ये वो लोग हैं जिन्होंने समय रहते समझदारी भरे कदम उठाए और जीवन की हर चुनौती के लिए खुद को तैयार किया है।मुझे पूरा विश्वास है कि आज जो बातें बताएंगे वो देश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करेंगी। हम सब जानते हैं कि जीवन में एक बात बहुत निश्चित है और वो है जीवन की अनिश्चितता। हम में से कोई ये नहीं जानता है कि आने वाला कल, आने वाला पल हमारे जीवन में क्या ले करके आने वाला है।
जन सुरक्षा योजनाएं जीवन की अनिश्चितताओं और परिस्थितियों से जूझने की और जूझ करके जीतने की हिम्मत देती हैं। और ये हिम्मत अब देश के करोड़ों लोगों तक पहुंची है। फिर चाहे वो प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना हो, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना हो, अटल पेंशन योजना हो या प्रधानमंत्री वय-वंदना योजना हो।
जन सुरक्षा योजनाएं आमजन को और खासतौर पर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को सशक्त बना रही हैं। जिससे संकट के समय वो मजबूती के साथ खड़े रह सकें, जीवन से हार न जाएं। जब हमारी सरकार बनी, हम सरकार में आए तो आर्थिक सहायता तो दूर की बात, गरीब के पास अपना बैंक खाता भी नहीं था।
हमने तीन बातों पर जोर दिया – दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, आदिवासी, महिला; इन सबको सशक्त बनाने के लिए बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों तक बैंक की सुविधा पहुंचाना। लघु उद्योग और छोटे व्यापारियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना और वित्तीय रूप से असुरक्षित लोगों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना, यानी Banking the unbanked, funding the unfunded and financially securing the unsecured.
और आप सब लोगों को बहुत खुशी होगी कि विश्व बैंक की Fintax Report में कहा गया कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना एक सफल financial inclusion program रहा, जिसमें तीन साल में, 2014 से 2017 की अवधि में 28 करोड़ नए बैंक खाते खोले गए। यह संख्या इस अवधि के दौरान पूरे विश्व में खोले गए सभी नए बैंक अकाउंट का 55 प्रतिशत है – आधे से ज्यादा। पहले हमारे यहां कहावत होती थी – एक बाजू राम, एक बाजू गांव, यानी एक तरफ हिन्दुस्तान और एक तरफ पूरी दुनिया।
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में बैंक खाते रखने वाले लोगों की संख्या 2014 में, यानी हमारी सरकार बनने से पहले करीब-करीब 50-52 प्रतिशत थी। वो इन तीन सालों में 80 प्रतिशत को पार कर चुकी है।और विशेष रूप से महिलाओं के बैंक खातों में बढ़ोत्तरी हुई है। सालों से बात होती आई है कि अलग-अलग देशों में सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था है, लेकिन भारत में नहीं है।
जब हम सरकार में आए तब हाल कुछ ऐसा ही था। देश का सामान्य जन सामाजिक सुरक्षा से वंचित था। ये बात सही है कि भारत में परम्परागत रूप से संयुक्त परिवार की व्यवस्था थी। एक-एक परिवार में 20-20, 25-25, 30-30 लोग साथ रहते थे; तो सामाजिक व्यवस्था थी सुरक्षा की। लेकिन अब परिवार छोटे होते चले जा रहे हैं, बूढ़े मां-बाप अलग रहते हैं, बच्चे अलग रहते हैं। सामाजिक व्यवस्था बदल रही है।