मान्यता है कि जब एक ही जगह पर, एकजुट होकर मंत्र का जाप किया जाए, तो ऊर्जा का ऐसा चक्र निर्मित होता है, जो मन-मंदिर, शरीर-आत्मा सभी को अपनी परिधि में ले लेता है। आधुनिक विज्ञान भी इससे इनकार नहीं करता।
आज इस समय मैं इस अद्भुत पाठ से पूरे वातावरण में वही ऊर्जा महसूस कर रहा हूं
हमारी संस्कृति में जो गलत परंपराएं धीरे-धीरे शामिल हो गई थीं, उनका आदि शंकराचार्य ने विश्लेषण किया, उनकी आलोचना की और सटीक तर्क देकर उन्हें आगे की पीढ़ियों में जाने से रोका। शिव-शक्ति-विष्णु-गणपति और कुमार की पूजा की भारतीय परंपरा को उन्होंने पुनर्स्थापित किया
आदि शंकराचार्य ने वेद और उपनिषद के ज्ञान से संपूर्ण भारत को एकीकृत किया, एकता के भाव से जोड़ा।
शास्त्र को उन्होंने साधन बनाया, शस्त्र नहीं। अलग-अलग विचारधाराओं और दर्शन की अच्छी बातों को उन्होंने आत्मसात किया और लोगों को ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया
आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया तप भारतीय संस्कृति के वर्तमान स्वरूप में आज भी विद्यमान है। एक ऐसी संस्कृति जो सबको आत्मसात करती है, सबको साथ लेकर चलती है। यही संस्कृति न्यू इंडिया का भी आधार है। ऐसी संस्कृति जो सबका साथ सबका विकास के मंत्र पर विश्वास रखती है:
एक तरह से विश्व की समस्त समस्याओं का उत्तर भारतीय संस्कृति में है। हम कहते हैं- “सहनाववतु-सह नौ भुनक्तु”…सभी का पोषण हो, सभी को शक्ति मिले, कोई किसी से द्वेश ना करे
प्रकृति से हम सभी को पर्याप्त भंडार मिला हुआ है। हमारे यहां प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि प्रकृति से मिलने वाले उत्पादों का संतुलित उपयोग करने पर बल दिया जाता है। यही विचार हमेशा से हमारे शासन में, हमारे प्रशासन में दिखा है
LED का बल्ब जो पहले 350 रुपये से ज्यादा का होता था वो अब उजाला स्कीम के तहत केवल 40 से 45 रुपये में उपलब्ध है। अब तक देश में 27 करोड़ से ज्यादा LED बल्ब बांटे जा चुके हैं। यहां कर्नाटक में भी पौने दो करोड़ LED बल्ब वितरित किए गए हैं
अगर एक बल्ब की कीमत में औसतन 250 रुपए की कमी मानें तो देश के मध्यम वर्ग को इससे लगभग 7 हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है। इतना ही नहीं, ये बल्ब हर घर में बिजली बिल कम कर रहे हैं। इससे भी देश के मध्यम वर्ग की सिर्फ एक साल में 14 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की अनुमानित बचत हुई है
उज्जवला योजना के जरिए सरकार अब तक 3 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को गैस कनेक्शन दे चुकी है। जब इन महिलाओं के पास गैस कनेक्शन नहीं था, तो वो लकड़ियों पर या फिर केरोसीन पर निर्भर थीं। उज्जवला ने ना सिर्फ उनकी जिंदगी आसान बनाई है, बल्कि पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रही है
समय की मांग है पूजा के देव के साथ ही राष्ट्रदेवता की भी बात हो, पूजा में अपने ईष्टदेव के साथ भारतमाता की भी बात हो। अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, कालाधन, भष्टाचार जैसी बुराइयों ने भारतमाता को जकड़ रखा है,उससे देश को मुक्त कराने के लिए संत और अध्यात्मिक समाज भी अपने प्रयास बढ़ाए