गरीबों की न कोई जाति होती है और न ही कोई धर्म। उनके लिए हर दिन जीना मुश्किल का सबब होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जब ग्रामीणों के लिए जीवनयापन संभव नहीं होता है तब वे रोजगार की तलाश में बड़े शहर या महानगर का रुख करते हैं। तकनीकी हुनर नहीं होने के कारण जब शहरों में भी उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता है तो वे स्वरोजगार करने लगते हैं।
आमतौर पर वे सड़कों के किनारे सब्जी, रेडीमेड कपड़े, खिलौने, श्रंगार के सामान, फूल आदि बेचते हैं। फिर भी उनका जीवन मुफलिसी भरा होता है। पूँजी के अभाव में रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने लायक कमाई वे नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों को मदद करने के लिए या उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने पीएम स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) का आगाज 1 जून 2020 को किया था।
इस योजना के तहत 50,000 रुपए की कार्यशील पूँजी ऋण के रूप में बिना गारंटी और प्रतिभूति के स्ट्रीट वेंडर को दिया जाता है। यह राशि ऋणी को 3 किस्तों यथा, 10,000, 20,000 और 20,000 के रूप में जारी की जाती है। योजना में पहली क़िस्त चुकाने के बाद ही दूसरी और तीसरी क़िस्त जारी करने का प्रावधान है, ताकि ऋण खाता के ग़ैर निष्पादित आस्ति (एनपीए) में तब्दील होने की संभावना न्यून रहे और ऋणियों में ऋण चुकाने की जिम्मेदारी का अहसास बना रहे।
नियमित रूप से ऋण का भुगतान करने वाले ऋणियों को 7 प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी देने का प्रावधान भी योजना में है। डिजिटल लेनदेन करने वालों ऋणियों को हर साल 1200 रूपये तक कैशबैक दिया जाता है, ताकि उनके बीच डिजिटल लेनदेन की संस्कृति विकसित हो और सरकार की डिजिटलाइजेशन मुहिम के साथ वे कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
अब तक इस योजना के अंतर्गत 70 लाख ऋण खातों में तीनों क़िस्त का वितरण किया जा चुका है, जो राशि में 9100 करोड़ रूपये है। ऋण लेने और चुकाने का प्रतिशत पहले से दूसरे क़िस्त में 68 प्रतिशत और दूसरे से तीसरे क़िस्त में 75 प्रतिशत है। जागरूकता बढ़ने पर ऋण चुकाने की प्रवृति में और भी बेहतरी आ सकती है।
पीएम स्वनिधि को मूर्त रूप देने में सरकारी बैंक अहम् भूमिका निभा रहे हैं, जिसमें भारतीय स्टेट बैंक शीर्ष पर है। इसने कुल वितरित ऋण राशि का 31 प्रतिशत हिस्सा वितरित किया है। 11 प्रतिशत के ऋण वितरण के साथ बैंक ऑफ़ वड़ोदरा दूसरे स्थान पर है, जबकि 10 प्रतिशत के ऋण वितरण के साथ तीसरे स्थान पर यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया है।
इस योजना के आगाज के समय सरकार ने पहली क़िस्त यानी 10,000 रूपये 50 लाख स्ट्रीट वेंडरों को वितरित करने का लक्ष्य रखा था। बाद में ज्यादा मांग की वजह से सरकारी बैंकों ने लक्ष्य से अधिक 106 प्रतिशत ऋण वितरित किया। योजना की सफलता को देखते हुए सरकार ने पुराने लक्ष्य को संशोधित करके 50 लाख वेंडरों की जगह 63 लाख वेंडरों को पहली क़िस्त के रूप में ऋण वितरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया, जबकि दूसरी और तीसरी क़िस्त को मिलाकर दिसंबर, 2023 तक 88.5 लाख वेंडरों को ऋण वितरित करने का लक्ष्य रखा गया। जल्द ही बैंक इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।
पीएम स्वनिधि के लाभान्वितों में पिछड़े वर्ग का प्रतिशत 44 है, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत 22 है। लाभान्वितों में महिलाओं की संख्या 43 प्रतिशत है और पुरुषों की संख्या 57 प्रतिशत है। सवर्ण वर्ग में 26 प्रतिशत लोगों ने इस योजना का लाभ उठाया है, जबकि अल्पसंख्यक वर्ग के 8 प्रतिशत लोगों ने इस योजना के तहत ऋण लिया है।
इस योजना का लाभ लेने वालों में 26 वर्ष से 45 वर्ष की आयु वालों की संख्या दो तिहाई और 18 से 45 वर्ष की आयु वाले लोगों की संख्या तीन चौथाई है, जबकि योजना का लाभ लेने वालों की औसत आयु 41 वर्ष है। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि समाज के कमजोर वर्ग, महिलायें, जवान और बूढ़े सभी इस योजना की मदद से आर्थिक रूप से सबल बनने की कोशिश कर रहे हैं।
