महात्मा गांधी के जीवन की सफलता में सबसे बड़ी बात जो थी, आजादी के लिए मर-मिटने वाली परंपरा कभी इस देश में बंद नहीं हुई। जितने साल गुलामी रही, उतने साल क्रांतिवीर भी मिलते रहे।
यह इस देश की विशेषता है, लेकिन गांधी जी ने आजादी को जन-आन्दोलन बना दिया था। समाज के लिए कोई भी काम करूंगा तो उससे आजादी आएगी, यह भाव पैदा किया था।
जन-भागीदारी, जन-आन्दोलन आजादी के काल में, आजादी की लड़ाई के काल में जितना महात्मय था उतना ही समृद्ध-सुखी भारत के लिए उतना ही आवश्यक है।
वो भी गांधी का ही दिखाया हुआ रास्ता है कि जन-भागीदारी और जन-आन्दोलन के साथ हम पूज्य बापू के सपनों को पूरा करते हुए गांधी की 150वीं जयंती और 2022 में आजादी के 75 साल उसके लिए हम संकल्प करके आगे बढ़े। पूज्य बापू एक विश्व मानव थे।
आजादी के आंदोलन में इतनी व्यस्तता के बावजूद भी वे सप्ताह में एक दिन रक्तपितियों के लिए सेवा में लगाते थे। leprosyके लिए अपने आप को समय देते थे, खुद करते थे।
क्योंकि समाज में जो मानसिकता बनी थी, उसको बदलने के लिए। सस्कावा जी करीब चार दशक में इस काम में जुड़े हुए हैं। leprosyके खिलाफ एक जन-जागरण पैदा हुआ है।
समाज में अब उसकी स्वीकृति भी बनने लगी है। ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने रक्तपित के कारण समाज में जिनको वंचित कर दिया गया, उनकी वेदना को समझा और उनको मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया तो इन सभी प्रयासों को सम्मानित करना, पूज्य बापू को एक सच्ची श्रद्धांजलि का प्रयास है।