Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

Salient Points of PM’s address to Civil Service Probationers in Kevadia

साथियो, देश की विभिन्‍न सिविल सर्विसेज के इस combined foundation course से एक तरह से एक नए अध्‍याय की शुरूआत हुई है। अभी तक  तो ये चलता रहा है कि कुछ लोग मसूरी में ट्रेनिग लेते हैं तो कुछ लोग हैदराबाद में या फिर अन्‍य शहरों में। जैसा मैंने पहले भी आपसे कहा- जिन साइलोज की बात मैं अक्‍सर करता हूं, उनका एक स्‍वरूप ट्रेनिग से ही शुरू हो जाता था। सिविल सेवा के integration का सही मायने में आरंभ अब आप सभी साथियों के साथ हो रहा है। ये आरंभ अपने-आप में एक reform है। मैं इससे जुड़े तमाम अधिकारियों को, तमाम साथियों को भी बधाई देता हूं।

साथियो, ये reform सिर्फ ट्रेनिंग के integration तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी सोच और एप्रोच को भी विस्‍तार दिया गया है। आप सभी युवा trainees का विस्‍तृत एक्‍सपोजर हो, ये कोशिश भी की गई है। यही कारण है कि सोशल और इकोनॉमिक दुनिया से जुड़े ग्‍लोबल लीडर्स से, एक्‍सपर्टस से आपको रूबरू कराया गया।

साथियो, Statue of Unity की छत्रछाया और उससे यहां पर हो रहा ये कार्यक्रम, इसका एक विशेष महत्‍व बन जाता है क्‍योंकि सभी सिविल सेवा को राष्‍ट्र निर्माण का, राष्‍ट्रीय एकता का अहम माध्‍यम बनाने का vision स्‍वयं सरदार वल्‍लभ भाई पटेल का था। अपने इस vision को जमीन पर उतारने के लिए उन्‍होंने अनेक चुनौतियों का सामना किया। तब कुछ लोगों को लगता था कि जिन अफसरों की भूमिका आजादी के आंदोलन को दबाने की रही, वो आजाद भारत के निर्माण में मददगार कैसे सिद्ध होंगे। और ये सवाल आना बहुत स्‍वाभाविक भी था।

ये विचार भी स्‍वाभाविक था और नफरत का भाव भी बहुत स्‍वाभाविक था, लेकिन दूरदृष्‍टा सरदार साहब ने इन तमाम आलोचकों को याद कराया कि आखिरकर ये bureaucracy ही है जिसके भरोसे हमको आगे बढ़ना है। यही bureaucracy है जिसने रियासतों के व्‍यय में अहम कड़ी की तरह काम किया था।

साथियो, सरदार पटेल ने दिखाया है  कि सामान्‍य जन के जीवन में सार्थक बदलाव के लिए हमेशा एक बुलंद इच्‍छा शक्ति का होना बहुत जरूरी होता है। करीब सौ साल पहले अहमदाबाद म्‍यूनसिपलिटी को दस साल के भीतर-भीतर सीमित संसाधनों के बीच transform करके उन्‍होंने सबको अपनी प्रतिभा का कायल बना दिया था। और इसी vision के साथ ही उन्‍होंने आज़ाद भारत की सिविल सेवा का खाका खींचा था।

साथियो, निष्‍पक्ष और निस्‍वार्थ भाव से किया गया हर प्रयास नए भारत की मजबूत नींव है। न्‍यू इंडिया के सपने को पूरा करने के लिए हमारी व्‍यवस्‍था में, हमारी bureaucracy में 21वीं सदी की सोच और सपने अनिवार्य हैं। ऐसी bureaucracy जो creative और constructive हो, जो imaginative और innovative हो, जो proactive और polite हो, जो professional और progressive हो, जो energetic और enabling हो, जो efficient और effective हो, जो transparent और tech-enabled हो।

साथियो, आपके सामने जितनी बड़ी opportunity है उतनी ही बड़ी responsibility भी है। एक समय था जब आपके वरिष्‍ठों को, आपके सीनियर्स को अभाव में ही सब कुछ संभालना होता था। सड़कें हो, रेलवे हो, पोर्ट हो, एयरपोर्ट हो, स्‍कूल हो, कॉलेज हो, ईवन टेलीफोन, ईवन रोड़; सब कुछ का अभाव था। आज स्थितियां ऐसी नहीं हैं।

भारत तेजी से बदल रहा है। कभी अभावों में चलने वाली यात्रा आज विपुलता की तरफ बढ़ रही है। आज देश में विपुल युवा शक्ति है, आज देश में विपुल अन्‍न के भंडार हैं, आज देश में आधुनिक टेक्‍नोलॉजी की ताकत है- ऐसे में अब आपको इस विपुलता का पूरा लाभ उठाना है। आपको देश का सामर्थ्‍य बढ़ाना है, साथ-साथ स्‍थायित्‍व मजबूत करना है।

