साथियों, ये 2018 का प्रारंभिक काल है। मैं आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। इस भवन में भी ये अधिकृत पहला कार्यक्रम है। 7 दिसंबर को इसका लोकार्पण किया था, लेकिन अधिकृत कार्यक्रम आज पहला है।
पर मुझे खुशी इस बात की है कि जिस महापुरुष के नाम से ये भवन जुड़ा हुआ है, और जिनके चिंतन पर वैश्विक स्तर पर चिंतन हो ये अपेक्षा है; उस भवन में जो कार्यक्रम हो रहा है उसकी महत्ता और बढ़ जाती है क्योंकि बाबा साहेब जीवनभर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते रहे।
हमारा संविधान भी उस अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए एक framework प्रदान करता है। अब सामाजिक न्याय बस सिर्फ एक सामाजिक व्यवस्था तक ही सीमित रहने से होता नहीं है। क्षेत्र विशेष का भी पीछे रह जाना एक अन्याय का कारण होता है। कोई गांव पीछे रह जाए तो वो सिर्फ एक गांव एक entity group में पीछे रहे ऐसा नहीं है।
वहां रहने वाले लोग, उनको मिलने वाली सुविधाएं, उनके हक, उनके अवसर, इन सबमें, सबमें वो अन्याय का शिकार हुआ होता है। और इसीलिए 115 जिले, उसका विकास, उस बाबा साहेब अंबेडकर की सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता का भी एक बहुत बड़ा, एक systematic solution प्राप्त करने का प्रयास का हिस्सा बनेगा। और उस अर्थ में इस भवन में ये पहला कार्यक्रम और इस विषय पर कार्यक्रम, मैं समझता हूं कि अपने आप में एक शुभ संकेत है।
आप दो दिन से विचार-विमर्श कर रहे हैं। अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि हमारे देश में अगर एक बार हम ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं है।
बैंक राष्ट्रीयकरण होने के बाद भी 30 करोड़ लोग इस व्यवस्था से अछूते रह जाएं। लेकिन एक बार ये देश ठान लें, ठीक है चला, चला, जैसा गया, गया; बीता, बीता, अब नहीं चलेगा और जन-धन अकाउंट एक जनआंदोलन बन जाए और देश का आखिरी छोर पर बैठा हुआ व्यक्ति भी अपने आपको अर्थव्यवस्था की main stream का हिस्सा महसूस करने लगे; ये इसी देश ने, इसी सरकार के मुलाजिम ने, इसी बैंक के लोगों ने सिद्ध करके दिखाया है और समय सीमा में करके दिखाया है।
18 हजार गांवों में एक हजार दिन में बिजली पहुंचाना। अगर सामान्य स्तर पर पूछताछ करते हैं तो अफसरों ये ही आता था कि साहब इतना काम करना है तो 5-7 साल तो लगेंगे। लेकिन जब चुनौती के रूप में उनके सामने आया कि 1000 दिन में 18 हजार गांवों में जाना है, बिजली पहुंचानी है; यही व्यवस्था, सही नियम, यही फाइल, यही परम्परा, यही टेक्नीक, यही तरीके, इसी टीम ने 18 हजार गांवों में समय-सीमा में बिजली पहुंचाने का काम सफलतापूर्वक कर दिया।
मैं इन चीजों का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि हम अपार क्षमता के धनी हैं। हम अपार संभावनाओं के युग में इस व्यवस्था का नेतृत्व कर रहे हैं और हम अपार अवसरों के जन्मदाता बन करके अप्रतिम सिद्धियों के जन्मदाता भी बन सकते हैं। ये मैं स्वयं आप सबके बीच रहते-रहते अनुभव कर रहा हूं, सीख रहा हूं और मेरा विश्वास मजबूत होता चला जा रहा है। और उसी में से बात आई, हम इन जमे हुए चीजों की चिंता कर लेते हैं, और कभी-कभी लगता है कि चलो हो जाएगा। मैं नहीं मानता हूं कि कोई सरकार किसी समय ease of doing business में भारत इतना पीछे है, ये पढ़ करके, सुन करके पीड़ा नहीं होती; हर एक को हुई होगी।
