आखिरकार मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में वक्फ संशोधन विधेयक भी दोनों सदनों से पारित हो गया। सरकार पूरी तैयारी करके आई थी, वहीं विपक्ष सिर्फ बेवजह के विरोध करता ही दिखा व सार्थक चर्चा से भागता दिखा। सरकार ने वक्फ से जुड़े लोग व संस्थाओं को इस कानून पर अपने विचार रखने व चर्चा करने का प्रयाप्त अवसर दिया। साथ ही लंबे समय बाद संसद के दोनों सदनों में देर रात तक इस पर चर्चा होती रही व अच्छे बहुमत से यह विधेयक पारित हुआ। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर बाकी है, लेकिन विपक्ष एक बार फिर अपने झूठ व भ्रमित राजनीति के कारण संसद सदन में भी पराजित हो गया। इस विधेयक लाने के दौरान विपक्ष सिर्फ वक्फ संपत्ति कानून की आड़ में मजहबी व राजनीतिक उन्माद फैलाने का प्रयास करता रहा व मुद्दा हीन बयानबाजी करता रहा।
अब बात हम यदि वक्फ संपत्ति व कानून की विस्तार से करे तो भारत में वक्फ संस्थाओं में ऐतिहासिक रूप से समावेशिता का अभाव रहा है, जिससे वंचित मुस्लिम समुदायों जैसे आगाखानी, बोहरा, पिछड़े मुस्लिम वर्ग, महिलाओं और गैर-मुसलमानों जैसे प्रमुख हितधारकों की भागीदारी सीमित रही है। वक्फ मुस्लिम कानून के तहत मान्यता प्राप्त धार्मिक, पवित्र या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए चल या अचल संपत्ति का समर्पण है, ठीक वैसे ही जैसे सार्वजनिक ट्रस्ट जो सार्वजनिक कल्याण के लिए धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों को पूरा करता है। हालाँकि, वक्फ का विनियामक निकाय यानी वक्फ बोर्ड कोई धार्मिक निकाय नहीं है। यह भूमि मामलों की देखरेख और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार एक वैधानिक निकाय है, ठीक वैसे ही जैसे सार्वजनिक ट्रस्टों के चैरिटी आयुक्त जो किसी भी धर्म द्वारा स्थापित सार्वजनिक ट्रस्टों के कामकाज को विनियमित और पर्यवेक्षण करते हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर विपक्षी दल शुरू से ही असहमति जता रहे हैं। उनका कहना है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को प्रभावित करता है। वहीं, सरकार का दावा है कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने और दुरुपयोग रोकने के लिए जरूरी है। विधेयक के समर्थन में आगे सरकार का कहना है कि इससे जवाबदेही तय होगी। वहीं विपक्षी दल इसे संविधान के खिलाफ बताने में जुटे हैं।
बुधवार को बिल पर चर्चा के समय की बात करे तो लोकसभा में वक्फ़ संशोधन बिल पास तो हो गया है व अगले दिन राज्यसभा में भी लेकिन विपक्ष की भावना को अगर माने तो देश में भय का माहौल बन गया है। सेक्युलरिज्म ख़तरे में आ गया है l जो कि धरातल पर मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया इससे बिल्कुल अलग देखी जा रही है। उनमें से अधिकांश मुसलमान इस विधेयक के आने से खुश है।
वास्तव में वक्फ अरबी का शब्द है। इसका मतलब खुदा के नाम पर दी जाने वाली वस्तु या संपत्ति है। इसे परोपकार के उद्देश्य से दान किया जाता है। कोई भी मुस्लिम अपनी चल और अचल संपत्ति को वक्फ कर सकता है। अगर कोई भी संपत्ति एक भी बार वक्फ घोषित हो गई तो दोबारा उसे गैर-वक्फ संपत्ति नहीं बनाया जा सकता है।
सच यह भी है कि देश में कई जगह क़ानून व्यवस्था के मद्देनज़र पुलिस बल सतर्क हो गए हैं l उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में तो दो दिन से ही पुलिस गश्त जारी है l विपक्ष जानता था कि वक़्फ़ बिल हर हाल पास हो जाएगा , वोटिंग में विपक्ष हार जाएगा l फिर भी मुसलमानों को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी l लोकतंत्र की यही ख़ूबसूरती है और बदसूरती भी l
सौ से अधिक संशोधन प्रस्ताव रख कर विपक्ष ने ग़ज़ब तमाशा खड़ा किया l और तो ओर कुछ मामलों में डिवीजन मांग-मांग कर नाक में दम कर दिया l इस सब में एक घंटे से अधिक का समय व्यर्थ कर दिया l मुस्लिम समाज से वफ़ादारी साबित करने की यह चूहा दौड़ भी ग़ज़ब देखी गई !
