Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

विरासत पर गर्व से विकास का शिखर, युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा की पुंज व संकल्‍प सिद्धि की राह

स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस समारोह के उद्बोधन में अमृत काल की परिकल्पना की और उसके लिए पांच संकल्प दिए। ये वे मंत्र हैं जो विकसित भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इन पांच प्रणों में विरासत पर गर्व का उल्लेख किया गया है। इसके निहितार्थ को समझें। हम सभी यह जानते हैं कि कोई भी देश तब तक विकास के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता, जब तक वो अपनी विरासत को सहेजना नहीं जानता।

हम कौन हैं? हमारी मान्यताएं क्या हैं? हमारी कला-संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत ही वो माध्यम है, जो हमें इन सवालों के जवाब देती हैं व औरों से अलग पहचान दिलाती हैं। यही वो माध्यम हैं जो हमें पूर्वजों के ज्ञान को जानने-समझने और आत्मसात करते हुए भविष्य की चुनौतियों से लड़ने और उन पर विजय हासिल करने का बल प्रदान करती हैं।

विश्व का मार्ग कर रहे प्रशस्त

विरासत पर गर्व करने से पहले यह समझना होगा कि आखिरकार भारत की विरासत क्या है? यहां बात 100-200 साल के इतिहास की नहीं हो रही है। विषय महत्वपूर्ण है और प्रधानमंत्री मोदी के इस संकल्प का उद्देश्य उस बिंदु को समझने का है जो हमें भविष्य की ओर छलांग लगाने की ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ हमारे इतिहास या यूं कहें कि हमें हमारी जड़ों से जुडे़ रहने की प्रेरणा देता है। भारतीय विरासत कई शताब्दियों पहले की है।

यह विशाल है, प्रामाणिक है, और आज भी हमारे बीच जीवंत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने ही विश्व को शून्य का ज्ञान दिया। चिकित्सा की बात करें तो ऋषि सुश्रुत व चरक की तमाम संहिताएं भारत की ही देन हैं। अध्ययन-अध्यापन के मोर्चे पर तक्षशिला, नालंदा भारत में ही स्थापित ज्ञान के केंद्र रहे। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे समक्ष उपलब्ध हैं जो हमें भारतीय विरासत पर गर्व का अनुभव कराते हैं।

आज भारत जब सुपरपावर बनने की दिशा में अग्रसर है तो अवश्य ही हमें अपनी उस विरासत को संजोने, संरक्षित करने की ओर भी विशेष ध्यान देना होगा, जिसके बूते आज हम इस मुकाम तक पहुंचे हैं। हरियाणा राज्य की ही बात करें तो यह वह पावन भूमि है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। आज गीता के ज्ञान को समूचा विश्व स्वीकारता है और अपना रहा है। देश-विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में इससे जुड़े अध्ययन-अध्यापन व शोध कार्य हो रहे हैं। भारतभूमि की विरासत में ऐसे अनेक गूढ़ सत्य विद्यमान हैं जो न सिर्फ भारत बल्कि समूचे विश्व की प्रगति, विकास और मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

तथ्यों की हो स्पष्टता

विरासत पर गर्व करने के साथ-साथ इसे सुरक्षित, संरक्षित व इसकी प्रामाणिकता और तथ्यपरक पक्षों को जनमानस के बीच पहुंचाने की भी आवश्यकता है। इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि भारतीय इतिहास में एक थ्योरी लगातार प्रचारित-प्रसारित की गई कि आर्य भारत में बाहर से आए थे और वे यहां के मूल निवासी नहीं थे। जबकि पुरातत्वविद्, डेक्कन डीम्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति व हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में एडजंट फैकल्टी (अनुबद्ध संकाय) प्रो. बसंत शिंदे का शोध कहता है कि भारत में जो विकास हुआ, वो यहीं के निवासियों द्वारा किया गया।

