Today, on Global Tiger Day, we re-affirm our commitment towards protecting the tiger. The results of the just declared tiger census would make every Indian, every nature lover happy. Nine long years ago, it was decided in Saint Petersburg, that the target of doubling the tiger population would be 2022.
We in India completed this target four years early. The speed and dedication with which various stake-holders worked to achieve this is remarkable.
This is one of the finest examples of संकल्प से सिद्धि। Once the people of India decide to do something, there is no force that can prevent them for getting the desired results.
साथियो, मुझे याद है कि 14-15 साल पहले जब ये आंकड़े सामने आए थे कि देश में सिर्फ 1400 टाइगर रह गए हैं, तो ये बड़े डिबेट का विषय बन गया था, चिंता का कारण बन गया था। टाइगर प्रोजेक्ट से जुड़े हर व्यक्ति के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी।
टाइगर के लिए उपयुक्त माहौल से लेकर इंसानी आबादी के साथ संतुलन बिठाने का एक बहुत मुश्किल काम सामने था, लेकिन जिस प्रकार संवेदशनशीलता के साथ, आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए इस मुहिम को आगे बढ़ाया गया, वह अपने-आप में बहुत ही प्रशंसनीय है।
आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारत करीब 3 हजार टाइगर्स के साथ दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सुरक्षित Habitats में से एक है। दुनियाभर में टाइगर की करीब तीन-चौथाई आबादी का बसेरा हमारे हिन्दुस्तान में है।
यहां उपस्थित आप में से कई लोग ये भी भली-भांति जानते हैं कि Wild Life eco-system को समृद्ध करने का ये अभियान सिर्फ टाइगर तक ही सीमित नहीं है। गुजरात के गिर के जंगलों में पाए जाने वाले Asiatic Lion और Snow Leopard के संरक्षण की योजना पर भी तेजी से काम हो रहा है।
बल्कि गिर में तो जो काम पहले से चल रहा है, उसके सुखद परिणाम आज साफ-साफ नजर आ रहे हैं। वहां के शेरों की संख्या 27 प्रतिशत तक बढ़ी है। मुझे खुशी है कि भारत की Best Practices का लाभ टाइगर रेंज के दूसरे मित्र देशों को भी मिल रहा है।
आज National Tiger Conservation Authority चीन, रूस समेत 5 देश समझौता कर चुके हैं और जल्द ही दूसरे देशों के साथ समझौता भी तय है। ग्वाटेमाला भी अपने यहां Jaguar Conservation के लिए भी हमसे तकनीकी मदद ले रहा है। वैसे ये भी दिलचस्प है कि टाइगर, सिर्फ भारत ही नहीं, कई और देशों में आस्था का प्रतीक है।
भारत के अलावा मलेशिया और बांग्लादेश का राष्ट्रीय पशु बाघ ही है। चीनी संस्कृति में तो Tiger Year मनाया जाता है। यानी एक तरह से देखें तो टाइगर से जुड़ी कोई भी पहल, कई देशों को, वहां के लोगों को कई तरह से प्रभावित करती है।
Human empowerment is incomplete without a better environment. And so, the way ahead is in collectiveness instead of selectiveness. We need to take a broad-based and holistic look at environmental conservation.
There are several plants and animals out there that need our help. What is it that we can do, either through technology or human action, to give them a fresh lease of life so that they can add beauty and diversity to our planet. Also, there is a very old debate – development or environment. And, both sides present views as if each is mutually exclusive.
लेकिन हमें सह-अस्तित्व को भी स्वीकारना होगा और सह-यात्रा के महत्व को भी समझना होगा। I feel it is possible to strike a healthy balance between- development and environment. और हमारा तो देश ऐसा है कि जहां हमें हजारों साल से सह-अस्तित्व की शिक्षा दी गई है। हमारे पूर्वजों ने जो भगवान की कल्पना की थी और सह-अस्तित्व का उदाहरण उसमें महसूस होता है; ये सावन मास है; सोमवार है, शिवजी के गले में सांप है और उसी परिवार के गणेशजी का आसन चूहा है। सांप चूहे को खाने की आदत रखता है, लेकिन शिवजी अपने परिवार में सह-अस्तित्व का संदेश देते हैं। ये अपने-आप में हमारे यहां किसी परमात्मा की कल्पना पशु, पक्षी, पौधे के बिना नहीं की गई, उसके साथ जोड़ा गया है।
In our policies, in our economics, we have to change the conversation about conservation. We have to be both, smart and sensitive, and create a healthy balance of environmental sustainability and economic growth.