पिछले दिनों 17 वां प्रवासी भारतीय दिवस बेहद शानदार तरीके से संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में 70 देशों के तकरीबन साढ़े तीन हजार प्रवासी भारतीयों ने शिरकत कर जता दिया कि वे अपने देश की समृद्धि के लिए कंधा जोड़ने को तैयार हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन सर्वथा उपयुक्त है कि हर प्रवासी भारतीय विदेशी जमीन पर राष्ट्रदूत की भूमिका में है और वह इस देश की विविधताओं की नुमाइंदगी करता है।
गौर करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने केवल कहने के लिए प्रवासी भारतीयों को राष्ट्रदूत नहीं कहा है, अपितु सत्ता में आने के बाद से ही वे देशवासियों के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों को भी पूरा महत्व देते रहे हैं। नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं में प्रायः प्रवासी भारतीयों से संवाद कार्यक्रम की योजना भी होती है। ऐसे आयोजनों में भारतीय प्रधानमंत्री सहित सम्बन्धित देशों के शासक भी मंच साझा करते रहे हैं।
प्रधानमंत्री अपने संबोधनों के क्रम में भी प्रवासी भारतीयों को अधिकाधिक रूप से भारत से जोड़ने की भावभूमि तैयार करते हैं। वे इसपर जोर देते हैं कि चाहें कहीं भी रहे, मगर हर भारतीय भारतमाता की ही संतान है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रवासी भारतीयों की समस्याओं की चर्चा करते हुए उनके समाधान के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया जाता है।
यह सच है कि नरेंद्र मोदी के शासन में दुनिया भर में भारत की साख पहले से कहीं अधिक बेहतर और मजबूत हुई है। इसका सीधा असर प्रवासी भारतीयों के जीवन पर भी पड़ा है। अब एक भारतीय के रूप में उन्हें जिस देश में वे रह रहे हैं, वहाँ अधिक महत्व और सम्मान मिलने लगा है, जिससे भारत के प्रति उनका लगाव और जुड़ाव काफी बढ़ा है।
देखा जाए तो भारत के लिए भी प्रवासी भारतीय बहुत महत्व रखते हैं। आज प्रवासी भारतीय दुनिया भर में अपनी दक्षता और क्षमता का लोहा मनवा देश की प्रतिष्ठा को गौरवान्वित कर रहे हैं। प्रवासी भारतीयों का अपनी मिट्टी से भावनात्मक लगाव तो है ही, साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था को गतिमान करने में भी उनका सराहनीय योगदान है।
विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2022 में प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई रकम 100 अरब डॉलर के पार पहुंच चुकी है। यह रकम इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि सबसे ज्यादा भेजा जाने वाला धन हासिल करने वाले देशों में दूसरे नंबर के देश मोरक्को के 60 अरब डॉलर और तीसरे नंबर के देश चीन के 51 अरब डॉलर से कहीं ज्यादा अधिक है। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक प्रवासी भारतीयों ने 2016 में 62.70 अरब डॉलर, 2017 में 65.30 अरब डॉलर, 2018 में 80 अरब डॉलर भेजा।
देखें तो आज की तारीख में प्रवासी भारतीय जितना धन भेज रहे हैं, वह भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लगभग बराबर है। अतीत में जाएं तो प्रवासी भारतीय समुदाय सैकड़ों वर्ष में हुए उत्प्रवास का परिणाम है और इसके पीछे ढ़ेर सारे कारण रहे हैं। उनमें वाणिज्यवाद, उपनिवेशवाद और वैश्वीकरण अहम कारण हैं। आज की तारीख में प्रवासी भारतीय समुदाय एक विविध विजातीय और मिलनसार वैश्विक समुदाय के रुप में तब्दील हो चुका है जो कि विश्व के अनेक देशों में अपनी भाषा, संस्कृति और मान्यताओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
ध्यान दें तो विश्व के सभी देशों में प्रवासी भारतीय समुदाय को उनकी कड़ी मेहनत, अनुशासन, हस्तक्षेप न करने और स्थानीय समुदाय के साथ सफलतापूर्वक तालमेल बनाए रखने के लिए जाना जाता है।
आंकड़ों पर गौर करें तो प्रवासी भारतीय विश्व के तकरीबन चार दर्जन से अधिक देशों में फैले हुए है। इनमें से तकरीबन डेढ़ दर्जन देशों में प्रवासी भारतीयों की संख्या तकरीबन पांच लाख से अधिक है। वे वहां की आर्थिक व राजनीतिक दिशा तो तय करते ही हैं साथ ही कमाए गए धन को देश भेजकर भारतीय अर्थव्यवस्था को गति भी देते हैं।
याद होगा डा0 लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी ने प्रवासी भारतीयों पर 18 अगस्त 2000 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इस रिपोर्ट पर अमल करते हुए तत्कालीन सरकार ने प्रवासी भारतीय दिवस मनाना शुरु किया। इस पहल से प्रवासी भारतीयों का देश से जुड़ाव बढ़ा और वे देश के विकास में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
ऐसा माना जाता है कि ज्यादतर लोग उन्नीसवीं शताब्दी में आर्थिक कारणों की वजह से भारत छोड़कर दुनिया के अन्य देशों में गए। इसकी शुरुआत अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, फिजी और कैरेबियाई देशों से जहां अंग्रेजों को अपने उपनिवेशों में सस्ते मजदूरों की जरुरत थी। बीसवीं शताब्दी के दौरान भारतीयों ने पश्चिमी देशों और खाड़ी के देशों का रुख किया। इसका मुख्य कारण बेहतर जिंदगी की तलाश था।
