मंच पर विराजमान बंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना जी, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्रीमान केसरी नाथ जी त्रिपाठी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी जी, विश्व भारती के उपाचार्य प्रोफेसर सबूज कोली सेन जी और रामकृष्ण मिशन विवेकानंद इंस्टीटयूट के उपाचार्य पूज्य स्वामी आत्मप्रियानंद जी और यहां मौजूद विश्व भारती के अध्यापकगण और मेरे प्यारे युवा साथियों।
प्रधानमंत्री होने के नाते मुझे देश के कई विश्वविद्यालयों के convocation में हिस्सा लेने का अवसर मिला है।
वहां मेरी सहभागिता अतिथि के रूप में होती है लेकिन यहां मैं एक अतिथि नहीं बल्कि आचार्य यानि चांसलर के नाते आपके बीच में आया हूं।
यहां जो मेरी भूमिका है वो इस महान लोकतंत्र के कारण है। प्रधानमंत्री पद की वजह से है। वैसे ये लोकतंत्र भी अपने आप में एक आचार्य तो है जो सवा सौ करोड़ से अधिक हमारे देशवासियों को अलग-अलग माध्यमों से प्रेरित कर रहा है।
लोकतांत्रिक मूल्यों के आलोक में जो भी पोषित और शिक्षित होता है वो श्रेष्ठ भारत और श्रेष्ठ भविष्य के निर्माण में सहायक होता है।
जैसे किसी मंदिर के प्रागंन में आपको मंत्रोच्चार की ऊर्जा महसूस होती है। वैसी ही ऊर्जा मैं विश्व भारती, विश्वविद्यालय के प्रागंन में अनुभव कर रहा हूं। मैं जब अभी कार से उतरकर मंच की तरफ आ रहा था तो हर कदम, मैं सोच रहा था कि कभी इसी भूमि पर यहां के कण-कण पर गुरुदेव के कदम पड़े होंगें।
यहां कहीं आस-पास बैठकर उन्होंने शब्दों को कागज पर उतारा होगा। कभी कोई धुन, कोई संगीत गुनगुनाया होगा। कभी महात्मा गांधी से लंबी चर्चा की होगी। कभी किसी छात्र को जीवन का, भारत का, राष्ट्र के स्वाभिमान का मतलब समझाया होगा।
वैदिक और पौराणिक काल में जिसे हमारे ऋषियों-मुनियों ने सींचा। आधुनिक भारत में उसे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे मुनिषयों ने आगे बढ़ाया। आज आपको जो ये सप्तपरिणय का गुच्छ दिया गया है। ये भी सिर्फ पते नहीं है।
बल्कि एक महान संदेश है। प्रकृति किस प्रकार से हमें एक मनुष्य के नाते, एक राष्ट्र के नाते उत्तम सीख दे सकती है।
ये उसी का एक परिचायक, उसकी मिसाल है। यही तो इस अप्रतिम संस्था के पीछे की भावना, यही तो गुरुदेव के विचार हैं, जो विश्व भारती की आधारशिला बनी।
भारत और बंग्लादेश दो राष्ट्र हैं लेकिन हमारे हित एक-दूसरे के साथ समन्वय और सहयोग से जुड़े हुए हैं। culture हो या public policy हम एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। इसी का एक उदाहरण बंग्लादेश भवन है। जिसका थोड़ी में हम दोनों वहां जाकर के उद्घाटन करने वाले हैं। ये भवन भी गुरुदेव के vision का ही प्रतिबिंब है।
अगर हम अफगानिस्तान जाएं तो काबुली वाला की कहानी का जिक्र हर अफगानिस्तानी करता ही रहता है। बड़े गर्व के साथ करता है। तीन साल पहले जब मैं तजाकिस्तान गया तो वहां पर मुझे गुरुदेव की एक मूर्ति का लोकार्पण करने का भी अवसर मिला था। गुरुदेव के लिए वहां के लोगों में जो आदर भाव मैंने देखा वो मैं कभी भूल नहीं सकता।