मेरे प्यारे भाईयों और बहनों, जब भी मैं काठमांडू आता हूं तो यहां के लोगों का स्नेह और अपनापन मैं बहुत हृदय से feel करता हूं। न सिर्फ मेरे लिए बल्कि भारत के प्रति भी यही आत्मीयता नेपाल में नजर आती है।
लगभग चार वर्ष पहले मुझे सावन माह के अंतिम सोमवार तक यहां पशुपतिनाथ जी के चरणों में आ करके पूजा का अवसर मिला था। कुछ महीने पहले जब मैं यहां आया था, तो मुझे पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ और जानकी धाम तीनों बड़े तीर्थों पर जाने का सौभाग्य मिला।
मैं भक्तिभाव से गदगद हूं, क्योंकि आज बाबा पशुपतिनाथ ने मुझे फिर एक बार दर्शन दिया है, सीधा उनके चरणों में आने का मुझे सौभाग्य मिला है। यह सिर्फ मेरी भावना ही नहीं बल्कि भारत और दुनिया के करोड़ों आध्यात्मिक जीवन को स्वीकार करने वाले, धार्मिक परंपराओं को स्वीकार करने वाले, प्रभु भक्ति में लीन रहने वाले शिव भक्तों की इच्छा होती है कि जीवन में कम से कम एक बार पशुपतिनाथ के दर्शन करे।
भारत और नेपाल के बीच शिव भक्ति और शिव भक्तों का सम्बन्ध इतना मजबूत है कि न तो समय का इस पर असर हुआ और न ही दूरी का असर हुआ और न ही कठिन रास्तों का असर हुआ। काठमांडू और कन्याकुमारी के बीच हजारों किलोमीटर का फासला है, लेकिन करीब डेढ़ हजार वर्ष पहले से ही तमिलनाडु में पशुपतिनाथ की गाथाएं गूंज रही है।
साथियों, पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ और जानकी धाम नेपाल की विविधता को एकता में पिरोते हैं साथ ही वे भारत के साथ रिश्तों की डोर को भी हर पल नई मजबूती देते हैं। काशी और काठमांडू को बाबा विश्वनाथ और पशुपतिनाथ जोड़ते हैं। और मैं सोमनाथ की धरती से निकला हूं।
सोमनाथ से विश्वनाथ, विश्वनाथ से पशुपतिनाथ इसी प्रकार माता सीता और प्रभु श्री राम का रिश्ता जनकपुर को अयोध्या से तो भगवान जगन्नाथ और मुक्तिनाथ मस्तंग को पुरी से जोड़ते हैं। सुंदर बागमती घाटी के बीच में विराजे भगवान पशुपतिनाथ एक तरफ धौलागिरी और अन्नपूर्णा और दूसरी तरफ सागरमाथा और कंचन जंगा। यह दुनियाभर के शिव भक्तों और पर्यटकों को एक सुंदर और अद्भूत अनुभव देता है।
काठामांडू की यह पवित्र धरती हिन्दू और बोध आस्था की एक प्रकार से संगम स्थली है। यह दोनों मत किस प्रकार एक दूसरे के प्रति समावेशी है, इनके मानने वालों के बीच किस प्रकार का मेल-मिलाव है। काठमांडू की गलियों और पगडंडियों से गुजरते हुए अनुभव हर कोई यात्री कर सकता है। हर किसी को अनुभव होता है। भगवान पशुपतिनाथ का यह धाम भी बहुत आस्था के अनेक केंद्रों से घिरा हुआ है।
बुद्ध भिक्षुओं के कण से गुत्था और अभी प्रदीप जी बता रहे थे – ओम मणि पद्मे हम – और शिव भक्तों के मुख से ओम नम: शिवाय का जाप कब एकाकार हो जाते हैं पता तक नहीं चलता। यह परंपरा भी नेपाल और भारत के बीच रिश्तों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। नेपाल के लुम्बिनी ने दुनिया को गौतम दिये, तो भारत के बौद्धगया ने बुद्ध दिये हैं।
गौतम बुद्ध का दिखाया रास्ता आज अतिवाद और आतंकवाद जैसी दुनिया की अनेक समस्याओं को हल करने का प्रेरणास्रोत है।