प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के ऐतिहासिक निर्णय पर देशभर में “पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा एवं बुद्ध की धरोहर” विषयक संगोष्ठियों का आयोजन किया गया। इन संगोष्ठियों का आयोजन सारनाथ, बोधगया, विश्वभारती शांतिनिकेतन, लद्दाख, नई दिल्ली और कुशीनगर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर किया गया।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाली के साथ-साथ बंगाली, मराठी और असमिया भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना केवल भाषाओं को सम्मान प्रदान करने का प्रयास नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
अगर हम असमिया, मराठी और बंगाली भाषाओं का मूल्यांकन करें तो पाएंगे कि ये भाषाएं आज भी अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्रों में समृद्ध और प्रचलन में हैं। लेकिन जब पाली भाषा की स्थिति पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध और सम्राट अशोक के समय की यह जनभाषा कालांतर में विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई। आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी इस भाषा पर गंभीर विचार नहीं किया गया था, जबकि शांति और अहिंसा का संदेश देने में पाली की जो अद्वितीय भूमिका है, वह न किसी अन्य भाषा में है और न ही किसी बोली में।
कृष्ण, महावीर और बुद्ध के विचारों के आलोक में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित करने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पाली के गौरव को पुनर्स्थापित करने का जो ऐतिहासिक निर्णय लिया है, उसने विद्वानों और इतिहासकारों के मन में नई आशाओं का संचार किया है। यह निर्णय न केवल भारत के लिए, बल्कि समस्त विश्व के लिए पाली के स्थायी और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है।
पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देकर सरकार ने इस प्राचीन भाषा की पुनर्प्रतिष्ठा के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक धरोहर को एक नई पहचान देने का कार्य किया है। पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के उपरांत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान (एसपीएमआरएफ) ने देश के विभिन्न हिस्सों में पाली के महत्व और विकास पर केंद्रित संगोष्ठियों का आयोजन किया। इन संगोष्ठियों में भगवान बुद्ध और उनसे जुड़े स्थल विशेष रूप से केंद्र बिंदु रहे, जिनमें सारनाथ, बोधगया और कुशीनगर प्रमुख थे। इसके अतिरिक्त, नई दिल्ली, शांतिनिकेतन और लद्दाख में भी इन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। अब तक आयोजित इन कार्यक्रमों में लगभग 50 विद्वानों ने पाली भाषा के संरक्षण और विकास पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
एसपीएमआरएफ ने पाली के विकास और संरक्षण को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया है। इस अभियान का नेतृत्व संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अनिर्बान गांगुली कर रहे हैं, जो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विचारों और बौद्ध परंपरा के प्रति अपनी रुचि से प्रेरित हैं। डॉ. गांगुली इस कार्य में विशेष रुचि और आनंद का अनुभव करते हैं।
3 अक्टूबर 2024 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के तुरंत बाद इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्य योजनाओं पर विचार किया गया। इस क्रम में भगवान बुद्ध से जुड़े प्रमुख स्थल सारनाथ को पहले कार्यक्रम स्थल के रूप में चुना गया। इस निर्णय के पीछे प्रेरणा तथागत बुद्ध की प्रथम धम्म देशना रही, जिसे पाली ग्रंथों में “प्रथम धम्म चक्र प्रवर्तन” के रूप में वर्णित किया गया है।
सारनाथ में इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए एसपीएमआरएफ ने महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के साथ साझेदारी की पहल की। कार्यक्रम की तिथि 12 नवंबर 2024, दोपहर 2 बजे निर्धारित की गई।
इस कार्यक्रम में प्रमुख वक्ताओं के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के डॉ. कामाख्या नारायण तिवारी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉ. अरुण कुमार यादव, डॉ. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरप्रसाद दीक्षित, पाली एवं थेरवाद विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश प्रसाद और श्रीलंका के बौद्ध एवं पाली विश्वविद्यालय के भिक्षु पी. नारद थेरो ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस ऐतिहासिक आयोजन ने पाली भाषा के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। यह कार्यक्रम न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पाली भाषा के महत्व को रेखांकित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरप्रसाद दीक्षित जी ने की, जबकि विषय प्रवर्तन बौद्ध एवं पाली विश्वविद्यालय, श्रीलंका के भिक्षु पी. नारद थेरो द्वारा किया गया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान के अध्यक्ष और इस कार्यक्रम के प्रमुख शिल्पकार, डॉ. अनिर्बान गांगुली ने अपने संबोधन में पाली भाषा के महत्व को विस्तार से रेखांकित किया। उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा बौद्ध धर्म के उत्थान और विकास के लिए किए गए कार्यों पर भी गहन चर्चा की।