ऋण वितरण के बाद डेबिट कार्ड से खर्च करने वालों के प्रतिशत में वर्ष 2021 के मुकाबले वर्ष 2023 में 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। महज 2 सालों में औसत खर्च में 28,000 रूपये की बढ़ोतरी हुई है। पीएम स्वनिधि के लाभान्वितों द्वारा डेबिट कार्ड से वित्त वर्ष 2021 में 51,672 रूपये खर्च किये गए, जबकि वित्त वर्ष 2022 में 60,974 रूपये, वित्त वर्ष 2023 में 79,372 रूपये और चालू वित्त वर्ष में अगस्त महीने तक 32,555 रूपये खर्च किये गए हैं, जो यह दर्शाता है कि पीएम स्वनिधि के लाभार्थी धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
पीएम स्वनिधि योजना की वजह से स्ट्रीट वेंडर के खर्च करने की प्रवृति और डिजिटल लेनदेन के प्रति उनकी स्वीकृति में इजाफा हुआ है। अब वे डेबिट कार्ड की मदद से ऑनलाइन खरीददारी करने लगे हैं। कैशबैक, पॉइंट्स, डेबिट कार्ड से लेनदेन करने से मिलने वाली छूट आदि का लाभ भी वे उठाने लगे हैं।
यह भी देखा जा रहा कि जिसने वित्त वर्ष 2023 में पीएम स्वनिधि के तहत ऋण लिया था, वे वित्त वर्ष 2022 के मुकाबले वैसे लोगों, जिन्होंने कोई भी ऋण नहीं लिया था, उनसे ज्यादा खर्च कर रहे थे अर्थात उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई थी। वैसे लोग, जिन्होंने ऋण की दूसरी और तीसरी किस्त ली है, उनकी आर्थिक क्षमता बेहतर हुई है और वे नियमित रूप से खर्च कर रहे हैं। नियमित रूप से खर्च करने वाले ऐसे लोगों का राष्ट्रीय औसत 22 प्रतिशत है।
हालाँकि, राज्यवार ऐसे लोगों का प्रतिशत अलग-अलग है। मामले में कुछ राज्यों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से अधिक है, वहीं कुछ राज्यों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम है। अभी 9 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर ऋण वितरण के बाद नियमित रूप से खर्च कर रहे हैं। 63 प्रतिशत लोग, जिनकी आयु 25 वर्ष से कम है या फिर 60 वर्ष से अधिक है ऋण की राशि वितरित किये जाने के बाद बुनियादी जरूरतों के इतर भी खर्च कर रहे थे।
पीएम स्वनिधि डैशबोर्ड के अनुसार 5.9 लाख ऋणी बड़े शहरों में रहते हैं, जबकि अन्य दूसरे शहरों में। बनारस में 45 प्रतिशत ऋणी नियमित रूप से खर्च कर रहे हैं, जो देशभर में सबसे अधिक है। मामले में दूसरे स्थान पर बेंगलुरु, तीसरे स्थान पर चेन्नई और चौथे स्थान पर प्रयागराज है। डैशबोर्ड से यह भी पता चलता है कि पीएम स्वनिधि योजना से छोटे शहरों के लोग भी फायदा उठा रहे हैं। इस प्रवृति के सशक्त होने पर कामगारों की छोटे शहर से महानगर पलायन के प्रतिशत में कमी आयेगी।
प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खाता खुलने के बाद लोग अमूमन अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे खर्च किया करते थे या फिर पैसों के अंतरण के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल करते थे, लेकिन पीएम स्वनिधि योजना के तहत ऋण मिलने के बाद लोगों का कारोबार सशक्त हुआ है और लाभार्थी अब बुनियादी जरूरतों के अलावा इच्छानुसार दूसरे मदों में भी खर्च करने लगे हैं।
प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए खातों और पीएम स्वनिधि के तहत दिये जा रहे ऋण से क्रेडिट में 8 प्रतिशत की वृद्धिशील वृद्धि हुई है। पिछले 9 सालों में 30 प्रतिशत ऐसे लाभार्थी हैं, जिन्होंने पहली बार जमा खाता खुलवाया था या फिर पहली बार ऋण की सुविधा ली थी। वहीं, वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2023 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
विगत 9 सालों में सरकार ने गरीबी दूर करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है। प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए खातों में नियमित तौर पर लेनदेन करने वालों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी दी गई थी, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिली थी। सुकन्या समृद्धि योजना के तहत 42 प्रतिशत नए खाते सिर्फ प्रधानमंत्री जनधन योजना की वजह से खुले।
तदुपरांत, समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने, समावेशी विकास को सुनिश्चित करने और कोरोना महामारी के दौरान कारोबारियों की मदद करने के लिए सरकार ने पीएम स्वनिधि, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, ईसीएलजीएस आदि को अमलीजामा पहनाया।
आज इन योजनाओं की वजह से अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले 6 प्रतिशत कामगारों का औपचारिककरण किया जा चुका है, जिससे जरूरतमंद लोगों को और भी सुविधाएँ देने की संभावना बढ़ी है, अर्थव्यवस्था में मजबूती आई है और समावेशी विकास को बल मिला है। साथ में, आने वाले सालों में सरकारी राजस्व में इजाफा होने की संभावना भी बढ़ी है।
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