Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में मोदी सरकार द्वारा समय के साथ लिए गए निर्णयों को समझने की आवश्यकता है

यह सच है कि कोरोना वायरस की मार से विश्व का कोई भी देश बच नहीं सका है, लेकिन यह भी सच है कि इसका असर सभी पर एक समान नहीं पड़ा है। जहाँ कुछ देशों में इसका सीमित असर पड़ा तो वहीं कुछ देशों को इस दौरान हुई मानवीय और भौतिक क्षति से उबरने में लंबा वक्त लगेगा। शायद तब भी इसकी भरपाई न हो सके, मानवीय क्षति को तो वापस नहीं लौटाया जा सकता है। इन सब में एक बात जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वो यह कि विभिन्न देशों ने इससे लड़ने की रणनीति क्या बनाई और कितनी सक्रियता से इसका पालन किया? कोरोना के विरुद्ध सफलता-असफलता में सबसे बड़ी भूमिका सरकारी प्रयासों की ही रही है। इसी संदर्भ में हम प्रस्तुत लेख के माध्यम से यह देखने की कोशिश करेंगे कि भारत सरकार ने इससे निपटने की क्या रणनीति अपनाई और वो कितनी सफल रही? इसे हम तीन अलग -अलग शीर्षकों के तहत समझने की कोशिश करेंगे जो क्रमशः इसके प्रसार को सीमित करने, स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने और आर्थिक स्थितियों को सुधारने से संबंधित है।

ब्रेक द चेन पॉलिसी 

नई बीमारी कोविड-19 की सबसे बुनियादी बात यह है कि यह संपर्क से फैलती है। यानी मनुष्यों के बीच आपसी संपर्क जितना सघन होगा इसके प्रसार की दर उतनी ही तीव्र होगी। इसी प्रकार इसके प्रसार से जुड़ा यह तथ्य भी उतना ही बुनियादी है कि चीन ने इसके प्रसार को रोकने में कोई मदद नहीं की, बल्कि यह कहा जाना चाहिए कि इस संबंध में पूरे विश्व को गुमराह किया और प्रकारान्तर से इसके प्रसार में योगदान दिया। चीन ने वर्ष 2019 के अंतिम दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन को बड़े पैमाने पर ‘अनजान कारकों’ से हो रहे वायरल बीमारी, जिसका केंद्र वुहान था, की जानकारी दी। चीन ने वर्ष 2019 में ही यह निश्चित कर दिया था कि अगला वर्ष कैसा होना है! ‘अनजान कारकों’ का हवाला देने वाले चीन से दुनिया देखते ही देखते एक निश्चित संकट में फंस चुकी थी। बहरहाल, नए साल के पहले सप्ताह के अंतिम दिन चीन में घोषित रूप से पहला ‘कोविड’ रोगी मिला। अब यहाँ से हम इस बात की पड़ताल कर सकते हैं कि जब दुनिया को ‘घोषित’ रूप से इस बीमारी का पता चला तो भारत सरकार ने इसके प्रति कितनी सक्रियता दिखाई।

वस्तुतः, इस घटना के ठीक एक दिन बाद यानी 8 जनवरी 2020 को भारत सरकार ने विशेषज्ञों की पहली बैठक की। इसके बाद भारत ने तय किया कि चीन से आने वाले सभी यात्रियों की एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग की जाएगी ताकि संदेहास्पद लोगों को अलग किया जा सके। यह प्रक्रिया 17 जनवरी से शुरू हो गई, यहाँ यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इस समय तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने न तो इसे ‘वैश्विक स्वास्थ्य आपदा’ घोषित किया था और न ही इसे ‘पेंडेमिक’ ही कहा था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा (PHEIC)’ घोषित किया और फरवरी के पहले सप्ताह से ही भारत सरकार ने विदेश में फंसे लोगों को भारत वापस लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