आज की तारीख में दुनिया का शायद ही कोई देश बचा हो जहां भारतीय न हों। दुनिया भर में पसरे प्रवासी भारतीयों पर नजर दौड़ाएं तो दुनिया में सबसे अधिक प्रवासी भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत अकेले केरल से आते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक खाड़ी के देशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों में 70 प्रतिशत मेहनतकश लोग हैं। इसके अलावा डाॅक्टर, बैंकर, चार्टर्ड अकाउंटेट और शिक्षक जैसे पेशों से भी जुड़े हैं।
संयुक्त अरब अमीरात की ही बात करें तो यहां तकरीबन पच्चीस लाख से अधिक भारतीय कामगार हैं जो न सिर्फ रोजी-रोटी कमा रहे हैं बल्कि अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा भारत भेजकर भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रहे हैं। एक आंकड़ें के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, ओमान, कुवैत और सउदी अरब में तकरीबन तीन करोड़ भारतीय विभिन्न तरह के काम कर रहे हैं जो दुनिया भर में पसरे तकरीबन सवा सात करोड़ भारतीयों का चौथाई हिस्सा है। अकेले संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे प्रवासी भारतीयों द्वारा 12 अरब डॉलर भारत आता है।
अच्छी बात यह है कि भारत और संयुक्त अरब अमीरात समेत दुनिया के सभी देश भारतीय कामगारों के लिए मुफीद वातावरण निर्मित करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। चूंकि अरब देशों में संयुक्त अरब अमीरात एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक एवं व्यवसायिक हब है लिहाजा यह भारतीय कामगारों के लिए पहली पसंद होता है।
संयुक्त अरब अमीरात के अलावा खाड़ी के अन्य देशों मसलन ईरान, इराक, कतर में भी प्रवासी भारतीयों की बड़ी तादाद है जो अपने परिश्रम से धन कमाकर अपने घर भारत भेजते हैं। खाड़ी देशों एवं पश्चिम एशिया के अलावा यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप में भी बड़ी तादाद में प्रवासी भारतीय रहते हैं। गौर करें तो आज की तारीख में कनाडा प्रवासी भारतीयों की सबसे पहली पसंद बनता जा रहा है।
कनाडा में रह रहे भारतीयों द्वारा वहां की नागरिकता हासिल करने वालों की संख्या में पिछले वर्षों के मुकाबले 50 प्रतिशत की भारी-भरकम वृद्धि हुई है। दरअसल इसका मुख्य कारण अक्टुबर 2017 के बाद से कनाडाई नागरिकता हासिल करने संबंधी नियमों में कुछ ढील दी गयी है। पहले यहां का स्थायी नागरिक बनने के लिए किसी व्यक्ति को छह में से चार तक व्यक्तिगत तौर पर कनाडा में निवास करना पड़ता था। लेकिन अब अगर कोई तीन साल व्यक्तिगत तौर पर कनाडा में रहे तो वह वहां का स्थायी नागरिक बनने के लिए आवेदन कर सकता है।
दुनिया के सबसे समृद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका की बात करें तो यहां अमेरिका की आबादी का तकरीबन 0.6 प्रतिशत प्रवासी भारतीय हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में इन प्रवासी भारतीयों मसलन कारोबारियों और पेशेवरों का बहुत बड़ा योगदान है। यही नहीं पिछले कुल सालों में ये लोग एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत के रुप में भी उभरे हैं।
गौर करें तो अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका की दूत निक्की हेली, पूर्व गवर्नर बाॅबी जिंदल व सांसद कमला हैरिस समेत बड़ी संख्या में भारतीयों की प्रशासन और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की नीतियों को तय करने में धमक है। पेप्सी की सीईओ इंदिरा नूई, माइक्रोसाॅफ्ट के सत्या नडेला, गूगल के सुंदर पिचाई अमेरिका में अपनी चमक बिखेर रहे हैं।
यह सही है कि अमेरिका में सिर्फ 30 लाख ही प्रवासी भारतीय हैं जो कि कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत से भी कम है। लेकिन हाईटेक कंपनियों के 8 प्रतिशत संस्थापक भारतीय हैं। 28 प्रतिशत भारतीय अमेरिका में इंजीनियरिंग क्षेत्र में अपनी दक्षता का लोहा मनवा रहे हैं। सिर्फ पांच प्रतिशत अमेरिकी ही इंजीनियर हैं। अमेरिका में रहने वाले 69.3 प्रतिशत भारतीय प्रबंधन, विज्ञान, व्यापार और कला क्षेत्र से जुड़े हैं।
अमेरिकन एजेंसी प्यू की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में भारतीय समुदाय ही सर्वाधिक शिक्षित है और उसका लाभ अमेरिका के साथ-साथ भारत को भी मिल रहा है। इसी तरह दक्षिण-पूर्व एशिया में भी भारी तादाद में प्रवासी भारतीय रहते हैं और प्रतिभा-परिश्रम के बल पर अपना लोहा मनवा रहे हैं। तथ्य यह भी कि हजारों प्रवासी भारतीय अपने देश लौटकर नए-नए स्टार्टअप का इनोवेशन कर स्थानीय स्तर पर रोजगार का अवसर विकसित कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)