प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सम्पूर्ण शासकीय कार्यकाल के 20 वर्ष पूरे होने वाले हैं, 7 वर्ष से कुछ ज्यादा प्रधानमंत्री के रूप में और लगभग 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में. एक सहज प्रश्न उठता है कि इतने लंबे समय के सार्वजनिक जीवन में श्री मोदी के व्यक्तित्व और कृतित्व की क्या तस्वीर उभरती है? गहराई से देखें तो पीएम मोदी का व्यक्तित्व चार आधार स्तंभों पर खड़ा है. एक ओर वे भारतीयता की महान विरासत के पुंजीभूत रूप हैं, तो दूसरी ओर महात्मा गाँधी के विजन से अनुप्राणित. तीसरी ओर वे बाबासाहेब आम्बेडकर के दिए संविधान के प्रति पूर्ण प्रतिबद्ध हैं तो उनके व्यक्तित्व का चौथा स्तम्भ है देश और देशवासियों के हित में सतत समर्पण. पीएम मोदी के व्यक्तित्व की ये चार मूलभूत विशेषताएँ उनकी सभी नीतियों और निर्णयों में दिखाई पड़ती है. इस आलेख में मोदी जी के शिक्षा संबंधित नीतियों और निर्णयों की पड़ताल की जाएगी.
प्रधानमंत्री मोदी के शिक्षा सम्बन्धी नीतियों-निर्णयों को चार श्रेणियों में बांटकर देखा जा सकता है– नीतिगत, आधारभूत संरचना, पाठ्यक्रम की दिशा और नवाचार.
सर्वप्रथम नीतिगत विषय और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 पर चर्चा. यहाँ जानना महत्वपूर्ण है कि देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के एक-एक बिंदु पर स्वयं विस्तार से विचार किया हो. शिक्षा के प्रति मोदीजी की प्रतिबद्धता को तो यह दर्शाता है ही, इससे एनईपी-2020 पर उनकी गहरी छाप भी पड़ी. विश्व इतिहास में यह भी पहली बार हुआ है कि शिक्षा नीति बनाने के लिए देश के चारों दिशाओं से 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉक और 676 जिलों के शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, अध्यापकों, जनप्रतिनिधियों, उद्योगपतियों, अभिभावकों और छात्रों के सवा 2 लाख सुझावों पर मंथन कर जन आकांक्षाओं के अनुरूप एनईपी-2020 साकार हुई. इस रूप में सारी दुनिया में एक लोकतांत्रिक रीति से तैयार हुई यह पहली शिक्षा नीति है, और सच्चे मायने में एक राष्ट्रीय नीति भी.
एनईपी का एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु है ‘सबका साथ, सबका विकास’ के लिए ‘सबको शिक्षा’ देने की महत्वकांक्षी योजना. वर्तमान में ‘राइट टू एजुकेशन’ आठवीं कक्षा और 14 साल तक के बच्चों के लिए है. लेकिन एनईपी में इससे आगे बढ़कर माध्यमिक स्तर तक ‘एजुकेशन फ़ॉर ऑल’ का लक्ष्य रखा गया है. अब 18 वर्ष तक सभी के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य और निशुल्क होगी.
बाबासाहेब अंबेडकर की भावनाओं के अनुरूप मोदी सरकार की एनईपी सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े-वंचित तबकों ( SEDGs) के लिए भी सजग है. एससी, एसटी, ओबीसी, दिव्यांगों और ईडब्लूएस के मेधावी छात्रों के लिए वर्तमान सरकारी योजनाओं के अतिरिक्त विशेष प्रावधान किए जाएँगे. यह बात भी अहम है कि सार्वजनिक के अलावा निजी क्षेत्रों के उच्च शिक्षा संस्थानों में भी इन कमजोर तबकों के लिए निशुल्क शिक्षा या छात्रवृति के प्रयास किए जाएँगे. एनईपी में मध्यम वर्ग का भी ध्यान रखा गया है. उन्हें निजी संस्थानों में बेतहाशा फीस न देनी पड़े, इसके लिए निजी संस्थानों की मनमानी फीस पर लगाम लगाने के लिए एक कैपिंग (capping) भी होगी.
मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न रोजगार से भी है. मैकाले मॉडल पर आधारित हमारी शिक्षाप्रणाली किताबी ज्ञान पर जोर देती है, जो पढ़ाई के बाद नौकरी ढूँढने वाले बेरोजगारों की बड़ी खेप तैयार कर रही है. लेकिन एनईपी पाठ्येतर क्रियाकलापों और वोकेशनल शिक्षा पर भी बल देती है. महात्मा गांधी के श्रम-सिद्धांत के अनुरूप छठी क्लास से ही वोकेशनल कोर्स शुरू होंगे, जिसमें ‘कोडिंग’ (‘व्हाइट हैट जूनियर’ तरह के) जैसे आधुनिकतम प्रशिक्षण भी होंगे जिसके लिए प्राइवेट कम्पनियाँ हजारों रूपये फीस वसूलती हैं. बल्कि अमेरिकी-यूरोपीय विश्वविद्यालयों की तरह कॉलेज स्तर पर भी वोकेशनल प्रशिक्षण के विभिन्न कोर्सेस उपलब्ध होंगे जो युवकों को स्वावलम्बन की दिशा में ले जाएँगे. मोदी मॉडल में रोजगार मांगने वालों की जगह रोजगार देने वालों अथवा स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा.