कार्यक्रम में आए अतिथियों और वक्ताओं का स्वागत विहाराधिपति भिक्षु आर. सुमित्तानंद थेरो ने किया। अन्य प्रमुख वक्ताओं में प्रो. पेमा तेनजिंग, डॉ. चंद्रशेखर सिंह और अनिल सोनकर ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. के. प्रवीण श्रीवास्तव ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संदीप कुमार ने दिया।
बोधगया में अगला चरण: बौद्ध धरोहर के संरक्षण का प्रयास
कार्यक्रम की अगली कड़ी बोधगया में आयोजित की गई, जहां भगवान बुद्ध को बोधि प्राप्त हुई थी। इस आयोजन का आयोजन महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया और एसपीएमआरएफ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। बोधगया के शांत वातावरण में इस कार्यक्रम की भव्यता और वैश्विक महत्त्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें दुनिया भर के कई देशों के प्रतिनिधियों और श्रोताओं ने भाग लिया।
इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के महासचिव वेनरेबल शिवली थेरो, पाली भाषा के ख्यातिलब्ध विद्वान श्री अंगराज चौधरी, नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज के कुलपति प्रो. राजेश रंजन, जादवपुर विश्वविद्यालय की दर्शनशास्त्र विभाग की प्रोफेसर मधुमिता चट्टोपाध्याय, साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आनंद कुमार सिंह, मगध विश्वविद्यालय के पाली भाषा विभाग प्रमुख डॉ. संजय कुमार, गया कॉलेज के पाली विभाग प्रमुख डॉ. राजेश कुमार मिश्र, और बुद्धिस्ट थाई भारत सोसाइटी के महासचिव वेलनेरेबल डॉ. रत्नेश्वर चकमा शामिल रहे।
कार्यक्रम में विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की सचिव श्रीमती अनुत्तमा गांगुली सहित अन्य विशिष्ट अतिथियों ने भी शिरकत की। यह सम्मेलन पाली भाषा के संरक्षण और प्रचार के साथ-साथ बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अध्ययन और अनुसंधान में रुचि रखने वालों के लिए एक अद्वितीय अवसर सिद्ध हुआ।
पाली भाषा और बौद्ध विचारधारा का प्रचार-प्रसार
महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया और एसपीएमआरएफ ने इस आयोजन के माध्यम से पाली भाषा और बौद्ध धर्म की धरोहर को संरक्षित और प्रचारित करने का सराहनीय प्रयास किया। इस सम्मेलन ने पाली भाषा के महत्व को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने और बौद्ध धर्म की सार्वभौमिक शिक्षा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शांति निकेतन में पाली और शास्त्रीय भाषाओं का संगम
सफल कार्यक्रमों की श्रृंखला के बाद, गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की पुण्यभूमि, विश्वभारती शांतिनिकेतन में 22 नवंबर को तीसरे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस ख्यातिलब्ध स्थान को चुनने के पीछे गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की तथागत बुद्ध के प्रति गहरी आस्था थी। गुरुदेव ने तथागत पर अनेक लेख और कविताएँ लिखीं, जो आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।
कार्यक्रम का विशेष स्वरूप
शांतिनिकेतन में आयोजित इस कार्यक्रम का स्वरूप पिछले आयोजनों से थोड़ा भिन्न था। इस बार कार्यक्रम में उन सभी भाषाओं को शामिल किया गया, जिन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है। बांग्ला, मराठी, असमिया, प्राकृत और पाली भाषाओं के विद्वानों को आमंत्रित किया गया।
कार्यक्रम में प्रमुख अतिथियों में डॉ. अनिर्बान गांगुली (अध्यक्ष, एसपीएमआरएफ), बिनॉय कुमार सरीन (कार्यवाहक कुलपति, विश्वभारती), प्रोफेसर शाश्वती मुतुसद्दी (पालि भाषा विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय), प्रोफेसर दिगंता बिस्वा सरमा (डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय, असमिया भाषा), प्रोफेसर जगत राम भट्टाचार्य (संस्कृत, पाली और प्राकृत विभाग, विश्वभारती), डॉ. सुमेध रणवीर (मराठी भाषा विभाग, विश्वभारती), डॉ. मानस, प्रोफेसर मनोरंजन प्रधान और डॉ. सुमन भट्टाचार्य शामिल थे।
हालांकि कार्यक्रम को वामपंथी छात्र संगठन एस.एफ.आई. द्वारा बाधित करने की कोशिश की गई, लेकिन आयोजकों और अतिथियों के दृढ़ संकल्प ने उनकी हर चाल को विफल कर दिया। इतना ही नहीं, विरोध कर रहे कुछ लोग भी बाद में श्रोता बनकर दर्शक दीर्घा में वक्ताओं के विचार सुनने लगे।
प्रधानमंत्री के निर्णय की प्रशंसा
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. अनिर्बान गांगुली ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को बंगाली, पाली, असमिया, मराठी और प्राकृत भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के ऐतिहासिक निर्णय के लिए धन्यवाद और आभार प्रकट किया। उन्होंने इस निर्णय को भारतीय भाषाओं और संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया।
