- बाबा साहेब अम्बेडकर ने इस देश को बहुत कुछ दिया। लेकिन एक बात जो इस देश के भविष्य के लिए अनिवार्य है और जिसके लिए बाबा साहेब समर्पित थे, एक प्रकार से उसके लिए वो जिए थे, उसके लिए वो जूझते थे और वो बात थी, शिक्षा। वो हर किसी को यही बात बताते थे कि अगर जीवन में कठिनाइयों से मुक्ति का अगर कोई रास्ता है तो शिक्षा है। अगर जीवन में संघर्ष का अवसर आया है तो संघर्ष में भी विजयी होकर निकलने का रास्ता भी शिक्षा है। और उनका मंत्र था – शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो। ये संघर्ष अपने आप के साथ भी करना होता है। अपनो के साथ भी करना होता है और अपने आस-पास भी करना पड़ता है। लेकिन ये तब संभव होता है जब हम शिक्षित हो और उन्होंने अपने मंत्र के पहले शब्द भी शिक्षित बनो कहा था।
- बाबा साहेब अम्बेडकर भगवान बुद्ध की परंपरा से प्रेरित थे। भगवान बुद्ध का यही संदेश था अप्प दीपो भव:। अपने आप को शिक्षित करो। पर प्रकाशित जिन्दगी अंधेरे का साया लेकर के आती है और स्वप्रकाशित जिन्दगी अंधेरे को खत्म करने की गारंटी लेकर के आती है और इसलिए जीवन स्व प्रकाशित होना चाहिए, स्वयं प्रकाशित होना चाहिए। और उसका मार्ग भी शिक्षा से ही गुजरता है।
- बाबा साहेब अम्बेडकर राह चुनी संकटों से सामना करने की, सारे अवरोधों को पार करने की, उपेक्षा के बीच भी, अपमान के बीच भी अपने भय भीतर के बीच जो संकल्प शक्ति थी उसको विचलित नहीं होने दिया और आखिर तक उन्होंने करके दिखाया। बहुत कम लोगों को मालूम होगा, हम ज्यादातर तो जानते हैं कि वो संविधान के निर्माता थे, लेकिन अमेरिका में वो पहले भारतीय थे जिसने अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की थी। दुनिया के हर देश में उनका स्वागत और सम्मान था। उन्होंने सब कुछ पाने के बाद ये सब समर्पित कर दिया इस भारत माता को। वापिस आए और उसमें भी उन्होंने तय किया कि मैं अपने जीवन काल में दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित उनके लिए मेरी जिन्दगी काम आए, मैं खपा दूंगा और वो जीवन भर ये करते रहे।
- हम जहां भी हैं, जो कुछ भी हैं, जो भी बनने जा रहे हैं, अपने कारण नहीं बनते हैं, ये पूरा समाज है, जिसके छोटे से छोटे व्यक्ति का हमारे लिए कोई न कोई योगदान है तब जाकर के हमारी जिंदगी बनती है।
- कुछ करना, कुछ करने का इरादा, उस इरादे को पार करने के लिए जिंदगी खपाना, ये बहुत कठिन होता है और इसलिए आज जब हम जा रहे हैं तब कुछ करने के इरादे से निकल सकते हैं क्या अगर कुछ करने के इरादे से निकल सकते हैं तो क्या बनते हैं, इसकी चिंता छोड़ दीजिए, वो करने का संतोष इतना है, वो आपको कहीं न कहीं पहुंचा ही देगा, कुछ न कुछ बना ही देगा और इसलिए जीवन को उस रूप में जीने का, पाने का प्रयास, जिंदगी से जूझना, सीखने चाहिए दोस्तों। दुनिया में जितने भी महापुरुष हमने देखे हैं। हर महापुरुष को हर चीज सरलता से नहीं मिली है। बहुत कम लोग होते हैं जिनको मक्खन पर लकीर करने का सौभाग्य होता है ज्यादा वो लोग होते हैं, जिनके नसीब में पत्थर पर ही लकीर करना लिखा होता है।
- मैं आज जब नौजवानों के बीच में खड़ा हूं तब एक तरफ मेरे जीवन में इतना बड़ा आनंद है क्योंकि मैं अनुभव करता हूं कि 21वीं सदी हिंदुस्तान का सदी है और 21वीं सदी हिन्दुस्तान की सदी इसलिए है कि भारत दुनिया का सबसे जवान देश है। 65 प्रतिशत नौजवान 35 साल से कम उम्र के है। यह देश जवान है, इस देश के सपने भी जवान है। इस देश के संकल्प भी जवान है और इस देश के लिए मर-मिटने वाले भी जवान है। ये युवा शक्ति हमारी कितनी बड़ी धरोहर है, ये हमारे लिए अनमोल है। लेकिन उसी समय जब ये खबर मिलती है कि मेरे इस देश के नौजवान बेटे रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उसके परिवार पे क्या बीती होगी। माँ भारती ने अपना एक लाल खोया। कारण अपनी जगह पर होंगे, राजनीती अपनी जगह पर होगी, लेकिन सच्चाई यही है कि माँ ने एक लाल खोया। इसकी पीड़ा मैं भली-भांति महसूस करता हूँ।
- हम इस देश को इस दिशा में ले जाना चाहते हैं, जहाँ नया उमंग हो, नया संकल्प हो, नया आत्म-विश्वास हो, संकटों से जूझने वाला नौजवान हो और बाबा साहेब अम्बेडकर के जो सपने थे, उन सपनों को पूरा करने का हमारा अविरत प्रयास है। उस प्रयास को आगे लेकर के आगे चलना है।
- बाबा साहेब अम्बेडकर के सपनों की जो अर्थव्यवस्था है, उस अर्थव्यवस्था के बिना यह देश आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता है। बाबा साहेब अम्बेडकर ने जो आर्थिक विकास के सपने देखे थे, उन सपनों की पूर्ति करनी है तो निजी क्षेत्र का अत्यंत महत्व है और मैं निजी क्षेत्र कहता हूं मतलब। मेरी परिभाषा अलग है, हर individual अपने पैरों पर कैसे खड़ा रहे। मेरे देश का नौजवान job-seeker न बने, मेरे देश का नौजवान job-creator बने।
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