एनईपी-2020 में स्ट्रीम की खांचेबंदी नहीं होगी. अब साइंस अथवा कॉमर्स का छात्र आर्ट्स और सोशल साइंस के विषय भी पढ़ सकेगा. यह पैटर्न छात्रों में एक अंतर्विषयक (Interdisciplinary) दृष्टि पैदा करेगा. मल्टी-टास्किंग के ज़माने में एक तरफ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर उनके रोजगार में सहायक होगा तो दूसरी ओर भावी अंतर्विषयक (Interdisciplinary) रिसर्च के लिए उन्हें तैयार करेगा.
इसी तरह मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट ग्रेजुएशन प्रोग्राम की योजना छात्रों खासतौर से वंचित वर्ग के लिए क्रांतिकारी है. अभी किसी कारणवश बीच में ही पढ़ाई छोड़ना पड़े तो सारा धन, परिश्रम तथा समय बर्बाद चला जाता है. लेकिन अब एक साल अथवा दो साल में भी पढ़ाई छोड़ने पर उसे सर्टिफिकेट या डिप्लोमा जरुर मिलेगा. बल्कि एक तय सीमा में वापस आकर वह अपनी बची पढाई पूरा कर सकता है. ‘एकेडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ यानी एक डिजिटल क्रेडिट बैंक अन्य क्रांतिकारी प्रावधान है जिसमें छात्रों द्वारा विभिन्न कोर्सेस पास करने के बाद प्राप्त क्रेडिट (अंक) जमा होते जाएँगे. किन्हीं मज़बूरी में संस्थान-शहर बदलना पड़े तो एक संस्थान या प्रोग्राम में प्राप्त क्रेडिट को दूसरी जगह ट्रांसफर किया जाएगा. इससे उनकी अब तक की हुई पढ़ाई व्यर्थ नहीं जाएगी. हर्ष का विषय है कि ‘एकेडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ स्थापित भी हो चुका है.
मोदी जी के भारत-प्रेम की झलक भारतीय भाषाओं के प्रति उनके प्रेम में भी दिखती है. इसीलिए एनईपी में स्कूली से लेकर उच्च शिक्षा तक ‘भारतीय भाषाओँ में अध्यापन’ पर बल है. अब कम से कम पाँचवी ग्रेड तक की पढ़ाई मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में होगी. यूनेस्को रिपोर्ट-2008 भी मातृभाषा में शिक्षण की अनुशंसा करता है. संसार के विकसित देशों अमेरिका, जर्मनी, फ़्रांस, इंग्लैंड, जापान, चीन आदि में स्कूली, यहाँ तक कि उच्च शिक्षा का माध्यम भी सामान्यतया उनके देश की भाषा ही है. ‘भारतीय भाषाओं में अध्यापन’ हमारे विद्यार्थियों की अधिगम क्षमता को बढ़ाएगा जो अन्ततः राष्ट्र निर्माण में सहायक होगा.
संरचना के स्तर पर देखें तो भारतीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण पाठ-सामग्री उपलब्ध हो, इसके लिए एक इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई) की स्थापना की ओर कार्य अग्रसर है. उधर देश में 64 साल में जहाँ 16 आईआईटी बने, वहीं मोदी सरकार ने 7 साल में ही 7 और आईआईटी बनवा दिए. इसी तरह 2014 तक भारत में 13 आईआईएम थे. अब यह संख्या बढ़कर 20 हो चुकी है.
पाठ्यक्रम एक अन्य बिंदु है जहाँ मोदी सरकार ने हमारी शिक्षा को पश्चिमी परिप्रेक्ष्य-दृष्टि के कब्जे से निकालकर भारतीयता से जोड़ने का शुभारंभ किया है. उदाहरण-स्वरूप पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंच से वैदिक गणित पढने की वकालत की. याद रहे कि आईआईएम तक के कोचिंग में वैदिक गणित का अभ्यास कराया जाता है. इसी तरह इतिहास में सुहेलदेव जैसे उपेक्षित्त सबाल्टर्न नायकों का उल्ल्लेख कर अकादमिक जगत को प्रेरित किया है. आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रधानमंत्री की नवीनतम योजना ‘युवा’ (YUVA) 30 वर्ष से कम उम्र के लेखकों का एक पूल तैयार करेगी जिससे भारतीय संस्कृति और साहित्य को विश्व स्तर पर पेश करने में मदद मिलेगी.
नवाचार और शोध-अनुसंधान एक अन्य क्षेत्र है जो किसी राष्ट्र की प्रगति में बड़ी भूमिका निभाते है. देश में एक विश्वस्तरीय शोध-अनुसंधान क्षमता विकसित हो, इसके लिए नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (एनआरएफ़) की स्थापना हो रही है. 2021 फ़रवरी में मोदी सरकार ने इसके लिए 50,000 करोड़ रूपये मंजूर किया है. यही नहीं, स्कूली छात्रों में भी इनोवेशन/ नवाचार को प्रोत्साहन देने के लिए मोदी सरकार ने 2016 से स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब की शुरुआत कर दिया है. इसके अतिरिक्त नवाचार और शोध-अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एकल विषयक संस्थानों जैसे लॉ यूनिवर्सिटी या एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी आदि को धीरे-धीरे बहुविषयक संस्थानों (Multidisciplinary Education and Research Universities) में बदल दिया जाएगा.
समग्र रूप से कहें तो भारतीयता से लेकर वैश्विकता, रोजगार से लेकर नवाचार और जन-कल्याण से लेकर आर्थिक प्रगति– सभी दृष्टियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की शिक्षा सम्बन्धी नीतियाँ और निर्णय 21वीं सदी के भारत की आवश्यकताओं-चुनौतियों को पूरा करने और हमें आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग, कला संकाय में प्राध्यापक हैं. प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)