Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

आपराधिक न्यायिक प्रणाली में सुधार – नए भारत के नए कानून

भारत की संसद ने ब्रिटिश काल से चली आ रही देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में सबसे बड़े बदलाव को उस समय पारित किया है जब हम आजादी के अमृत काल में प्रवेश कर चुके है, जब भारत वैश्विक मंच पर निर्णायक भूमिका निभा रहा है और हमारी अर्थव्यवस्था भी फल-फूल रही है, किंतु आज भी हमारी न्याय प्रणाली ब्रिटिश शासन द्वारा लगाई गई सीमाओं की जंजीरों के बोझ से दबी हुयी थी जिसे बदलना भारत के भविष्य की मांग थी। 

हमारी स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में हमारे न्यायालयों में उन प्रथाओं की समीक्षा करने की मूलभूत आवश्यकता थी जो अभी भी प्रक्रिया गत रूप से ब्रिटिश विरासत से आयी है ।वास्तव में हमारी कानूनी संस्कृति का तीव्र गति से भारतीयकरण शुरू करने की आवश्यकता थी।क्या कोई ब्रिटिश कानून वास्तव में हमारी जैसी राष्ट्र-सभ्यता की अद्वितीय चुनौतियों को समझ सकता है? 1950 में, भारत ने मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु संहिताबद्ध संविधान के रूप लोकतांत्रिक प्रयोग की शुरुआत की थी किंतु अंग्रेजो द्वारा अपनी सुगमता हेतु बनाये गए आपराधिक न्यायिक प्रणाली को बदलने में हमें इतना समय लग गया।  

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एवं देश के कर्त्तव्यनिष्ठ गृहमंत्री अमित शाह जी की संकल्पना से संसद को दोनों सदनों से पारित होने के पश्यात IPC,1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023, CrPC, 1898 की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता  2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 कानून अस्तित्व में आएंगे । ये तीनो नए कानून औपनिवेशिक युग के अंत का प्रतिक है। यह कल्याणकारी और परिवर्तनकारी कानून सुधार के लिए भारत के प्रतिबद्धता को दर्शाते है साथ ही इसका उद्देश्य भारतीय विचार को न्याय प्रणाली में जगह देना है। 

दंड की जगह न्याय देने की अवधारणा : 

देश में अपराधी को दंड देने के सिद्धांत की जगह पीड़ित को न्याय देने के सिद्धांत को यह नए कानून प्रस्थापित करेंगे। संसद में पारित तीन नए कानून की आत्मा भारतीय नागरिकों को संविधान में दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना है। शासन की जगह नागरिक को केंद्र में लाने का बहुत बड़ा सैद्धांतिक निर्णय कर ये कानून भारत सरकार द्वारा लाये गए है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने 2019 में कहा था, अंग्रेज़ों के समय के बनाए गए जितने भी कानून जिस विभाग में भी हैं, उन पर पर्याप्त चर्चा और विचार कर आज के समय के अनुरूप और भारतीय समाज के हित में बनाने की आवश्यकता है ।  

इन कानूनों से होने वाले बड़े बदलावों को कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार है : 

  • एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, दूसरी ओर धोखा देकर महिला का शोषण करने और मॉब लिंचिग जैसे जघन्य अपराधों के लिए दंड का प्रावधान । 
  • पहली बार आंतकवाद की व्यापक परिभाषा
  • कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है।  FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को अनिवार्य  कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा, पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।  
  • नए कानूनों में केस वापस लेने के लिए पीड़ित का पक्ष सुना जाना अनिवार्य शर्त; इससे नागरिक अधिकारों की रक्षा में मदद मिलेगी।
  • नए कानूनों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय।केवल विशेष परिस्थितियों में 90 और दिन मिलेंगे।
  • इस बदलाव के बाद अब 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त होगी। जांच के फौरन बाद अदालतों में ट्रायल शुरू होगा।
  • अदालतों से आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देना अनिवार्य होगा। बहस या सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के अंदर अदालतों का फैसला जारी होना भी अनिवार्य।
  • फैसले की प्रति सात दिनों के भीतर ऑनलाइन उपलब्ध कराने का नियम भी नए कानून है ।

महत्वपूर्ण बात यह है कि आपराधिक न्यायिक प्रणाली में यह बदलाव समय की मांग थी।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस के सम्बोधन प्रसन्नता व्यक्त की थी कि हमारी सरकार की न्याय प्रदान व्यवस्था के तहत आरोपपत्र दाखिल करने की दर किसी भी अन्य सरकार की तुलना में सबसे अधिक रही है। यह भारत में समय पर न्याय तक पहुंच की बाधाओं को दूर करने पर सरकार के लक्ष्य की पुनरावृत्ति थी। नए कानून उसी लक्ष्य का प्रतिबिंब हैं। नए कानूनों को बनाने में दो साल लगे हैं, जिसमें सभी हितधारकों से व्यापक परामर्श किया गया है।

तीनों कानून भारत के नागरिकों की जरूरतों और लक्ष्यों के अनुरूप हैं क्योंकि यह विश्व गुरु बनने और अपने नागरिकों को औपनिवेशिक व्यवस्थाओं से मुक्ति दिलाने के मुख्य उद्देश्य से लाये गए है।

Author

(The views expressed are the author's own and do not necessarily reflect the position of the organisation)