इन दिनों यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग का असर लगभग पूरे विश्व पर पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि केवल रूस ही हावी है और यूक्रेन ही पीड़ित है। जंग में शामिल हर इंसान मन ही मन युद्ध की त्रासदी को भोग रहा है, भले ही वह जाहिर तौर पर इसे स्वीकारे या ना स्वीकारे।
इस हाहाकार के बीच भारत की सरकार यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को बचाने में जुटी है। भारत अपने महत्वपूर्ण मिशन ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन एवं उसकी सीमा पर फंसे सैकड़ों भारतीयों को सफलतापूर्वक एयर लिफ्ट करने में लगा है। जब भारतीय छात्र तिरंगा झंडा लेकर, दिखाकर बचते बचाते निकल रहे थे, तब कई पाकिस्तानी छात्र भी तिरंगे का सहारा लेकर जान बचाते पाए गए। भारतीय चाहते तो उन्हें मना भी कर सकते थे लेकिन वसुधैव कुटुंबकम की हमारी सनातन अवधारणा यहां आकर फिर नए अर्थ पा गई।
जहां तक ऑपरेशन गंगा की बात है, यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सफलतम मिशन बनने वाला है। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है जब भारत सरकार ने विदेशों में फंसे भारतीयों की जान बचाई हो। इससे पहले भी देश ऐसे कई मिशन पूरे कर चुका है। भारतीय सेना के जाबांज सैनिक स्वदेशी नागरिकों को वुहान, सीरिया, अफगानिस्तान आदि जगहों से सुरक्षित निकाल चुके हैं। कोरोना महामारी के समय चीन सहित अन्य देशों में बड़ी संख्या में भारतीय फंसे थे। तब वंदे भारत मिशन के तहत सबको बचाया गया। तालिबानी कब्जे के समय भी भारतीयों को अफगानिस्तान से निकाला गया। अब यूक्रेन से भी बचाया जा रहा है।
वास्तव में यह सब तब संभव हो पाता है जब देश का नेतृत्व कुशल हाथों में हो। यह कहना गलत ना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार के बूते आज इस दुरुह एवं दुर्गम काज को साधने में सफलता मिली है। ऐसा कहना अतिशयोक्ति भी नहीं होगी क्योंकि सभी ने देखा है कि जंग शुरू हुए आठ दिन हुए हैं और इस दौरान दुनिया के कई देश अभी भी अनिर्णय की स्थिति में हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करना है और इस बीच भारत सरकार ने एक के बाद एक उड़ानें संचालित करके दुनिया को दिखा दिया कि वो अपने नागरिकों को बचाने के लिए किस सीमा तक प्रतिबद्ध है।
24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमले का आगाज किया तब वहां का एयर स्पेस भी बंद कर दिया गया था। ऐसे में फंसे हुए छात्रों के सामने संकट था कि अब कहां जाएंगे और कैसे जाएंगे। जो भी निकटतम एयरपोर्ट थे, उनकी भी दूरी 150 किमी से अधिक थी। इसके चलते उन्हें सड़क मार्ग से जाना पड़ा। लेकिन यह बहुत जानलेवा काम था। लगातार हो रहे मिसाइल हमलों में कभी भी कोई भी चपेट में आ सकता था।
चूंकि यूक्रेन से इस समय बचकर निकलना बहुत कठिन है, इसलिए समीप के रोमानिया, हंगरी के क्रमश: बुखारेस्ट, बुडापेस्ट एयरपोर्ट से उड़ानें शेड्यूल की जा रही हैं। विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने मीडिया को यह भी जानकारी दी कि अब उड़ानों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है ताकि एक बार में अधिक छात्र बचाए जा सकें।
असल में एक उड़ान में एक बार में 220 से अधिक यात्री क्षमता नहीं हो सकती इसलिए अब सेना के ग्लोबमास्टर की भी मदद ली जाने वाली है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोज रात को लगातार पांच दिनों से उच्च स्तरीय बैठक कर रहे हैं और इस संकट की हर पल की अपडेट जानकारी ले रहे हैं। उनकी यह सतर्कता बताती है कि वे अपने एक एक नागरिक की सुरक्षा को लेकर कितने चिंतित हैं।
कोरोना महामारी के समय केंद्र की भाजपा सरकार ने देश में जहां-तहां फंसे मजदूरों को सकुशल उनके घर पहुंचाया था, उनके हितों का हर प्रकार से ध्यान रखा था। उन्हें धन राशि के साथ ही राशन भी निशुल्क उपलब्ध कराया गया था। अब यूक्रेन में फंसे भारतीयों के लिए भी सरकार आगे आई है। इससे यह बात पुष्ट होती है कि मोदी सरकार ना केवल देश में बल्कि विदेश में रह रहे भारतीयों की सुरक्षा के लिए भी कृतसंकल्पित है।
जैसे ही 219 छात्रों को लेकर पहली उड़ान मुंबई पहुंची, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल सभी को रिसीव करने वहां पहुंचे। इसके बाद तो क्रमश: अलग-अलग एयरपोर्ट पर कई केंद्रीय मंत्री बाद में पहुंचे। इनमें स्मृति ईरानी, मनसुख मांडविया, ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम प्रमुख हैं। यह भी एक शुभ परिपाटी रही। जब छात्रों को लेने व उनका उत्साह बढ़ाने केंद्रीय मंत्रीगण स्वयं पहुंचे तो छात्रों को भी यह देखकर बहुत राहत मिली।
भारत के लिए यह भी एक सकारात्मक पक्ष रहा है कि कतिपय पाकिस्तानी छात्र भारत का ध्वज लेकर बच निकले और पाकिस्तान की संसद में इस पर हंगामा हो गया। वहां विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को हंगामे के बीच बोलने ही नहीं दिया गया और उक्त बात का बहुत विरोध किया गया। तंग आकर कुरैशी यहां तक बोल गए कि क्या इनके भीतर नरेंद्र मोदी की रूह आ गई है। वहां का सदन आपस में ही उलझ गया है और संकट के समय इमरान खान का उनके छात्रों का ना बचा पाना भी जगजाहिर हो गया है।
पाकिस्तानी छात्र खुलेआम वीडियो पर कहते नज़र आ रहे हैं कि उनके पीएम इमरान ने उन्हें बचाने के प्रयास नहीं किए। काश उनके भी पीएम मोदी होते। असल में, यह कोई छोटी या साधारण बात नहीं है। यह अपने आप में बड़ी घटना है। शत्रु राष्ट्र भी इस प्रकार की कूटनीति से परास्त हो गया है। बाहर तो ठीक, अब देश के भीतर भी विरोधी सरकार के इस कदम के मुरीद होते दिख रहे हैं।
रुस-यूक्रेन युद्ध के बीच विदेशी मामलों पर संसदीय परामर्श समिति की बैठक हुई, जिसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विपक्षी नेताओं को इस मुद्दे पर भारत के रुख और भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हमारी पहली प्राथमिकता भारतीय छात्रों को सुरक्षित वापस लाने की है।
कुल मिलाकर एक बात तो स्पष्ट है कि यूक्रेन संकट के दौरान अल्पावधि में भारत सरकार ने दूरदर्शी कदम उठाते हुए जिस प्रकार लोगों की वापसी के अभियान में सफलता पाई है, वह पूरे विश्व में मिसाल बन गया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)