी यहां लगाई हुई है। मुझे आने में कुछ जो देर हुई, उसका एक कारण वो प्रदर्शनी में मेरा मन लग गया; मैं जरा देखता ही रह गया; तो उसके कारण यहां पहुंचने में देर हो गई।
- ये स्वच्छ शक्ति का समारोह है। गांधी की जन्मभूमि गुजरात में है, गांधी के नाम से बने शहर में है, और गांधी जिसे हम महात्मा कहते थे, उस महात्मा मंदिर में है; इससे इसका कितना महात्मय है, आप समझ सकते हैं। यहीं पर एक Digital प्रदर्शनी, Virtual Museum पूज्य बापू के जीवन पर है।
- 2019, महात्मा गांधी को 150 वर्ष हो रहे हैं। पूज्य बापू कहते थे कि हिन्दुस्तान गांवों में बसा हुआ है। दूसरी बात एक कहते थे, कि मुझे अगर आजादी और स्वच्छता, दोनों में से पहले कुछ पसंद करना है तो मैं स्वच्छता पसंद करूंगा। गांधी के जीवन में स्वच्छता का कितना महात्मय था वो उनकी इस Commitment से पता चलता है।
- ये वो सरपंच बहनें हैं, जिन्होंने अपने गांव में ये करके दिखाया है। खुले में शौच जाना, उसके खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया है। गांव में इस व्यवस्था को विकसित करने के लिए प्रयास किया है। वैसी स्वच्छता के संदेश को सफलतापूर्वक अपने गांव में लागू करने वाली शक्तिरूपा लोग यहां बैठे हैं।
- अभी आपने फिल्म देखी, उसमें बयां है, स्वच्छता के संबंध में पहले हमारा rank 42% तक था । इतने कम समय में हम 62 पर पहुंच गए। अगर इतने कम समय में 20 प्रतिशत हम सुधार कर सकते हैं, तो आने वाले डेढ़ साल में हम और अधिक कर सकते हैं, ये साफ-साफ आप लोगों ने करके दिखाया है।
- आज जिन माताओं, बहनों को सम्मान करने का मुझे अवसर मिला, उनकी एक-एक मिनट की फिल्म छोटी-छोटी हमने देखी। कुछ लोगों का जो भ्रम रहता है, उन सबके भ्रम तोड़ने वाली ये सारी फिल्में हैं। कुछ लोगों को लगता है कि पढ़े-लिखे लोग ही कुछ काम कर सकते हैं, इन बहनों ने करके दिखाया।
- कुछ लोंगो को लगता है शहर में होंगे थोड़ी चपाचप अंग्रेजी बोल पाते होंगे वो ही कर पाते हैं। ये अपनी भाषा के सिवाय कोई भाषा नहीं जानते, तो भी ये कर पाते हैं। अगर किसी विषय के साथ व्यक्ति जुड़ जाता है, जीवन का मकसद अगर उसको मिल जाता है, तो वो उसे पार करके रहता है।
- लेकिन जिसको जिंदगी का मकसद मिल जाता है, Purpose of life जिसको पता चल जाता है, वह बिना रुके, बिना थके, बिना झुके, अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए, जिसकी भी जरूरत पड़े उसको साथ ले करके; संघर्ष करना पड़े तो संघर्ष करके, चुनौतियों से मुकाबला करना पड़े तो मुकाबला करके भी अपने मकसद को पूर्ण करने तक वो चैन से बैठते नहीं हैं।
- आप में से सब सरपंच होना कोई छोटी बात नहीं है। कुछ लोग होंगे जिनको सरपंच बनने में शायद तकलीफ न हुई हो, लेकिन ज्यादातर ऐसे होंगे जिनको इस लोकतांत्रिक परम्परा में, यहां तक पहुंचने में काफी कुछ करना पड़ा होगा।
- एक संस्था ने बड़ा मजेदार सर्वे किया है और उस सर्वे में उसने बड़ी महत्वपूर्ण चीजें पाई हैं। और उसने सारी जो professional महिलाएं हैं, उनका सर्वे किया था और उस सर्वे में पाया गया कि नई चीज सीखने की वृत्ति महिलाओं में ज्यादा होती है। जो काम उसको दिया गया, उसको पूरा करने के लिए जितनी अपनी क्षमता बनानी चाहिए, शक्ति लगानी चाहिए, उसमें कभी वो पीछे नहीं रहती है। जो काम उसको मिला, पूरा नहीं होता है वो चैन से बैठती नहीं है। वो उसको लगातार उसके पीछे लगी रहती है।
- अपना काम करने के लिए, जो तय किया हुआ है उसके जिम्मे है, उसको पूरा करने के लिए कौन-कौन से resource mobilize करने चाहिए, किस-किसकी शक्ति जोड़नी चाहिए, बड़ी आसानी से वो करती है उसको कोई Ego नहीं होता है। किसी को नमस्ते करके काम करवाना है तो नमस्ते करके करवा लेंगी, किसी से गुस्सा करके करवाना है तो गुस्सा करके करवा लेंगी। बड़ा Interesting Survey है ये।
- जहां भी, जो भी अवसर मिला है, उस काम को देदिप्यमान करने का काम हमारी माताओं, बहनों ने किया है और इसलिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। ये हमारा सामाजिक दायित्व है, राष्ट्रीय दायित्व है, मानवीय दायित्व है। अमानवीय बात समाज में स्वीकृत नहीं हो सकती है और हमारे यहां तो शास्त्रों में कहा गया है, बेटी का महात्मय करते हुए,
यावत गंगा कुरूक्षेत्रे, यावत तिष्ठति मेदनी।
यावत सीता कथालोके, तावत जिवेतु बालिका।।
- जब तक गंगा, कुरुक्षेत्र और हिमालय हैं, जब तक सीता की गाथा इस लोक में है, बालिका तुम तब तक जीवित रहो। तुम्हारा नाम तब तक दुनिया याद रखे। ये हमारे शास्त्रों में बेटी के लिए कहा गया है। और इसलिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ; कोई भेदभाव नहीं।
- हमारे सरपंच महिलाओं से मेरा ये आग्रह है कि इस बात को आप अपने गांव में डंके की चोट पर देखें। अगर बेटा पढ़ता है गांव की बेटी भी पढ़नी चाहिए। गरीब से गरीब हो, और सरपंच ये न सोचे कि इसके लिए बजट की, बजट की जरूरत नहीं होती है। सरकार ने स्कूल बनाया हुआ है। सरकार ने टीचर रखा हुआ है। उसके लिए गांव को अलग खर्चा नहीं करना है, सिर्फ आपको निगरानी रखनी है कि बेटियां स्कूल में जाती हैं कि नहीं, जैसे कौन परिवार है जिसने अपनी बेटी को स्कूल में नहीं रखा है; इतना सारा देख लीजिए।
- आप गांव में कोशिश कीजिए, कुछ लोगों को लगाइए, Self-help group बनाइए। गांव के कूडे-कचरे में से Compost खातर बनाइए, गांव खातर की बिक्री होगी, पंचायत की आय होगी। और जमीन का सुधार होगा तो गांव के लोगों की खेती भी अच्छी होगी।
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