भारतीय राजनीति में आजादी के बाद से ही गरीबी का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाता रहा है। देश की पंचवर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन को केंद्र में रखकर नीतियों का निर्धारण भी होता रहा है। देश में सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के जमाने में ‘गरीबी हटाओ देश बचाओ’ का नारा दिया था। इंदिरा के बाद उनके बेटे राजीव गांधी भी इस नारे को बढ़ाने में पीछे नहीं रहे। लेकिन इन सबके बावजूद हम देख सकते हैं कि आज आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी देश के समक्ष गरीबी की समस्या मुंह बाए खड़ी है। इसका कारण एकदम सीधा है कि कांग्रेस सरकारों का गरीबी उन्मूलन अधिकांशतः नारों तक सीमित रहा और धरातल पर गरीबों के हित में बहुत कम काम हुए। गरीबों को अविचारित सब्सिडी और लोकलुभावन घोषणाओं से आकर्षित कर चुनावों में वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा, लेकिन उनके दीर्घकालिक विकास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। लिहाजा पैसा खर्च होता रहा लेकिन गरीब, गरीब ही बने रहे। 2014 में नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से इस स्थिति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। अब गरीबों को लुभाने के लिए योजनाएं नहीं बनाई जातीं बल्कि उनके हितों को बल देने के लिए योजनाओं की रचना की जाती है। मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रहीं गरीब कल्याण की अनेक योजनाओं का ही परिणाम है कि आज वर्ल्ड बैंक अपनी रिपोर्ट में देश की गरीबी में कमी आने की बात कह रहा है। विश्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अत्यंत गरीबों की संख्या घटी है। साल 2011 से 2019 के बीच अत्यंत गरीबों की संख्या में 12.3 फीसदी की कमी आई है और इस मामले में शहरी केंद्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस दौरान छोटी जोत वाले किसानों की आय में दस प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि मोदी सरकार केवल गरीब कल्याण की बातें ही नहीं कर रही, अपितु सरकार की योजनाएं धरातल तक पहुँच रही हैं और जमीन पर उनका व्यापक असर भी हो रहा है। इसके अलावा किसानों की आय में वृद्धि के लिए किए जा रहे सरकार के प्रयास भी रंग लाने लगे हैं। दरअसल 2014 में जब नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आए तो उन्होंने देश में गरीबी की समस्या को देखते हुए यह समझने में जरा भी देर नहीं की कि जबतक देश के गरीबों को अर्थतंत्र के ढाँचे में सीधे तौर पर शामिल नहीं किया जाएगा उनका स्थायी विकास संभव नहीं है। इसी विचार से मोदी सरकार द्वारा सर्वप्रथम प्रधानमंत्री जनधन योजना की शुरुआत की गई। इसके तहत देश के करोड़ों ऐसे गरीबों जिनका कोई बैंक अकाउंट नहीं था, के जीरो बैलेंस पर अकाउंट खुलवाए गए। उस अकाउंट से पैन-आधार कार्ड के माध्यम से कई लाभकारी योजनाओं को जोड़ा गया और उनकी लाभ राशि को सीधे खाते में भेजने की व्यवस्था शुरू की गई। तब विपक्ष ने इस योजना का बहुत मखौल बनाया था, लेकिन कोरोना काल में गरीबों को सरल-सहज ढंग से सीधे आर्थिक सहायता पहुँचाने में इन जनधन अकाउन्ट्स का महत्व विशेष रूप से स्पष्ट हुआ। इसी प्रकार मुद्रा योजना के जरिये पिछड़े व गरीब लोगों को स्वरोजगार हेतु आसानी से लोन उपलब्ध कराया जाना भी गरीबी उन्मूलन की दिशा में बड़ा कदम साबित हुआ है। उज्ज्वला योजना के जरिये देश के लगभग आठ करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया जाना उनके जीवनस्तर में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला कदम था। इसके अलावा जनऔषधि केंद्र के जरिये सस्ती दवाओं तथा आयुष्मान भारत के जरिये पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित होने ने गरीब तबके के लोगों को बड़ी राहत देने का काम किया है। उनकी जो जमापूंजी अक्सर महंगे इलाज की भेंट चढ़ जाती थी, अब वो सुरक्षित रहती है और उनको बेहतर इलाज भी मिल जाता है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री आवास योजना के जरिये बेघर गरीबों को बेहतर घर मिलने की कवायद भी चल ही रही है। गरीब कल्याण अन्न योजना ने महामारी के दौर में गरीबों को भुखमरी की स्थिति से बचाया और अब भी यह योजना जारी है। इस योजना के विषय में इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड (आईएमएफ) द्वारा कहा गया था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने महामारी से प्रभावित 2020 में अति गरीबी को 0.8 फीसदी के निचले स्तर पर बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इन सभी योजनाओं के अलावा और भी बहुत सारी योजनाएं व कार्यक्रम मोदी सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाए जा रहे हैं। इन सब प्रयासों का ही परिणाम है कि आज देश में गरीबी के स्तर में कमी देखने को मिल रही है। कहने की जरूरत नहीं कि मोदी सरकार के शासन में गरीबी हटाओ कोई हवा-हवाई नारा नहीं, बल्कि जमीन पर साकार हो रही हकीकत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)