संविधान के 70 वर्ष हमारे लिए हर्ष, उत्कर्ष और निष्कर्ष का मिला-जुला भाव लेकर के आए हैं। हर्ष ये है कि संविधान की भावना अटल और अडिग रही है।
अगर कभी कुछ इस तरह के प्रयास हुए भी हैं तो देशवासियों ने मिलकर के उनको असफल किया है। संविधान पर आंच नहीं आने दी है।
उत्कर्ष इस बात को हम जरूर registered करते है कि हमारे संविधान की मजबूती के कारण ही एक भारत श्रेष्ठ भारत की तरफ हम आगे बढ़ पाए हैं।
हमने तमाम सुधार मिल-जुलकर के संविधान के दायरे में रहकर के किए हैं और निष्कर्ष ये है कि ये विशाल और विविध भरा भारत प्रगति के लिए, सुनहरे भविष्य के लिए नए भारत के लिए भी हमारे सामने सिर्फ और सिर्फ संविधान, संविधान की मर्यादाएं, संविधान की भावना यही एकमात्र रास्ता है एषपंथा। हमारा संविधान हमारे लिए सबसे बड़ा और पवित्र ग्रंथ है।
एक ऐसा ग्रंथ जिसमें हमारे जीवन की, हमारे समाज की, हमारी परंपराओं, हमारी मान्यताओं, हमारे व्यवहार, हमारे आचार उन सबके साथ का समावेश है। साथ-साथ अनेक चुनौतियों का समाधान भी है।
हमारा संविधान इतना व्यापक इसलिए है क्योंकि इसमें हमें बाहरी प्रकाश के लिए अपनी खिड़कियां खोल रखी है। और उसके साथ-साथ भीतर का जो प्रकाश है उसको भी और अधिक प्रज्वलित करने का अवसर भी दिया है।
आज इस अवसर पर जब हम कहेंगे तो मैं एक बात 2014 में लाल किले के प्राचीर से जो मैने कही थी उसको दोहराऊंगा, संविधान को अगर दो सरल शब्दों में कहना है सरल भाषा में कहना है तो कहूंगा डिगनीटि फॉर इंडियन एंड यूनिटी फॉर इंडिया।