नमस्कार। साहिब बंदगी। आज हम अपने के बड़ा सौभाग्यशालीमानत हाणि कि महान सूफी संत कबीरदास जी के स्मृति में हो रहे ई आयोजन में ये पावन धरती पर पाय लागी। आज हमके यहां आके बहुत नीक लगता। हम ये पावन धरती के प्रणाम करत बाड़ी और आप सब लोगन के पाय लागी।
यहां उपस्थित सभी अन्य महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए मेरे प्यारे भाइयो और बहनों। आज मुझे मगहर की इस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला, मन को एक विशेष संतोष की अनुभूति हुई।
भाइयो-बहनों, हर किसी के मन में ये कामना रहती कि ऐसे तीर्थ स्थलों में जाएं, आज मेरी भी वो कामना पूरी हुई है। थोड़ी देर पहले मुझे संत कबीरदास जी की समाधि पर फूल चढ़ाने का, उनकी मजार पर चादर चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं उस गुफा को भी देख पाया जहां कबीरदास जी साधना किया करते थे। समाज को सदियों से दिशा दे रहे, मार्गदर्शक, समधा और समता के प्रतिबिम्ब, महात्मा कबीर को उनकी ही निर्वाण भूमि से मैं एक बार फिर कोटि-कोटि नमन करता हूं।
ऐसा कहते हैं कि यहीं पर संत कबीर, गुरू नानक देव और बाबा गौरखनाथ जी ने एक साथ बैठ करके आध्यात्मिक चर्चा की थी। मगहर आ करके मैं एक धन्यता अनुभव करता हूं। आज ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा है। आज ही से भगवान भोलेनाथ की यात्रा भी शुरू हो रही है। मैं तीर्थ यात्रियों को सुखद यात्रा के लिए हृदयपूर्वक शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों, ये हमारे देश की महान धरती का तप है, उसकी पुण्यता है कि समय के साथ समाज में आने वाली आंतरिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए समय-समय पर ऋषियों ने, मुनियों ने आचार्यों ने, भगवन्तों ने, संतों ने मार्गदर्शन किया है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कालखंड में अगर देश की आत्मा बची रही, देश का समभाव, सद्भाव बचा रहा तो ऐसे महान तेजस्वी-तपस्वी संतों की वजह से ही हुआ।
समाज को रास्ता दिखाने के लिए भगवान बुद्ध पैदा हुए, महावीर आए, संत कबीर, संत सुदास, संत नानक जैसे अनेक संतों की श्रृंखला हमारे मार्ग दिखाती रही। उत्तर हो या दक्षिण, पूर्व हो या पश्चिम- कुरीतियों के खिलाफ देश के हर क्षेत्र में ऐसी पुण्यात्माओं ने जन्म लिया जिसने देश की चेतना को बचाने का, उसके संरक्षण का काम किया।
दक्षिण में माधवाचार्य, निम्बागाराचार्य, वल्लभाचार्य, संत बसवेश्वर, संत तिरूगल, तिरूवल्वर, रामानुजाचार्य; अगर हम पश्चिमी भारत की ओर देखें तो महर्षि दयानंद, मीराबाई, संत एकनाथ, संत तुकाराम, संत रामदास, संत ज्ञानेश्वर, नरसी मेहता; अगर उत्तर की तरफ नजर करें तो रामांनद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरू नानक देव, संत रैदास, अगर पूर्व की ओर देखें तो रामकृष्ण परमहंस, चैतन्य महाप्रभु और आचार्य शंकरेदव जैसे संतों के विचारों ने इस मार्ग को रोशनी दी।
इन्हीं संतों, इन्हीं महापुरुषों का प्रभाव था कि हिन्दुस्तान उस दौर में भी तमाम विपत्तियों को सहते हुए आगे बढ़ पाया और खुद को संकटों से बाहर निकाल पाया।
कर्म और चर्म के नाम पर भेद के बजाय ईश्वर भक्ति का जो रास्ता रामानुजाचार्य ने दिखाया, उसी रास्ते पर चलते हुए संत रामानंद ने सभी जातियों और सम्प्रदायों के लोगों को अपना शिष्य बनाकर जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया है। संत रामानंद ने संत कबीर को राम नाम की राह दिखाई। इसी राम-नाम के सहारे कबीर आज तक पीढ़ियों को सचेत कर रहे हैं।
भाइयो और बहनों, समय के लम्बे कालखंड में संत कबीर के बाद रैदास आए। सैंकड़ों वर्षों के बाद महात्मा फूले आए, महात्मा गांधी आए, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर आए। समाज में फैली असमानता को दूर करने के लिए सभी ने अपने-अपने तरीके से समाज को रास्ता दिखाया।
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