- अगर जीवन में संकल्प का सामर्थ्य हो, संकल्प के लिए समर्पित भाव हो और जीवन आहूत करने की अदम्य इच्छा हो, तो व्यक्ति के लिए उम्र कोई मायना नहीं रखती।
- यह देश प्रगति तब करता है जब सवा सौ करोड़ देशवासी किसी न किसी संकल्प से बंधे हो। उस संकल्प की पूर्ति के लिए कुछ कदम चलने के लिए प्रयासरत हो। मंजिल को पाने के लिए अविरत कोशिश करते हो, तो देश अपने आप उस मंजिलों को पार कर जाता है।
- आज पूरे विश्व का परिवेश देखे पूरा विश्व आज भारत की तरफ एक बड़ी आशा भरी नजर से देख रहा है। क्यों ? इसलिए कि हिंदुस्तान एक संभावनाओं का देश है। आपार अवसर जहां इंतजार कर रहे हैं। दुनिया इसलिए हिंदुस्तान की तरफ देख रही है, क्योंकि आज हिंदुस्तान विश्व का सबसे युवा देश है। 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 से कम आयु की हो, वो देश कितना सौभाग्यशाली है कि जिसके पास कोटि-कोटि युवा लोग हैं। और जहां युवा होता है, वहां संकल्पों की कोई मर्यादाएँ नहीं होतीं, सीमाएँ नहीं होतीं।
- मैं कभी-कभी सोचता हूं कि युवा यह परिस्थिति का नाम नहीं है। युवा यह मनस्थिति का नाम है। मनस्थिति है, जो युवा की परिचायक होती है। जब कोई व्यक्ति अपने बीते हुए पल को बार-बार याद करता है, दोहराता रहता है तो मैं यह सीधा-सीधा अर्थ निकालता हूं कि वो अपनी युववाणी खो चुका है। वो बुढ़ापे की आरे चल चुका है। लेकिन जो बीते हुए कल को बार-बार दोहराने की बजाय आने वाले कल के सपने संजोता रहता है, वो उसके लिए मेरा मन हमेशा कहता है वो सच्चे अर्थ में युवा है।
- अगर आप अपने आप को युवा मानते हो तो युवा वो है जो बीते हुए कल की बातों को दोहरा करके अपने समय को बर्बाद नहीं करता है, लेकिन जो आने वाले सपनों को संजोने के लिए पल-पल प्रयास करता है और हर सपने को साकार करने के लिए अपने आप को खपा देता है।
- भारत के पास सब कुछ हो, धन हो, दौलत हो, बेशुमार पैसे हों, हर नौजवान को नौकरी हो, हर परिवार में सुख और सम्पन्नता हो, लेकिन, लेकिन अगर देश में शांति, एकता और सद्भावना नहीं होगी, तो वो सारी सम्पत्ति किसी के काम नहीं आएगी। न वो देश का गौरव बढ़ाएगी, न आने वाली पीढि़यों के लिए भविष्य का कोई रास्ता बनाएगी। और इसलिए हम विकास कितना ही करें, कितनी ही ऊंचाइयों को पार करें, लेकिन शांति, एकता और सद्भावना, ये भारत की पहली आवश्यकता रहती है। और भारत ने दुनिया को दिखाया है कि जिस देश के पास सैंकड़ों बोलियां हो, अनेक भाषाएं हों, अनेक परम्पराएं हों, अनगिनत विविधिताएं हों, उसके बाद भी साथ जीने-मरने का स्वभाव हो, ये हमारी बहुत बड़ी विरासत हैं जो हमारे पूर्वजों ने हमें दी हैं, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने दी हैं और इसे हमने संजो के रखना है। वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उपग्रह तक हम इसी परम्परा में पले-बढ़े हैं। उस परम्पराओं को बार, बार, बार, बार स्मरण करते हुए, संजोते हुए भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए सद्भावना को सेतु उसको हम जितना बल दें, देते रहना होगा।
- मैं चाहता हूं कि जो लोग कुछ कर गुजरना चाहते हैं, वे नौकरी की तलाश क्यों करें, अपने पैरों पर खड़े क्यों न हों। मैं नहीं चाहता हूं मेरे देश का नौजवान job seeker बने, मैं चाहता हूं मेरे देश का नौजवान job creator बने।
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