साथियो, Nation first की इस भावना पर चलते हुए हमने जो काम किया, उस पर जनता का भरोसा कितना ज्यादा है वो आप इस साल के लोकसभा चुनाव में देख चुके हैं। देश की जनता जानती और मानती है कि हमने Nation first को अपना प्राण-तत्व मानकर के ही काम किया है।
अब इसी mandate से हमें ये आदेश दिया है कि जनता कि आवश्यकताओं के साथ ही आकांक्षाओं-अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए निरंतर काम हो। आखिर ये अपेक्षाएं क्या हैं? ये अपेक्षाएं हैं – देश को दशकों पुरानी चुनौतियों से उस दलदल से बाहर निकालना।
साथियो जब Nation first होता है, तब हमारे संकल्प भी बड़े होते हैं और उनको सिद्ध करने के प्रयास भी व्यापक होते हैं। मैं कुछ उदाहरणों के साथ अपनी बात बताना चाहता हूं-
साथियो, आर्टिकल 370 और 35ए- इसकी वजह से भारत ने जो भोगा है वो भी आप जानते हैं और अब कैसे इस चुनौती का समाधान किया गया है ये भी आपने देखा है। आर्टिकल 370 को हमारे संविधान में पहले दिन से अस्थाई कहा गया है, temporary कहा गया था, लेकिन फिर भी कुछ लोगों और कुछ परिवारों के राजनीतिक स्वार्थ की वजह से इसे phychologically स्थाई मान लिया गया था।
ऐसा करके उन लोगों ने संविधान की भावना का अपमान किया, उसे नजरअंदाज किया। आर्टिकल 370 की वजह से जो अनिश्चितता बनी, उसने वहां अलगाव फैलाने वालों को हौसला-हवा दी। हमारी सरकार ने आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35ए- इसको हटाकर देश के संविधान की सर्वोपरिता को पुन: स्थापित किया है। अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विकास के नए मार्ग खुलने की शुरूआत हुई है।
साथियो, देश के सामने एक और विषय था जो सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा था, दशकों से अलग-अलग अदालतों में इस पर सुनवाई हो रही थी। और ये विषय था अयोध्या का। पहले जो दल सत्ता में रहे उन्होंने इस संवेदनशील और भावात्मक विषय को सुलझाने के लिए इच्छाशक्ति ही नहीं दिखाई।
वो इसमें अपना वोट खोज रहे थे, इसलिए अदालतों में इसे अटकाने के लिए जोर लगाते रहे। कोई कारण नहीं था कि ये विवाद पहले हल न होता। लेकिन कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों की स्वार्थ भरी राजनीति ने अयोध्या विवाद को इतने दिन तक खींचा। अगर ऐसे लोगों का बस चला होता तो इस विषय को ये लोग कभी सुलझने ही नहीं देते।