फरवरी के तीसरे दिन चीन की यात्रा से संबंधित ‘ट्रैवल एडवाइजरी’ जारी की गई और चीन के लिए ई-वीजा को निलंबित कर दिया गया। इसके बाद सिंगापुर के लिए भी ट्रैवल एडवाइजरी जारी की गई तथा नेपाल, वियतनाम, इंडोनेशिया तथा मलेशिया से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग निश्चित की गई। ये सभी वैसे पोटेंशियल देश थे जहाँ से इसके प्रसार का खतरा अधिक था। 3 मार्च को जब भारत में मात्र 6 केस ही थे तभी सभी देशों से आने वाले यात्रियों की जॉंच करने की नीति बनाई गई। इसके अगले ही दिन प्रधानमंत्री ने होली मिलन न करने का निर्णय लिया। इसके बाद सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रद्द कर दिया गया तथा अंततः 24 मार्च को भारत सरकार ने 21 दिनों के लॉकडाउन का निर्णय लिया जो अब चौथे चरण में 31 मई तक कर दिया गया है। इस प्रकार भारत ने पूरी तत्परता दिखाई कि इसका संक्रमण न फैले। इस निर्णय का सकारात्मक असर भी देखने को मिला। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो जहाँ 30 जनवरी को भारत में कोरोना का 1 मरीज था, यूके में एक भी नहीं, जर्मनी में 4, फ्रांस तथा अमेरिका में 5 मरीज थे वहीं 18 मई को अमेरिका में लगभग 15 लाख, यूके में 2.5 लाख, जर्मनी में 1.75 लाख, फ्रांस में 1.5 लाख मामले हो गए वहीं भारत में यह अभी 1 लाख से कुछ नीचे है। यहाँ यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि उपरोक्त सभी देश स्वास्थ्य सेवाओं में भारत से कहीं अधिक समृद्ध हैं, फिर भी प्रभाव की दृष्टि से अधिक पीड़ित हैं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि भारत सरकार  इसके प्रसार को रोकने में एक हद तक सफल रही है।

चिकित्सीय तैयारी 

लॉकडाउन का यह फायदा हुआ कि संक्रमण कम फैला, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि इस दौरान चिकित्सीय सुविधाओं को बेहतर बनाया जाए। क्योंकि अंततः बेहतर इलाज से ही इसपर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस संदर्भ में देखें तो भारत सरकार ने काफी सक्रियता दिखाई तथा आवश्यक स्वास्थ्य तैयारी को लेकर गंभीर दिखी। भारत में किसी भी मामले के आने के पूर्व ही सरकार ने कोरोना से निपटने के 2 महत्वपूर्ण उपकरण ‘पीपीई किट’ तथा ‘एन-95 मास्क’ के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। साथ ही उन संभावित दवाओं को जो इसके उपचार में काम आने वाले थे उनके निर्यात को भी रोक दिया गया। 30 जनवरी को जब भारत में पहला केस दर्ज किया गया तभी 6 टेस्टिंग लैब को चिन्हित किया जा चुका था।  शुरुआती स्थिति के बाद आज देखें तो स्थिति काफी नियंत्रण में है। सबसे पहले एक बात जो सर्वाधिक प्रमुखता से कही जा रही है वो यह कि अधिक से अधिक टेस्ट ही इससे लड़ने का सबसे कारगर उपाय है। इस लिहाज से आज भारत विश्व में सर्वाधिक टेस्टिंग के मामले में दूसरे नंबर पर है तथा इससे आगे सिर्फ अमेरिका है। भारत में अब तक 36  लाख से अधिक लोगों की टेस्टिंग हो चुकी है तथा प्रतिदिन टेस्टिंग की क्षमता में निरंतर वृद्धि हो रही है।

वस्तुतः जहाँ जनवरी में कोविड टेस्टिंग की सिर्फ एक लैब हुआ करती थी वहीं अब सरकारी तथा प्राइवेट मिलाकर 662  के करीब हो चुकी है। 27 मई 2020 तक  930 से अधिक कोविड समर्पित अस्पताल इस लड़ाई को लड़ रहे हैं जबकि 7 हज़ार से अधिक कोविड देखभाल केंद्र बनाए गए हैं।  इसके अतिरिक्त अब भारत प्रतिदिन 2-2 लाख से अधिक पीपीई किट्स और एन-95 मास्क का उत्पादन कर रहा है तथा अब तक केंद्र सरकार ने राज्यों तथा अन्य केंद्रीय संस्थाओं को 113 लाख एन-95 मास्क और 89 लाख पीपीई किट्स उपलब्ध कराए हैं। यह बेहतर स्वास्थ्य सुविधा ही है कि भारत में स्वस्थ होने की दर 42  प्रतिशत से अधिक है। साथ ही मामलों के दुगुने होने की दर भी अब बढ़कर 18  दिन हो चुकी है।

कुल मिलाकर कहें तो सरकार ने इस मोर्चे पर इतनी सक्रियता दिखाई है कि हालात नियंत्रण में बने हुए हैं। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और ऑक्सफोर्ड की रिपोर्ट में भारत की तैयारी की प्रशंसा की गई है।

