Home » Salient Points of PM Modi’s address at 350th Birth Anniversary Celebrations of Shri Guru Gobind Singh Ji Maharaj in Patna, Bihar on 05 Jan, 2017
- श्री पटना साहिब, गुरू दी नगरी विखे दशमेश पिता साहिब श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज दे जन्म दिहाड़े ते गुरू साहिबान दी बख्शीश लेन आई साध-संगत, तुहाणु मैं जी आईयां आखदां हां। इस पवित्र दिहाड़े ते मैं तुहाणु सारियां नू नवे साल दी लख-लख बधाईयां भी दिंदा हां।
- आज हम पटना साहिब की इस पवित्र धरती पर इस प्रकाश-पर्व को मनाने में भाग्यशाली हुए हैं।
- कार्यक्रम का स्थल भले पटना साहिब में हो, लेकिन प्रेरणा पूरे हिन्दुस्तान को है; प्रेरणा पूरे विश्व को है। और इसलिए ये प्रकाश-पर्व हमें भी मानवता के लिए किस रास्ते पर चलना है, हमारे संस्कार क्या हैं, हमारे मूल्य क्या हैं, हम मानव जाति को क्या दे सकते हैं, इसके लिए एक पुन: स्मरण करके नए उमंग, उत्साह और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का यह अवसर है।
- गुरू गोविंद सिंह जी महाराज एक त्याग की प्रतिमूर्ति थे।
- जब लोग आदि शंकराचार्य की चर्चा करते हैं तो कहते हैं कि आदि शंकर ने हिन्दुस्तान के चारों कोनों में मठ का निर्माण करके भारत की एकता को बल देने का प्रयास किया था।
- गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने भी हिन्दुस्तान के अलग-अलग कोने से उन पंच-प्यारे की पसंद करके समग्र हिन्दुस्तान को खालसा परम्परा के द्वारा एकता के सूत्र में बांधने का उस जमाने में अद्भुत प्रयास किया था, जो आज भी हमारी विरासत है।
- गुरू गोविंद सिंह महाराज साहिब का कसौटी का मानदंड भी बड़ा ऊंचा रहता था। उन्होंने तो सर कटवाने के लिए निमंत्रण दिया था; आइए, आपका सर काट दिया जाएगा और इस त्याग के आधार पर तय होगा आगे कैसे बढ़ना है।
- अपना सर देने के लिए देश के अलग-अलग कोने से लोग आगे आए, उसमें एक गुजरात के द्वारिका का दर्जी समाज का बेटा, वो भी आगे आया और पंच-प्यारों में उसने जगह पाई। गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने उसको गले लगाया और पंच-प्यारे खालसा परम्परा निर्माण तो किया था गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने, वे चाहते उस दिशा में ये परम्परा चल सकती थी, लेकिन ये उनका त्याग, उनकी ऊंचाई थी कि गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने स्वयं को भी उस बंधनों में बांध दिया, और उन्होंने कहा कि ये जो पंच-प्यारे हैं, ये जो खालसा परम्परा बनी है; मेरे लिए भी क्या करना, न करना; कब करना, कैसे करना; ये जो निर्णय करेंगे मैं उसका पालन करूंगा।
- मैं समझता हूं कि गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब का इससे बड़ा त्याग की कल्पना कोई कर नहीं सकता कि जिस व्यवस्था वो खुद को खड़ी की, खुद की प्रेरणा से जो व्यवस्था खड़ी हुई, लेकिन उस व्यवस्था को उन्होंने अपने सर पर बिठाया और स्वयं को उस व्यवस्था को समर्पित कर दिया और उस महानता का परिणाम है आज साढ़े तीन सौ (350) साल का प्रकाश-पर्व मनाते हैं तब दुनिया के किसी भी कोने में जाएं, सिख परम्परा से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति होगा वो वहां नतमस्तक होता है, अपने-आप को समर्पित करता है। गु्रू गोविंद सिंह जी महाराज साहब ने जो परम्परा रखी थी उस परम्परा का पालन करता है।
- समाज-सुधारक हो, वीरता की प्रेरणा हो, त्याग और तपस्या की तपोभूमि में अपने आपको तपाने वाला व्यक्तित्व हो, सब गुण सम्पन्न, ऐसा गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब का जीवन आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा देता रहे। हम भी सर्वपंत समभाव के साथ समाज का हर वर्ग बराबर है, न कोई ऊंच है न कोई नीच है, न कोई अपना है न कोई पराया है; इन महान मंत्रों को ले करके हम भी देश में सब दूर उन आदर्शों को प्रस्थापित करेंगे।
- देश की एकता मजबूत बनेगी, देश की ताकत बढ़ेगी, देश प्रगति की नई ऊंचाईयों को प्राप्त करेगा। हमें वीरता भी चाहिए, हमें धीरता भी चाहिए; हमें शौर्य भी चाहिए, हमें पराक्रम भी चाहिए; हमें त्याग और तपस्या भी चाहिए।
- आज गुरू गोविंद जी महाराज साहब के उसी स्थान पर आ करके गुरू ग्रंथ साहिब को भी नमन करने का सौभाग्य मिला है, मुझे विश्वास है कि ये हमें प्रेरणा देता रहेगा।
- विश्वभर में जो भी भारत सरकार के अलग-अलग मिशन्स के द्वारा, एम्बेसीज के द्वारा ये प्रकाश-पर्व मनाया जा रहा है। मैं विश्वभर में फैले हुए गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब का स्मरण करनेवाले सभी जनों को अंत:करण पूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
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