उन्होंने कहा कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, सर आशुतोष मुखर्जी (डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता) और स्वयं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भाषाओं के प्रचार-प्रसार और उनके विकास के लिए अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा बंगाली, पाली, असमी, मराठी और प्राकृत भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के निर्णय से इन भाषाओं के संरक्षण और वैश्विक स्तर पर उनके प्रचार-प्रसार को नई दिशा मिलेगी।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. अनिर्बान गांगुली ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के योगदान को विस्तार से रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि डॉ. मुखर्जी (1901-1953) न केवल स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे, बल्कि एक उत्कृष्ट शिक्षाविद और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। भारतीय संस्कृति, भाषाओं और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को ऐतिहासिक महत्व प्राप्त है।
डॉ. मुखर्जी का दृष्टिकोण राष्ट्रवादी था। उन्होंने भारतीय भाषाओं के प्रचार, संरक्षण और विकास के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया। बंगाली साहित्य को शुद्ध और समृद्ध बनाने में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। बंगाली भाषा के संरक्षण के लिए उन्होंने शिक्षा के माध्यम के रूप में इसकी महत्ता को बल दिया।
डॉ. मुखर्जी ने भारतीय भाषाओं को शिक्षा और प्रशासन का आधार बनाने का समर्थन किया। उनका मानना था कि भारतीय भाषाएँ देश की संस्कृति और सभ्यता की आत्मा हैं, और उनका विकास न केवल सांस्कृतिक बल्कि सामाजिक प्रगति के लिए भी आवश्यक है।
संस्कृत, जिसे भारतीय संस्कृति की जननी माना जाता है, के प्रति डॉ. मुखर्जी की गहरी आस्था थी। उन्होंने इसके संरक्षण और प्रचार के लिए अनेक प्रयास किए। भारतीय संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों की मूल भाषा होने के कारण संस्कृत के पुनर्जागरण के लिए उनके कदम ऐतिहासिक और दूरदर्शी थे।
उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और भारतीय भाषाओं के उत्थान और उनके गौरव को बनाए रखने के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
पाली भाषा और बौद्ध धर्म: लद्दाख में ऐतिहासिक सम्मेलन
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के उपलक्ष्य में 27 नवंबर 2024 को “पाली भाषा और बौद्ध धर्म” पर एक महत्वपूर्ण सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल और ऑल लद्दाख गोंपा एसोसिएशन (एएलजीए) के संयुक्त तत्वावधान में ज़ेन होटल, लेह में आयोजित किया गया।
मुख्य अतिथि और वक्ता
इस ऐतिहासिक आयोजन की शोभा ड्रुकपा थुक्से रिनपोछे ने मुख्य अतिथि के रूप में बढ़ाई। एसपीएमआरएफ के चेयरमैन डॉ. अनिर्बान गांगुली ने अपने संबोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के ऐतिहासिक निर्णय के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने पाली भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इस कदम से न केवल भाषा का संरक्षण होगा, बल्कि इसका वैश्विक प्रचार-प्रसार भी सुनिश्चित होगा।
डॉ. गांगुली ने बताया कि इससे पहले सारनाथ, महाबोधि और शांतिनिकेतन जैसे प्रतिष्ठित स्थानों पर भी इसी विषय पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, सर आशुतोष मुखर्जी और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के भाषाओं के विकास और संरक्षण में योगदान का स्मरण किया।
विशिष्ट अतिथि और उनके विचार
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और लद्दाख प्रभारी श्री तरुण चुग ने इस अवसर पर एएलजीए को सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए बधाई दी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भगवान बुद्ध के शांति और अहिंसा के संदेश को वैश्विक स्तर पर फैलाने में यह निर्णय मील का पत्थर साबित होगा।
ड्रुकपा थुक्से रिनपोछे ने भी अपने संबोधन में पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के लिए प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया। उन्होंने बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन के संरक्षण में प्रधानमंत्री मोदी के योगदान को रेखांकित किया और उनसे भोटी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया।
प्रतिनिधियों की भागीदारी
इस कार्यक्रम में एलबीए (लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन) के अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरुक, एएलजीए के अध्यक्ष भंते त्सेरिंग वांगदुस, महाबोधि इंटरनेशनल के संस्थापक भंते संघसेना, भंते थुपस्तान पाल्डन, गेशे जम्यांग, ईसी ताशी नामग्याल याकज़ी, ईसी स्तांजिन चोस्पेल, पूर्व सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल, पूर्व सीईसी ग्याल पी वांग्याल, एलबीए की महिला शाखा की उपाध्यक्ष डॉ. कुंजेस डोलमा, और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