वक्फ कानून में अब तक का सबसे विवादित प्रावधान वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 रहा है। इसके तहत बोर्ड को रिजन टू बिलीव(स्वयं संज्ञान लेकर निर्णय देना व विश्वास बहाल करना) की ताकत मिली है। अगर बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वो खुद से जांच कर सकती है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है। अगर उस संपत्ति में कोई निवास रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है। अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो गई तो हमेशा वह वक्फ रहेगी। इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं। इस विवादित व आपत्तिजनक प्रावधान को नए कानून में हटा दिया गया है।
भारत के संविधान के भाग तीन में महिलाओं व बच्चों के कल्याण व उनके सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार विशेष कानून बना सकती है। मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने और वक्फ प्रशासन में उनका उचित स्थान सुनिश्चित करने के लिए, उनके उत्तराधिकार अधिकारों की रक्षा, वित्तीय सहायता बढ़ाने और शासन में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं। इन मुद्दों को संबोधित करने से अधिक वित्तीय सुरक्षा, लैंगिक समानता और सामाजिक-आर्थिक उत्थान होगा, जिससे वक्फ संस्थान सभी के लिए अधिक समावेशी और लाभकारी बनेंगे। वहीं दो गैर मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना भी पारदर्शिता व समावेशिता की दृष्टि से ऐतिहासिक कदम है। वैसे भी प्रशासनिक कार्यों की दृष्टि से यह न्याय संगत व विधिक रूप से भी उचित है।
वहीं इस विधेयक व वक्फ कानून की अन्य धाराओं में संशोधन से विपक्ष बौखला गया है और संविधान की आड़ अपने मुस्लिम वोटों को बचाने के लिए सेकुलरिज्म के नाम पर राजनीतिक बखेड़ा खड़ा कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक मुस्लिमों की धार्मिक आजादी पर हमला है। वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करने के उद्देश्य से विधेयक लाया जा रहा है ! विपक्षी दलों का तर्क यह भी है कि कानून संविधान के खिलाफ है। तानाशाही तरीके से लाया गया है। संयुक्त संसदीय कमेटी में शामिल विपक्ष के सदस्यों के संशोधनों को शामिल नहीं किया गया है। यहां तानाशाही की बात की जा रही है लेकिन तथ्य यह है कि इस विधेयक पर लोकसभा व राज्ससभा दोनों सदनों में दिनभर व देर रात तक सभी सांसद करीब-2 15 घंटे चर्चा करते हैं। वहीं जब कांग्रेस समर्थित सरकार द्वारा 2013 के वक्फ संशोधन अधिनियम पर संसद में कितनी चर्चा हुई थी ? ओर गौर करने की बात है कि कांग्रेस पार्टी ने वक्फ विधेयक में 2013 में संशोधन कर वक्फ को संविधान से भी ऊपर असीमित शक्ति देने का पाप किया था । इसके कारण 2013 से 2025 तक वक्फ की संपत्ति में बड़ा इजाफा हुआ है। साथ ही उस समय हड़पी गई जमीन के खिलाफ पीड़ित का न्यायालय के पास जाने का अधिकार ही छीन लिया था। ओर अब आखिर इसमें कौनसी तानाशाही विपक्ष को दिख गई ? वहीं लंबे समय से यह तथ्य भी सार्वजनिक है कि वक्फ बोर्ड के पास बिना किसी सरकारी निगरानी के हजारों करोड़ की संपत्ति है, जबकि हिंदू धर्मस्थलों को सरकारी नियमों का पालन करना पड़ता है। क्या यह समानता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन नहीं है ? मजहबी अधिकार की आड़ में यह कैसी पंथनिरपेक्षता(सेकुलरिज्म) है !
सदियों पहले स्थापित वफ्फ का मूल उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के लिए स्कूल, अस्पताल, पुस्तकालय और अन्य परोपकारी संस्थानों की स्थापना और देखरेख करना था। यह चिंता का विषय है कि इतना विशाल संसाधन आधार होने के बावजूद इन्हें समुदाय के कल्याण के लिए प्रभावी रूप से उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। सच्चर समिति की 2006 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि वक्फ अपनी संपत्तियों से सालाना 12,000 करोड़ रुपये की आय का सृजन कर सकता है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के हालिया सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वक्फ संपत्तियों की वास्तविक संख्या 8.72 लाख से अधिक है। वर्तमान मुद्रास्फीति और संशोधित अनुमानों को ध्यान में रखते हुए संभावित आय सालाना 20,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। फिर भी इसका वास्तविक राजस्व आय 200 करोड़ रुपये ही है। यही कारण है कि विशाल भू संपत्तियों के बावजूद वक्फ अक्षमताओं, कुप्रबंधन और पारदर्शिता की कमी की वजह से पिछड़ गया है। मुस्लिम समुदाय के इतने बड़े संपत्ति संसाधन की हेराफेरी व चोरी कौन कर रहा है ? और यह धन किसके हाथों में जा रहा है ? ये ऐसे प्रश्न है जो वर्तमान वक्फ संशोधित विधेयक लाने के लिए जरुरी पृष्ठभूमि बनाते हैं तथा आर्थिक व सामाजिक रूप से पीछड़े मुसलमानों के अधिकारों के लिए यह विधेयक लाना जरूरी था। वर्तमान सरकार ने विकसित भारत की ओर कदम बढ़ाते हुए एक ओर ऐतिहासिक विधायी कार्य किया है।
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