आर्थिक नीति

कोरोना महामारी के दौरान भारत सरकार के आर्थिक प्रयासों को दो हिस्सों में देखने की जरूरत है। एक तब जब एकदम शुरुआती समय सरकार ने लगभग पौने दो लाख करोड़ रूपये का पैकेज जारी किया था। यह मुख्य रूप से अति संवेदनशील वर्गों को लक्षित था, जिनके लिए रोजमर्रा का काम बंद हो जाने से संकट आ गया था। दूसरा तब जब प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रूपये का पैकेज घोषित किया, जिसमें अर्थव्यवस्था के सभी पक्षों को उबारने की कोशिश की गई।

पहले हिस्से की प्रमुख विशेषताओं की बात करें तो इसके तहत प्रत्‍येक स्वास्थ्य कर्मी को बीमा योजना के तहत 50 लाख रुपये का बीमा कवर प्रदान किया गया। फिर, 80 करोड़ गरीबों को तीन महीने तक हर माह 5 किलो गेहूं या चावल और पसंद की 1 किलो दाल उपलब्ध कराकर खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित की गई। 3.2 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष से अधिक), विधवाओं और दिव्यांगजनों को 1,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने का निर्णय भी लिया गया। इसके अतिरिक्त किसानों, मजदूरों को नकदी सहायता, मुफ्त एलपीजी सिलेंडर वितरण इत्यादि जैसे कदम ऐसे थे जो देखने में छोटे लग रहे थे पर करोड़ों परिवारों के लिए ये सहारा बने।

इसके बाद आत्मनिर्भर भारत अभियानके तहत जिस बहुआयामी नीतियों की घोषणा की गई वो निश्चित ही उत्साहजनक हैं। एक तरफ जहाँ विपक्षी जीडीपी के 1-2 प्रतिशत खर्च की बात कर रहे थे वहीं यह राशि जीडीपी का तकरीबन 10 प्रतिशत है। इसके तहत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को गति देने की कोशिश की गई है। जिनमें कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। वस्तुतः अभी की सबसे बड़ी जरूरत है कि धन का प्रवाह तेजी से नीचे की ओर जाए और बड़ी जनसंख्या की आर्थिक हैसियत बढ़े। इसके लिए सरकार ने मनरेगामें 40 हजार करोड़ रूपये के अतिरिक्त वित्त की व्यवस्था की है, जो निश्चित ही नकद को नीचे तक पहुँचाएगा और सर्वाधिक जरूरतमंद लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाएगा।

इसी प्रकार कृषि सुधारों के माध्यम से किसानों को राहत देने की कोशिश की गई जिसमें ‘एसेंसियल कमोडिटी एक्ट-1955’ में आवश्यक सुधार महत्वपूर्ण हैं। साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड के रूप में 2 लाख करोड़ रूपये जारी किये गए हैं, इससे किसानों की क्रय क्षमता बढ़ेगी। इसी प्रकार कृषि के बाद रोजगार के दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र ‘एमएसएमई’ सेक्टर के लिए आपात क्रेडिट सुविधा के रूप में 3 लाख करोड़ रूपये जारी किये गए तथा उन्हें कोलेट्रल फ्री लोन की व्यवस्था की गई। इससे यह क्षेत्र न केवल कामगारों को वेतन दे सकेगा। बल्कि इससे उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री की खरीद भी संभव हो सकेगी। राज्य सरकारों की आर्थिक हैसियत बढ़ाने के लिए वित्तीयन पूर्ति की सीमा को 6.41 लाख करोड़ रूपये से बढ़ाकर 10.69 लाख करोड़ रूपये कर दिया गया है। कुल मिलाकर इसके तहत हर क्षेत्र को इतनी आर्थिक सहायता दी गई है कि वो वापस अपनी गति में आ सके। इस प्रकार तीनों मोर्चों पर देखें तो भारत सरकार काफी सक्रिय, चपल और संतुलित दिखती है। सरकार के इन महत्वपूर्ण कदमों के आधार पर हम उम्मीद कर सकते हैं कि देश इस कोरोना संकट से उबरने में जल्द ही सफल होगा।

(लेखक इतिहास के अध्येता हैं तथा विभिन्न अखबारों तथा ऑनलाइन पोर्टल के लिए लिखते हैं, इस लेख में उनके विचार निजी हैं )