समारोह की विशेषता
सम्मेलन में विभिन्न मठों के विद्वान और भिक्षु, भाजपा लद्दाख के अध्यक्ष फुंतसोग स्तांजिन, उपाध्यक्ष दोरजे आंगचुक और लद्दाख के अन्य सम्मानित नागरिक भी शामिल हुए।
ड्रुकपा थुक्से रिनपोछे ने बौद्ध शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह निर्णय बौद्ध परंपरा और भारतीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
दिल्ली में पाँचवे कार्यक्रम का आयोजन
6 दिसंबर 2024, शुक्रवार को दिल्ली स्थित भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव श्री तरुण चुग के आवास 69 साउथ एवेन्यू पर पाँचवे कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव श्री बी. एल. संतोष सहित देश भर से आए बौद्ध भिक्षु उपस्थित हुए।
कार्यक्रम में एसपीएमआरएफ के चेयरमैन डॉ. अनिर्बान गांगुली ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के योगदान पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर प्रमुख रूप से वेनरेबल संघसेना जी, आचार्य येशी फुंट्सोक, आचार्य विनयस्री, वेनरेबल दीपंकर सुमेधो, वेनरेबल लामा जोसपेल जोंत्पा, महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के सदस्य श्री सुब्रतो बरुआ और शांति निकेतन अंबेडकर बुद्धिस्ट वेल्फेयर मिशन के अध्यक्ष श्री सुब्रतो बरुआ, लद्दाख बौद्ध संघ की उपाध्यक्ष कुनजेस डोलमा जी उपस्थित थे।
कार्यक्रम की अगली कड़ी: कुशीनगर में राष्ट्रीय संगोष्ठी
कार्यक्रम के अगले चरण में, 18 दिसंबर 2024 को पूर्वांचल के प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान, बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर में “पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा एवं बुद्ध की धरोहर” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में एसपीएमआरएफ के चेयरमैन डॉ. अनिर्बान गांगुली, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के पूर्व अध्यक्ष भदंत महेंद्र थेरो, महाविद्यालय प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष एवी ज्ञानेश्वर, डॉ. बीरेंद्र कुमार, प्रो. गौरय तिवारी, भिक्षुणी धम्मनैना, डॉ. प्रतिभा यादव आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। विशिष्ट वक्ता डॉ. शिवानंद द्विवेदी ने कार्यक्रम का प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अनिर्बान गांगुली ने कहा कि भारत सरकार द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार और पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना भगवान बुद्ध को सच्ची श्रद्धांजलि है। उन्होंने कहा कि पाली बुद्ध की भाषा थी, और इसका पुनः उद्धार बुद्ध के विचारों को और भी अधिक प्रामाणिक रूप से जीवित करेगा।
डॉ. गांगुली ने आगे कहा कि भारतीय भाषाओं का सम्मान और आत्मनिर्भरता आज के समय की आवश्यकता है, और पाली का सम्मान और उसका अध्ययन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने 24 नवंबर 1956 में सारनाथ में डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा दिए गए व्याख्यान का उल्लेख करते हुए कहा कि पाली भाषा और नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने का कार्य मुस्लिम शासकों ने किया।
भदंत महेंद्र थेरो ने कहा कि भारत सरकार द्वारा पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना एक अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है, जो भारतीय संस्कृति और बौद्ध दर्शन के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
निष्कर्ष : प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के निर्णय के बाद, एसपीएमआरएफ और अन्य सहयोगी संगठनों द्वारा देशभर में आयोजित कार्यक्रमों ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। वाराणसी, बोधगया, शांति निकेतन, नई दिल्ली, लद्दाख और कुशीनगर जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों पर आयोजित कार्यक्रमों ने पालि भाषा के महत्व को उजागर किया और इसके संरक्षण, विस्तार तथा शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा की।
इन कार्यक्रमों से यह स्पष्ट होता है कि पालि भाषा न केवल भारत, बल्कि समूचे विश्व में बौद्ध धर्म और भारतीय संस्कृति के एक अहम हिस्से के रूप में जानी जाती है। इस पहल ने भारतीय संस्कृति की विविधता को एक नया आयाम दिया है और इसके महत्व को आधुनिक संदर्भ में भी पुनः स्थापित किया है। इन आयोजनों ने न केवल पालि भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया, बल्कि युवाओं और समाज के अन्य वर्गों को इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में अवगत भी कराया।
इस प्रकार, यह पहल भारतीय सभ्यता, संस्कृति और भाषा की समृद्धि की दिशा में एक सकारात्मक कदम साबित हुई है।