हर किसी ने सोचा होगा कि भई ये कब तक चलेगा? दुनिया की नजरों में हम पीछे कब तक रहेंगे? और एक बात जो सिद्ध है कि आज वैश्विक परिवेश में हमने भारत की positioning भी उस रूप में करनी ही पड़ेगी, कोई चारा नहीं है, उसको एक बस है ही नहीं, करनी ही पड़ेगी। तब जा करके विश्व का जो माहौल बना है, भारत के प्रति जो आकर्षण पैदा हुआ है, वो आकर्षण भारत के लाभ में परिवर्तित हो सकता है, अवसर में परिवर्तित हो सकता है।
मान लीजिए एक कमरे के अंदर कोई सज्जन है। उस कमरे के दरवाजे पर एक छोटा सा छेद कर दिया और उनका हाथ बाहर निकाला। और लोगों को कहेंगे कि आइए shake hand कीजिए। कतार में खड़े रहेंगे shake hand के लिए। मुझे बताइए क्या होगा? कल्पना कीजिए। कमरे में कोई बंद है, दरवाजा बंद है, दरवाजे में छेद है, हाथ बाहर लटका हुआ है और आपको कतार में खड़ा है हाथ मिलाने के लिए। क्या होगा, आप कल्पना कर सकते हैं।
लेकिन आपको बताया जाए अंदर सचिन तेंदुलकर हैं, इनका हाथ है। कैसा फर्क पड़ जाएगा एक दम से, हाथ मिलाने का तरीका, थोड़ी ऊष्मा आ जाएगी। देखा नहीं आपने, आपको बताया गया है। जानकारियों की ताकत होती है जी। अगर आप जिसको काम में लेना चाहते हैं उसे पता हो भई ये हैं वो और यहां पहुंचने वाले हैं। तुम कल्पना करो तुम्हारे बेटे के बेटे जब देखेंगे तो क्या कितना बड़ा शान से गर्व करेंगे। वो जुड़ना शुरू हो जाएगा।
जनभागीदारी- जनभागीदारी से नहीं होती। आप जब तक लोगों को जोड़ने की systematic scheme नहीं बनाओगे। स्वच्छ भारत अभियान- मीडिया ने बहुत साकारात्मक रोल किया, उसका एक असर है।
ऊपर से नीचे टीम ने फिजिकली उसमें आपने आपको involve करने का प्रयास किया। इसका एक natural impact आया। और हर कोई स्वच्छता के अंदर कुछ न कुछ contribute कर रहा है और बड़ा गर्व महसूस कर रहा है। और आपने देखा होगा स्वच्छता के अभियान की सफलता के मूल में मैं सबसे बड़ी ताकत देख रहा हूं वो छोटे-छोटे बच्चे। वे एक प्रकार से उसके ambassador बन गए हैं
घर में भी, दादा होंगे कुछ करते हैं तो कहते हैं दादा ये मत करो, मोदीजी ने मना किया है। ये, ये जो ताकत है messaging की, वो बदलाव लाती है। हम समाज के, जैसे मान लीजिए हम कुपोषण की चर्चा करें या सुपोषण की चर्चा करें? हम backward District बोलें या कि aspiration District बोलें? क्योंकि साइक्लोजिकली बहुत फर्क पड़ता है जी।
हमारी जितनी स्कीम है। क्या स्कूल के अंदर सुबह जब असेम्बली होती है, हर स्कूल में होती है। बताइए हमारे 2022 के target पर आज कौन बोलेगा, हेल्थ पर कौन बोलेगा, न्यूट्रिशन पर कौन बोलेगा। हर दिन 10 मिनट कोई न कोई बच्चा किसी न किसी एक सब्जेक्ट पर बोलेगा। हवा में विषय फैलते चले जाएंगे। मेरे कहने का तात्पर्य है कि जब तक हम इन चीजों को जन सामान्य से जोड़ेंगे नहीं, हम परिणाम को प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
दूसरा, कहीं न कहीं हमने, मान लिजिए आपने 6 target point किए है। एक जगह पर एक अच्छी तरह हो जाएगा, दूसरी जगह पर दूसरा अच्छा होगा। ये 6-10-15 जो भी चीजें तय की हैं, कहीं न कहीं मॉडल के रूप में develop कर सकते हैं क्या within 3-4 months? और लोगों को फिर ले जाए, देखो भई आइए, ये देखिए, कैसा होता है, आपके यहां हो सकता है, फिर उनको लगेगा कि अपने ही District में फलाने गांव में हो गया, चलो अपने गांव में भी कर सकते हैं। ये अगर हम परंपरा बनाए तो मुझे विश्वास है कि ये जो 115 District हमने टारगेट किए हैं।