राखीगढ़ी की खोदाई से मिले अहम प्रमाण

राखीगढ़ी, हरियाणा में खोदाई के बाद 5,000 साल पुराने एक महिला के कंकाल के डीएनए के अध्ययन से प्रो. शिंदे ने यह साबित किया है कि हड़प्पाकालीन लोग हमारे जैसे ही थे और हम उनके वंशज हैं। इससे वह थ्योरी पूरी तरह से गलत साबित हो जाती है कि आर्य बाहर से भारत आए थे और उन्होंने हमारी सभ्यता का विकास किया था। इस तरह से विरासत पर गर्व और उसकी तथ्यपरक, प्रामाणिकता आधारित समझ बेहद जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से विरासत पर गर्व को प्रस्तुत संकल्प का उद्देश्य कुछ इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे ही तथ्यों का नतीजा है कि स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के बाद अमृत काल की ओर बढ़ रहे भारत में इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

विकसित भारत का पूर्ण होगा स्वप्न

यह सच है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कालखंड ने भारत के अंतर्मन और भारतीयों की भावनाओं को कई गहरे घाव दिए थे, इसके बावजूद हमारी जिजीविषा, जुनून और जोश का कम न होना उसी विरासत की देन है, जिसके बूते आज तक भारत की हस्ती बरकरार है। भारत अब नई चेतना, नई उमंग और नए विश्वास के साथ अपने अतीत को सहेजते हुए भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति अहम

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देखें तो उसमें भारतीयता, भारतीय भाषाओं में शिक्षा, कौशल विकास, शोध, अनुसंधान, नवाचार और अपनी विरासत पर गर्व का भाव कूट-कूटकर भरा हुआ है। स्वतंत्र भारत की यह पहली ऐसी शिक्षा नीति है जो पूरी तरह से भारतीय संकल्पों, भारतीयता के भाव और भारतीय सोच के साथ भारत को विकसित देश बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रही है। रास्ता लंबा है और इसमें हर कदम पर चुनौतियां हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि भारत ने सदैव चुनौतियों से पार पाते हुए विश्व को राह दिखाई है।

वसुधैव कुटुंबकम की बात सिर्फ भारत में

यह भारत देश ही है जो कि वसुधैव कुटुंबकम् की बात करता है। एक सच्चा नागरिक होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने प्रधानमंत्री, जो स्वयं प्रधानसेवक के रूप में देश की प्रगति के लिए अनवरत प्रयासरत हैं, द्वारा दिए गए संकल्पों को अपनाएं और आत्मनिर्भर भारत, विश्वगुरु भारत, समृद्ध भारत, सुपर पावर भारत, सशक्त भारत के लिए जारी प्रयासों में योगदान दें। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए हमें हमारी विरासत से प्रेम और उस पर गर्व करते हुए आगे बढ़ना होगा।

प्राप्त हुए हैं असाध्य लक्ष्य

जहां तक सफलता की बात है तो इतिहास गवाह है कि भारत ने सदैव विश्व समुदाय को भविष्य की राह दिखाई और आज भी उसी जज्बे के साथ मानवता की भलाई हेतु प्रयासरत है। योग भारतीय पुरातन संस्कृति का ऐसा ही प्रमाण है जो कई वर्षों से भारत की आत्मा में रचा-बसा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों का ही परिणाम है कि भारतीय योग की महत्ता को आज समूचा विश्व स्वीकार करते हुए उसे अपना रहा है।

संपूर्ण विश्व भी आज इस बात को समझता है कि भारतभूमि और इसके लोग ही हैं जो अपनी क्षमताओं के सहारे असाध्य लक्ष्यों का प्राप्त करने का दम रखते हैं। यकीनन भारत की मिट्टी में वो ताकत है, वो सामथ्र्य है, जिसके बूते हम सदियों से अपनी पहचान को बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। विरासत पर गर्व का यही भाव हमें विश्वपटल पर विकसित राष्ट्र के मुकाम पर स्थापित करने में मददगार साबित होगा।

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