कई चेहरे 12-15 साल के बाद देख रहा हूँ। यहाँ ऐसे भी चेहरे दिख रहे हैं जिन्होंने अपनी जवानी गुजरात के लिए खपा दी थी। कई रिटायर्ड अफसर नजर आ रहे हैं जिन्होंने अपने समय में गुजरात को बहुत कुछ दिया, और उसी के कारण आज गुजरात का दीया ओरों को रोशनी दे रहा है।
तो मैं खास तो गुजरात सरकार का इसलिए आभारी हूँ कि भवन तो ठीक है, कोई भी वहाँ रिबन काट लेता, लेकिन मुझे आप सबके दर्शन करने का मौका मिल गया।
सबसे पहले तो आप सबको गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। भगवान गणेश की कृपा देशवासियों पर बनी रहे। राष्ट्र निर्माण के हर संकल्प सिद्ध हों। इस पावन पर्व पर आप सबको और देशवासियों को भी और विशेष करके आज गुजरात का कार्यक्रम है तो गुजरात के लोगों को अनेक-अनेक मंगलकामना हैं।
और गणेश चतुर्थी को शाम को प्रतिक्रमण पूर्ण होने के बाद एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य हम करते हैं और जैन परम्परा में यह बहुत ही उत्तम संस्कार है ‘मिच्छामी दुकड़म’। मन से, वचन से, कर्म से, कभी भी, किसी को दुख पहुँचाया है तो क्षमा याचना का ये पर्व माना जाता है ‘मिच्छामी दुक्ड़म’। तो मेरी तरफ से भी गुजरात के लोगों का, देश के लोगों को और अब तो दुनिया को भी ‘मिच्छामी दुकड़म’।
मुझे खुशी है कि भगवान सिद्धि विनायक के पर्व पर हम एक और सिद्धि का उत्सव मनाने के लिए यहाँ इकट्ठे हुए हैं। गरवी गुजरात सदन गुजरात के करोड़ों जनों की भावनाओं, परम्परा और संस्कृति के अनुकूल सभी की सेवा के लिए तैयार है। मैं आप सभी को, गुजरात-वासियों को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
अभी आपने एक तो फिल्म देखी गुजरात भवन की, लेकिन मैं अभी वहाँ जाकर आया हूँ। कुछ देर पहले गुजरात संस्कृति की अनुपम झलक भी यहाँ पर हमको देखने को मिली है। और एक प्रकार से कलाकारों ने कम समय में और कम जगह में शानदार प्रस्तुति की है।
साथियो, गुजरात भवन के बाद अब गरवी गुजरात सदन की उपस्थिति अनेक तरह की नई सहूलियत ले करके आएगी। मैं इस बिल्डिंग के निर्माण से जुड़े साथियों को बधाई देता हूँ, जिन्होंने तय समय से पहले इस शानदार इमारत का निर्माण किया है।
दो साल पहले सितम्बर में मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री जी ने इसका शिलान्यास किया था और आज सितम्बर के प्रारंभ में ही इसका उद्घाटन करने का मौका मुझे मिला है। मुझे खुशी है कि समय पर प्रोजेक्ट्स पूरा करने की एक आदत सरकारी संस्थाओं में, सरकारी एजेंसियों में विकसित हो रही है।
और जब मैं गुजरात में था तो मैं डंके की चोट पर मैं कहता था कि जिसका शिलान्यास मैं करता हूँ उसका उद्घाटन भी मैं ही करूँगा।और उसमें अहंकार नहीं था, सार्वजनिक commitment रहता था उसमें। और उसके कारण मेरे सभी साथियों को इन कामों के लिएजुटे रहना पड़ता था। और उससे परिणाम भी मिलते थे। और इस कार्य संस्कृति को न सिर्फ हमें अपनाए रखना है बल्कि हर स्तर पर इसका विस्तार होना बहुत जरूरी है।
साथियो, ये भवन भले ही Mini Gujarat का मॉडल हो, लेकिन ये New India की उस सोच का भी प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिसमें हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को, हमारी परम्पराओं को आधुनिकता के साथ जोड़ करके आगे बढ़ने की बात करते हैं। हम जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं, आसमान को छूना चाहते हैं।
और इस भवन में जैसे बताया गया eco friendly, water harvesting, waterrecycling जैसे आधुनिक systems का भी भरपूर उपयोग है तो दूसरी तरफ रानी गिवाब का भी चित्रण है। इसमें जहाँSolar power generation की व्यवस्था है, वहीं मोढेरा सूर्य मंदिर को भी जगह मिली है।
Solid waste management की आधुनिक तकनीक के साथ ही इस इमारत में कच्छ की लिपण कला के आर्ट को भी वहाँ पर जगह दी गई है जिसमें पशुओं के waste को आर्ट की शक्ल दी जाती है।
भाइयो और बहनों, निश्चित तौर पर ये सदनगुजरात के art & craft हस्तशिल्प के लिए और गुजरात के heritage tourism को promote करने के लिए बहुत अहम सिद्ध हो सकता है। देश की राजधानी में जहाँ दुनियाभर के लोगों का, व्यापारियों, कारोबारियों का आना-जाना होता है, वहाँ इस प्रकार की सुविधा का होना बहुत उपयोगी है।
इसी तरह गुजराती संस्कृति पर आधारित प्रदर्शनियों के लिए सदन के सेंट्रल आरकिएम का उपयोग करने का विचार भी बहुत ही अभिनंदनीय है।
मैं मुख्यमंत्रीजी से आग्रह करूँगा कि यहाँ गुजरात टूरिज्म से जुड़ी जो व्यवस्था है उसको और सशक्त बनाया जाए। सांस्कृति कार्यक्रम और फूड फेस्टिवल जैसे आयोजनों के माध्यम से दिल्ली के, देशभर के पर्यटकों को गुजरात के साथ connect किया जा सकता है।
एक समय था गुजरात का खाना तो खास करके उत्तर भारत के लोग, उनको पसंद नहीं आता था, कहते थे अरे यार बहुत मीठा होता है और कहते थे यार, करेले में भी आप मीठा डालते हैं? लेकिन इन दिनों में देख रहा हूँ, लोग पूछते हैं भई गुजरात खाना अच्छाकहाँ मिलेगा? गुजराती थाली कहाँ अच्छी मिलती है? और गुजरात के लोगों की विशेषता है, जब वो गुजरात में होते हैं तो Saturday, Sunday शाम को खाना नहीं पकाते, वो बाहर जाते हैं और जब गुजरात में होते हैं तब इटालियन ढूंढते हैं, मैक्सिकन ढूँढते हैं, साउथ इंडियन डिश ढूंढते हैं।
लेकिन गुजरात के बाहर जाते हैं तो गुजराती डिश ढूँढते हैं। और यहाँ खमण को भी ढोकला बोलते हैं और हाँडवा को भी ढोकला बोलते हैं।ये हैं तो एक ही परिवार के, अब अगर गुजरात के लोग बढ़िया branding करें, इन चीजों को पहुँचायें तो लोगों को पता चले कि भई खमण अलग होता है, ढोकला अलग होता है और हाँडवा अलग होता है।
नए सदन में गुजरात में निवेश आकर्षित करने के लिए, गुजरात में उद्योगों के लिए, एक अहम सेंटर बने इसके लिए नई व्यवस्थाएं की गई हैं। और मुझे विश्वास है कि इन सुविधाओं से गुजरात में निवेश के इच्छुक भारतीय और विदेशीनिवेशकों को और अधिक सुविधा मिलेगी।