साथियो, आप इस रास्‍ते पर सिर्फ एक कैरियर के लिए नहीं आए हैं, महज जॉब के लिए नहीं आए हैं, बल्कि सेवा के लिए आए हैं, सेवा भाव से आए हैं, सेवा परमोधर्म- इस मंत्र को ले करके आए हैं।

आपके हर निर्णय से, हर एक्‍शन से, हर सिग्‍नेचर से लाखों जीवन प्रभावित होंगे। और साथियो, आप जो भी‍ निर्णय लेंगे, उनका स्‍कोप बेशक स्‍थानीय होगा, क्षेत्रीय होगा, लेकिन उनका prospective- national होना चाहिए। यानी आप फैसले को आपके जिले, आपके ब्‍लॉक, आपके विभाग की आवश्‍यकताओं को और समस्‍याओं को जरूरत के अनुसार लेंगे। वो देश के विकास में कैसे contribute कर सकते हैं, ये परख आपको करनी ही चाहिए, हमेशा करनी चाहिए।

और साथियो, अपने हर निर्णय को आप सभी दो कसौटियों पर जरूर कसिएगा। एक- जो महात्‍मा गांधी ने रास्‍ता दिखाया था- आपका फैसला समाज के आखिरी छोर पर जो व्‍यक्ति खड़ा है, उसकी आशा-आकांक्षाओं को वो पूरा कर पा रहा है या नहीं कर पा रहा है। और दूसरा- आपका फैसला इस कसौटी से कसना चाहिए कि आपका निर्णय देश की एकता, अखंडता और प्रगति को आगे बढ़ाने वाला हो, उसे मजबूत करने वाला हो।

साथियो, यहां inspirational district की चर्चा हुई है। आखिर देश के 100 से अधिक जिले विकास की दौड़ में छूट क्‍यों गए? इसके पीछे सोच और एप्रोच भी एक बहुत बड़ा कारण रहा है। ये जिले geographically और socially बहुत challenging थे। लिहाजा हर स्‍तर पर इनकी उपेक्षा हुई, इनको अपने हाल पर छोड़ दिया गया। इस उपेक्षा के कारण सोसायटी में असंतोष की भावना आ गई, जिसका लाभ गलत ताकतों ने उठाना शुरू कर दिया।

पर अब ये हुआ कि इन जिलों का विकास और भी मुश्किल हो गया। इस स्थिति‍ को बदलना आवश्‍यक था, इसलिए हमने इन जिलों के पिछड़ेपन के बजाय इनकी aspiration को आगे बढ़ाने का फैसला किया। हमने human development index के हर पैमाने पर समय-सीमा के भीतर काम करना शुरू किया। हमने टेक्‍नोलॉजी का उपयोग बढ़ाकर योजनाओं को ज्‍यादा प्रभावी तरीके से जमीन पर उतारा। आज हमें इसके अभूतपूर्व परिणाम भी मिलने लगे हैं। और अब आप सभी, आप पर इस काम को और गति देने का जिम्‍मा आने वाला है।

साथियो, आने वाले समय में आप में से अनेक साथियों की तैनाती ब्‍लॉक या फिर जिला स्‍तर पर होगी। जाहिर है वहां अनेक समस्‍याओं के समाधान आपको ढूंढने होंगे। मेरा आपको सुझाव रहेगा कि आप अपने क्षेत्र की एक बड़ी समस्‍या को एक वक्‍त में हाथ‍ में लें और उसका संपूर्ण समाधान करने का प्रयास करें यानी One district one problem and total solution.

अक्‍सर हम जोश-जोश में हर तरफ हाथ मारना शुरू कर देते हैं जिससे हमारे प्रयास और हमारे resources, दोनों बंट जाते हैं। एक समस्‍या को हल करिए, जिससे आपको भी confidence मिलेगा, लोगों का भरोसा भी आप पर बढ़ेगा। अब जनता का भरोसा आप जीतते हैं तो आपके साथ जनता की भागीदारी भी बढ़ जाती है।

साथियो, आपके सामने bureaucracy और system को लेकर बनी एक negative धारा को बदलने की बहुत बड़ी चुनौती है। Bureaucracy और system, ये दो ऐसे शब्‍द बन गए हैं जिनको bad bureaucracy या bad system लिखने की जरूरत नहीं पड़ती। वो अपने-आप में ही negative connotation के लिए उपयोग होने लगा है। आखिर ये हुआ क्‍यों? हमारे अधिकतर अफसर मेहनती भी हैं और receptive  भी हैं, लेकिन पूरे system और पूरी bureaucracy का negative perception बन गया है।